Poem on raksha bandhan: रक्षाबंधन साल का वह पर्व है, जब रिश्ते शब्दों से परे जाते हैं और एक छोटा-सा धागा भी जीवन की सबसे बड़ी भावनाओं को समेट लेता है। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भाई और बहन के बीच के उस विश्वास का उत्सव है, जो ताउम्र बना रहता है। आज के व्यस्त और डिजिटल दौर में जब भावनाएं अक्सर शब्दों में उलझ जाती हैं, ऐसे में कविता एक ऐसा माध्यम बन जाती है, जो दिल की बात सीधे दिल तक पहुंचाती है।
इस लेख में हम रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर एक ऐसी कविता प्रस्तुत कर रहे हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते की नज़ाकत, गहराई और मज़बूती को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में पिरोती है। यह कविता आधुनिक शैली में है, लेकिन जड़ों से जुड़ी हुई है, जिसमें भावनाओं की सच्चाई है, रिश्तों की मिठास है और उन लम्हों की झलक है जो हम सबने कभी न कभी जिए हैं।
भाई-बहन पर कविता
छोटी-सी थी मैं, तू बड़ा शरारती,
कभी खींचता चोटी, कभी कहता बात सच्ची।
झगड़ा करते, मिठाई छीनते, फिर भी दिल से जुड़ते थे,
रूठते भी थे पर अगले पल ही, फिर से हँसते थे।
तू था मेरा पहला दोस्त, और पहला दुश्मन भी,
रात को डर लगे तो तेरी परछाई भी राहत बनती थी।
कभी स्कूल के गेट पर खड़ा होकर इंतज़ार करता,
तो कभी मुझसे चोरी से मेरी चॉकलेट भी खा जाता।
फिर बड़ी हुई मैं, तू बना मेरा हीरो,
दुनिया से लड़ जाए, पर मेरी आंखों में आँसू ना हो।
हर रक्षाबंधन पर जब राखी बांधती हूं तुझको,
तो वो बचपन की सारी यादें फिर से जीती हूं।
तेरी कलाई पर लिपटा ये धागा, सिर्फ रेशम नहीं है,
ये वो वादा है जिसमें तू मेरी दुनिया की ढाल बना है।
ना तू सुपरमैन है, ना बैटमैन, पर मेरी दुनिया का रक्षक,
मेरे हर डर का जवाब है, तू मेरा सबसे प्यारा समर्पण।
जब तू मुस्कुराता है, तो लगता है जैसे जीत ली दुनिया,
और जब तू थकता है, तो लगती है मेरी भी थकान गहरी।
तेरे हर संघर्ष में मैं तेरा संबल बनूं, यही मेरी कामना है,
राखी के धागे से बंधी ये प्रार्थना, बस तेरे लिए सजना है।
तू चाहे जहां भी हो, दूर या पास,
तेरे दिल में रहूं मैं, यही मेरा खास विश्वास।
आज भी जब तू "दीदी" या "छोटी" कहकर बुलाता है,
तो वो एक शब्द मेरी दुनिया को सबसे सुंदर बना जाता है।
तेरे साथ बिताए वो बचपन के दिन, आज भी आँखों में पलते हैं,
तेरे बिना त्योहार भी सूने हैं, घर के कोने खाली-से लगते हैं।
इस रक्षाबंधन पर बस इतना कहना चाहती हूं भाई,