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Written By ND

अश्रुओं से अभिषेक किया था

अश्रुओं से अभिषेक किया था -
पंडित भीमसेन जोशी के बारे में संगीतकारों की राय

पं. भीमसेन जोशी कई वर्षों से इंदौर आते रहे हैं। सानंद न्यास के सचिव जयंत भिसे ने पंडितजी के संबंध में बताया कि लगभग साढ़े तीन वर्षों की मेहनत के बाद वे इंदौर में सानंद के अभंगवाणी कार्यक्रम में प्रस्तुति देने को तैयार हुए थे। अभय प्रशाल में उस कार्यक्रम को सुनने के लिए 35 हजार से ज्यादा श्रोता उपस्थित थे। कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात प्रशाल में दिव्यता का अनुभव हो रहा था और कई श्रोताओं ने पंडितजी के चरण छुए थे और कइयों ने अश्रुओं से उनके चरणों का अभिषेक किया था। इस कार्यक्रम के पश्चात वे एक बार और भी इंदौर आए थे जब वैष्णव स्टेडियम में उनका कार्यक्रम हुआ था। इस कार्यक्रम में उन्हें सुर गंधर्व की उपाधि से नवाजा गया।


युवा गायिका कलापिनी कोमकली के अनुसार पंडितजी को भारतरत्न मिलने से वे काफी खुश हैं। इससे शास्त्रीय संगीत में काम कर रहे युवाओं का उत्साहवर्द्धन होगा। कलापिनी के अनुसार पंडितजी को भारतरत्न काफी पहले मिल जाना चाहिए था। आपने बताया कि पूना में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले सवई गंधर्व में वे भी प्रस्तुति दे चुकी हैं। कार्यक्रम की प्रस्तुति के पहले वे पंडितजी से घर पर मिलने गई थीं और उनसे कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए आग्रह किया था। पंडितजी न केवल स्वयं उपस्थित हुए बल्कि उनके संपूर्ण परिवार ने गाना सुना और बाद में काफी तारीफ भी की थी। उनके अनुसार भारतरत्न पंडितजी के जीवन भर की तपस्या का ही पुरस्कार है।


पंडितजी को भारतरत्न देने की खबर से ख्यात गायिका कल्पना झोकरकर काफी खुश हैं। उनके अनुसार पंडितजी की बायोग्राफी हर कलाकार को पढ़ना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उन्होंने कितनी मेहनत की है। आपने बताया कि वर्ष 1956 में जब पंडितजी इंदौर में प्रस्तुति देने आए थे तब पिता मामा साहेब मुजुमदार ने अपने घर देवास आने का निमंत्रण दिया था। तब मामा साहब मुजुमदार देवास के राधागंज इलाके में रहते थे। पंडितजी जब घर आए तो उन्होंने देखा कि गैरेज में फोर्ड गाड़ी खड़ी है।

उन्होंने तत्काल मामा साहब से चाबी माँगी और कहा कि मैं जरा गाड़ी चलाकर आता हूँ, भाभी से कहना चाय वगैरह बनाकर रखे। पंडितजी ने लगभग 15 मिनट तक गाड़ी चलाई और फिर घर में आए। श्रीमती झोकरकर ने बताया कि सन 1994 से वे जब भी पूना जाती हैं पंडितजी से जरूर मिलती हैं। पंडितजी की याददाश्त के बारे में वे कहती हैं कि उन्हें अपने सभी परिचितों के न केवल नाम याद हैं बल्कि हर बार मिलने के बाद वे उनसे घर-परिवार के सदस्यों के हालचाल भी पूछते हैं।