शुक्रवार, 17 जनवरी 2025
  • Webdunia Deals
  1. कुंभ मेला
  2. प्रयागराज कुंभ मेला 2025
  3. प्रयागराज कुंभ मेला न्यूज
  4. Amazing organization of Prayagraj Mahakumbh
Last Updated : शुक्रवार, 17 जनवरी 2025 (15:24 IST)

महाकुंभ का ऐसा अद्भुत आयोजन संकल्प से ही संभव

महाकुंभ का ऐसा अद्भुत आयोजन संकल्प से ही संभव - Amazing organization of Prayagraj Mahakumbh
प्रयागराज त्रिवेणी संगम से आ रहे दृश्य अद्भुत हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर भारत ही एकमात्र देश है जहां इस तरह के अद्भुत आयोजन संभव हैं। केवल भारत नहीं, संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए यह न भूतो वाली स्थिति है। न भविष्यति इसलिए नहीं कह सकते कि एक बार जब देश और नेतृत्व अपनी प्रकृति को पहचान कर आयोजन करता है तो वह एक मानक बन जाता है और आगे ऐसे आयोजनों को और श्रेष्ठ करने की प्रवृत्ति स्थापित होती है। यह मानना होगा कि 144 वर्ष बाद पौष पूर्णिमा पर बुधादित्य योग जिसे, महायोग युक्त कह रहे हैं, उस महाकुंभ का श्री गणेश उसकी आध्यात्मिक दिव्यता के अनुरूप करने की संपूर्ण कोशिश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है। भारत में दुर्भाग्यवश, राजनीतिक विभाजन इतना तीखा है कि ऐसे महान अवसरों, जिससे केवल भारत और विश्व नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण का भाव पैदा होने की आचार्यों की दृष्टि है, उसमें भी नकारात्मक वातावरण बनाया जा रहा है।ALSO READ: पीरियड्स में महिला नागा साधु कैसे करती हैं महाकुंभ में स्नान, ये हैं नियम
 
होना यह चाहिए था कि राजनीतिक मतभेद रहते हुए भी संपूर्ण भारत और विशेष कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल ऐसे शुभ और मंगलकारी आयोजन पर साथ खड़े होते, आने वालों का स्वागत करते और संघर्ष, तनाव, झूठ, पाखंड, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से भरे विश्व में भारत से शांति की आध्यात्मिक सलिला का मूर्त अमूर्त संदेश विस्तारित होता।

हमारे देश का संस्कार इतना सुगठित और महान है कि नेताओं के वक्तव्यों की अनदेखी करते हुए करोड़ों लोग अपने साधु-संतों, आचार्यों के द्वारा दिखाए रास्ते का अनुसरण करते हुए जाति, पंथ, क्षेत्र, भाषा, राजनीति सबका भेद भूलकर संगम में डुबकी लगाते, आवश्यक अपरिहार्य कर्मकांड करते आकर्षक दृश्य उत्पन्न कर रहे हैं, अन्यथा समाजवादी पार्टी और उनके नेता जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं उनसे केवल वातावरण विषाक्त होता।
 
थोड़ी देर के लिए अपनी दलीय राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर विचार करिए। क्या स्वतंत्र भारत में पूर्व की सरकारों ने ऐसे अनूठे उत्सव या आयोजन को उसके मूल संस्कारों और चरित्र के अनुरूप भव्यता प्रदान करने, संपूर्णता तक पहुंचाने एवं संपूर्ण विश्व को बगैर किसी शब्द का प्रयोग करें भारत के आध्यात्मिक अनुकरणीय शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए इस तरह केंद्रित उद्यम और व्यवस्थाएं किए थे? इसका ईमानदार उत्तर है, बिल्कुल नहीं। 
 
कहने का तात्पर्य यह नहीं कि पूर्व सरकारों ने कुंभ के लिए कुछ किया ही नहीं। लाखों करोड़ों व्यक्ति और संपूर्ण भारत के सारे संत-संन्यासी, साधु-महंत आचार्य दो महीने के लिए वहां उपस्थित हों तो सरकारों के लिए उसकी व्यवस्था और अपरिहार्य हो जाती है। सच यह है कि जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार ने कुंभ को उसकी मौलिकता के अनुरूप वर्तमान देश, काल, स्थिति के साथ तादात्म्य बिठाते हुए कार्य किया वैसा पहले कभी नहीं हुआ।ALSO READ: चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा
 
वास्तव में हमारे शीर्ष नेतृत्व में देश और प्रदेश दोनों स्तरों पर एक साथ कभी ऐसे लोग नहीं रहे जिन्हें महाकुंभ या हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक आयोजनों, मुहूर्तों, कर्मकांडों का महत्व, इसका आयोजन कैसे, किनके द्वारा, किन समयों पर होना चाहिए ना इसका पूरा ज्ञान रहा और न लेने के लिए कभी इस तरह पर्यत्न हुआ। 
 
प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संन्यासी हैं और उन्हें इसका ज्ञान है। उनके मंत्रिमंडल में भी ऐसे साथी हैं जो इन विषयों को काफी हद तक समझते हैं, जिनकी निष्ठा है। निष्ठा हो और संकल्प नहीं हो तो ज्ञान होते हुए भी साकार नहीं हो सकता।

आप योगी आदित्यनाथ के समर्थक हों या विरोधी इन विषयों पर उनकी समझ, निष्ठा व संकल्पबद्धता को किसी दृष्टि से नकार नहीं सकते। जब इस तरह की टीम होती है तभी महाकुंभ, अयोध्या या काशी विश्वनाथ अपनी मौलिकता के साथ संपूर्ण रूप से प्रकट होता है। केंद्र का पूरा मार्गदर्शन और उसके अनुरूप सहायता हो तो समस्याएं नहीं आती।
 
2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद प्रयागराज में ही 2019 में अर्धकुंभ आयोजित हुआ था और वहां से नया स्वरूप सामने आना आरंभ हुआ। पहली बार लोगों ने केंद्र व प्रदेश का संकल्प देखा तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पानी को अधिकतम संभव शुद्ध और स्वच्छ बनाने के लिए मिलकर दिन रात एक किया। 2019 में पहली बार राज्य सरकार ने 2406.65 करोड़ व्यय किया जिसकी पहले कल्पना नहीं थी। इस बार सरकार की ओर से 5496.48 करोड रुपए व्यय अभी तक हुआ और केंद्र ने भी इसमें 2100 करोड रुपए का अतिरिक्त सहयोग दिया है। 
 
कुंभ के आयोजन के साथ गंगा और यमुना दोनों में शून्य डिस्चार्ज सुनिश्चित करने की कोशिश हुई है। सभी 81 नालों का स्थाई निस्तारण सुनिश्चित करने की तैयारी की गई। यह तो नहीं कह सकते कि गंगा, यमुना और त्रिवेणी संगम का जल शत-प्रतिशत शुद्ध और स्वच्छ हो गया, किंतु अधिकतम कोशिश कर हरसंभव परिणाम तक ले जाने के परिश्रम से हम इन्कार नहीं कर सकते। कुंभ को हरित कुंभ बनाने की दृष्टि से पहली बार मोटा-मोटी 3 लाख के आसपास पौधों के रोपण का आंकड़ा है। पहले भी वृक्षारोपण होते थे किंतु संख्या अत्यंत कम होती थी। 
 
ऐसे आयोजनों में स्वच्छता के अभाव में लोगों में अनेक स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा होती हैं। केवल रिकॉर्ड संख्या में डेढ़ लाख शौचालय बनाए गए बल्कि 10 हजार से अधिक सफाई कर्मचारियों की तैनाती की गई। शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए लगभग 1230 किलोमीटर पाइपलाइन, 200 वाटर एटीएम तथा 85 नलकूप अधिष्ठान की व्यवस्था है। हालांकि हिंदुओं और सनातनियों के अंदर तीर्थयात्राओं में कष्ट सहने की मानसिकता और संस्कार है। हमारा चरित्र ऐसा है जहां जो कुछ व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं उसी में अपना कर्मकांडीय दायित्व पूरी करते हैं। किंतु सरकार व्यवस्था करे तो सब कुछ आसान सहज और अनुकूल होता है। 
 
सबसे बड़ी बात कि अखाड़ों, आश्रमों आदि की परंपराओं के अनुरूप व्यवस्था करना ताकि कर्मकांड संपूर्ण नियमों के साथ ही सुनिश्चित हो, मुख्य शाही स्नान ठीक मूहूर्त पर शास्त्रीय विधियो से संपन्न हों कम इसकी व्यवस्था तो पूर्व सरकारों इस तरह संभव ही नहीं थी। इसके साथ मीडिया को भारत और संपूर्ण विश्व में इसकी संपूर्ण भव्यता दिव्यता और आकषर्णकारी शक्ति को प्रसारित करने की दृष्टि से उपयोग करने की ऐसी व्यवस्था की तो संभावना भी नहीं थी।

आप राजनीतिक रूप से  आलोचना करिए किंतु सत्य है कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही ने कभी ऐसे अवसरों को इस तरह जन-जन तक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने और लोगों के अंदर आने की भावना पैदा करने की दृष्टि से विचार ही नहीं किया। 
 
टीवी चैनलों पर विहंगम दृश्य देखकर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं हैं कि एक बार अवश्य जाना जाकर वहां डुबकी लगानी चाहिए। इसे ही कहते हैं सही समय पर मीडिया के सही उपयोग से धार्मिक आध्यात्मिक भाव, सद्भाव पैदा करना। कभी भी ऐसे आयोजनों में मीडिया और पत्रकारों के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए इसके पूर्व कोशिश नहीं हुई। अयोध्या में पिछले वर्ष श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में हमने प्रदेश सरकार की पहली बार ऐसी व्यवस्था देखी और अब महाकुंभ में उसका विस्तार है।
 
धीरे-धीरे अब परंपरागत आर्थिक विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि भारत अगर विश्व की आर्थिक और आदर्श महाशक्ति बनेगा तो अध्यात्म-संस्कृत की क्षमता का उसमें सर्वाधिक योगदान होगा। मोटा-मोटी निष्कर्ष यह है कि लगभग 40 करोड़ लोग 45 दिनों में आते हैं तो दो से चार लाख तक का कारोबार हो सकता है।

आयोजन के निर्माण में तैयार आधारभूत व्यवस्थाएं भविष्य में भी ऐसे स्थानों पर तीर्थ यात्रियों और आधुनिक संदर्भ में पर्यटकों को सतत् आकर्षित करने का ठोस आधार बना रहेगा। अर्थात आर्थिक व व्यावसायिक गतिविधियों का अस्थाई स्थिर चक्र कायम रहेगा। कितने लोगों को जीवन यापन यानि रोजगार, आर्थिक समृद्धि, परिवारों में खुशहाली और संपन्नता प्राप्त होगी इसकी कल्पना करिए। 
 
दुर्भाग्य से गुलामी के काल में अपनी ही महान आध्यात्मिक शक्ति, संस्कृति, कर्मकांड आदि को पिछड़ापन, अंधविश्वास कहकर हमें उससे दूर किया गया और संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था शिक्षित लोगों के अंदर इसके प्रति वितृष्णा पैदा करती रही। सच यह है कि ऐसे आयोजन जन कल्याण, राष्ट्र, अभ्युदय और संपूर्ण विश्व ब्रह्मांड के अंदर स्वाभाविक शांति की अमूर्त अंत:शक्ति पैदा करते हैं।ALSO READ: Prayagraj Kumbh 2025: महाकुंभ मेले में जा रहे हैं तो जान लें ये खास जानकारी

साधु-संतों, अखाड़ों का स्नान, यज्ञ, अनुष्ठान आदि उनकी व्यक्तिगत कामना के लिए नहीं विश्व कल्याण पर केंद्रित होता है। एक साथ हजारों की संख्या में यज्ञ अनुष्ठान से बना माहौल, मंत्रों की ध्वनि संगीत, जयकारे सब सूक्ष्म रूप से पूरे वातावरण में कैसी दिव्यता उत्पन्न करेंगे इसकी कल्पना करिए।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)