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शुक्रवार, 15 नवंबर 2013 (17:31 IST)
अलवर जिले में बागी बने चुनौती
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अलवर। राजस्थान में आगामी 1 दिसंबर को हो रहे विधानसभा चुनाव में मत्स्य अंचल के नाम से मशहूर रहे अलवर जिले के 11 विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकांश सीटों पर बागियों तथा 3 सीटों पर नेशनल पीपुल्स पार्टी प्रत्याशियों के चुनावी मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस का समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है।
राजगढ़, लक्ष्मणगढ़, थानागाजी, अलवर ग्रामीण और कठूमर विधानसभा क्षेत्र में नेशनल पीपुल्स पार्टी के मजबूत प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है।
हालांकि कांग्रेस और भाजपा के बागी जीतने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन दोनों ही दलों को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में दिखाई देते हैं। अलवर जिले में कांग्रेस को खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन भाजपा के समक्ष पुरानी सीटों को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है।
वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तिजारा, मुण्डावर तथा अलवर ग्रामीण सीटें जीती थीं वहीं जिले की 11 में से 7 सीटों पर भाजपा के विधायक चुने गए थे जिनमें अलवर शहर, बहरोड, किशनगढ़ वास, बानसूर, थानागाजी, रामगढ़ और कठूमर सीट शामिल है। समाजवादी पार्टी के सूरजभान धानका राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ सीट से विजयी रहे थे।
अलवर जिले में इस बार भाजपा ने 2 तथा कांग्रेस ने 3 नए चेहरे चुनाव में उतारे हैं। राजस्थान विधानसभा के इतिहास में पहली बार थानागाजी सीट से कांग्रेस ने जोगी जाति की प्रत्याशी उर्मिला जोगी को प्रत्याशी बनाया है।
अलवर जिले में नेशनल पीपुल्स पार्टी के 3 प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में होने से मीणा जाति बहुल इलाकों में समीकरण बिगड़ने की आशंका है। हालांकि यहां से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नजदीकी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह सांसद चुने गए थे लेकिन उनका इस चुनाव में उतना प्रभाव नजर नहीं आ रहा जितना पिछले चुनाव में दिखाई दिया था।
सिंह की सक्रियता के कारण अलवर शहर में कांग्रेस को प्रत्याशी घोषित करने में ही पसीना आ गया था। अंतिम तिथि से 1 दिन पहले ही प्रत्याशी घोषित किया गया।
अलवर जिले में किसी भी सीट पर सैनी समाज के कार्यकर्ता को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, इसे लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी कार्यकर्ता नाराज बताए जाते हैं।
अलवर शहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। यहां से भाजपा ने मौजूदा विधायक बनवारीलाल सिंघल तो कांग्रेस ने नरेन्द्र शर्मा को प्रत्याशी घोषित किया है। नेशनल पीपुल्स पार्टी के अभय सैनी के चुनाव मैदान में होने से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह की दखल के चलते कांग्रेस ने नरेन्द्र शर्मा पर पुन: दांव खेला है तो भाजपा ने सिंघल की छवि को दुबारा भुनाने का प्रयास किया है। हालांकि भाजपा के बागी पूर्व नगर परिषद सभापति अजय अग्रवाल और कांग्रेस से जीतकौर बगावत कर चुनाव मैदान में हैं।
अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट से गत 25 साल से विपक्ष का विधायक चुना जा रहा है। रामगढ़ सीट पर इस बार कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है।
भाजपा ने मौजूदा विधायक ज्ञानदेव आहूजा तथा कांग्रेस ने जुबेर खान को उतारा है। रामगढ़ मेव मुसलमान बहुल इलाका है। गहलोत के सत्ता में रहते रामगढ़ के समीप स्थित गोपालगढ़ में पुलिस की गोली से 10 लोगों की मौत का प्रकरण इस सीट पर असर डाल सकता है।
आहूजा इस सीट से 2 बार जीत चुके हैं और इस बार उनके जीतने तथा भाजपा के सत्ता में आने से आहूजा का मंत्री बनना तय माना जा रहा है। इस बार भाजपा इस सीट को बरकरार रखने की कवायद में जुटी है।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कठूमर सीट पर कांग्रेस के रमेश खींची, भाजपा के मंगलराम कोली और नेशनल पीपुल्स पार्टी के बाबूलाल बैरवा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है।
भाजपा से टिकट कटने पर मौजूदा विधायक बाबूलाल बैरवा ने बगावत कर नेशनल पीपुल्स पार्टी का दामन थाम लिया था। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मीणा बहुल आरक्षित राजगढ़, लक्ष्मणगढ़ सीट पर गैर मीणा वोट ही किसी प्रत्याशी की हार-जीत का फैसला करेंगे।
वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी के सूरजभान धानका चुने गए थे। यहां से भाजपा ने नए चेहरे सुनीता मीणा और कांग्रेस ने शीला मीणा को उतारा है वहीं नेशनल पीपुल्स पार्टी ने महुवा से मौजूदा विधायक एवं पूर्व मंत्री तथा सांसद किरोड़ीलाल मीणा की पत्नी गोलमादेवी को यहां से प्रत्याशी बनाकर मुकाबला रोचक बना दिया है।
यहां धानका और श्रीमती गोलमा के बीच मुकाबला माना जा रहा है। यहां कांग्रेस के बागी पूर्व विधायक जौहरीलाल मीणा भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। (वार्ता)