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पंडित जोशी : एक युग का अवसान
सोमवार,जनवरी 24, 2011
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सोमवार,जनवरी 24, 2011
बचपन में स्कूल से लौटते समय पंडितजी ग्रामोफोन रेकार्ड की दुकान पर रुककर गाने सुनते थे। मात्र 11 वर्ष की उम्र में पंडितजी ने गुरु की खोज में घर छोड़ा। गायकी के अलावा पंडितजी ने अपने शरीर का भी खूब ख्याल वर्जिश के माध्यम से रखा है। सवई गंधर्व गायन ...
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सोमवार,जनवरी 24, 2011
ईश्वर का यह दूत तो अपने कंठ से बहते सुरों के अखंड झरने से तमाम रसिकजनों को तृप्त कर रहा था। आज वह झरने की कलकल अवश्य खामोश हुई लेकिन हम सब उन्हें सादर नमन करते हैं कि अपने कंठ से उन्होंने हमारा जीवन सुरीला बनाया। उनका स्वर सान्निध्य हमारे साथ हमेशा ...
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सोमवार,जनवरी 24, 2011
शास्त्रीय संगीत के विलक्षण कलाकार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत पंडित भीमसेन जोशी नहीं रहे। कवि मंगलेश डबराल ने उन पर सुंदर भावपूर्ण रचना लिखी थी। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है मंगलेश डबराल की संवेदनशील रचना :
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एक स्वर शांत हुआ और लगा जैसे समूची धरा पर नीरवता छा गई। यह खबर दस्तक दे सकती है यह आशंका तो थी मगर
मन-मस्तिष्क तैयार नहीं था। संगीत-संसार का वह वटवृक्ष लंबे समय तक मधुर छाँव देता रहा लेकिन एक खबर से साथ ही सारे
संगीत प्रेमियों को तपिश में छोड़ ...
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सोमवार,जनवरी 24, 2011
उस रात हम सब सौभाग्यशाली थे कि उनके सुरों की चाँदनी में हम स्नान कर रहे थे। यह पुण्य स्नान था। हमने उस दिन पुण्य पाया। आज वे समूची चाँदनी के साथ हमसे बिदा हो रहे हैं और संगीत के सारे मधुर स्वर स्तब्ध हैं। अश्रुपूरित विनम्र आदरांजलि।
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सोमवार,जनवरी 24, 2011
आप चाहें दुःख में हों या पतझड़ में उनकी सुरीली आवाज का हाथ थामकर आप अपने जीवन में बसंत का आना महसूस कर सकते थे। आज सुरों का बसंत हमारे बीच से चला गया और नम आँखों से श्रद्धांजलि देने के सिवा हमारे बस में कुछ नहीं।
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संगीत संसार के लिए यह क्षण आनंद की रागिनी में डूब जाने का है। शास्त्रीय संगीत के विलक्षण कलाकार पंडित भीमसेन जोशी भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किए जाएँगे।
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पं. भीमसेन जोशी अब भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी कहलाएँगे। भारतीय शास्त्रीय के यश का कलश जगमगा उठा है। 'धन धन भाग सुहाग तेरो' में बंदिश भीमसेनजी की ही गाई हुई है और देश के सर्वोच्च अलंकरण से नवाजे जाने की ...
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अभोगी, पूरिया, दरबारी, मालकौंस, तोड़ी, ललित, यमन, भीमपलासी, शुद्ध कल्याण आदि पंडितजी के पसंदीदा राग हैं। इसके अलावा अभंग में माझे माहेर पंढरी, पंढरी चा वास और भजन में जो भजे हरी को सदा ठुमरी पिया के मिलन की आस आदि काफी प्रसिद्ध है।
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कलापिनी के अनुसार पंडितजी को भारतरत्न काफी पहले मिल जाना चाहिए था। आपने बताया कि पूना में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले सवई गंधर्व में वे भी प्रस्तुति दे चुकी हैं। कार्यक्रम की प्रस्तुति के पहले वे पंडितजी से घर पर मिलने गई थीं ...
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वह पंडितजी की आवाज का ही जादू है जब उसे सुनकर आप पाते हैं कि इस कठोर दुनिया में जहाँ आखिरी पेड़ भी ओझल हो रहा हो तब सरलता ही हमें इस अत्याचारी युग में और दु:ख में बचा लेगी जहाँ उस सभ्यता के अवशेष की तरह तैरता राग महसूस करते हैं ....
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उनका आभामंडल सुरों की पवित्रता से दमकता रहता है... सुर उनके गले में स्थान पाकर अपने आप को धन्य समझते हैं, क्योंकि वे जब भी गाते हैं बिलकुल सच्चा और शुद्ध गाते हैं ...
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वह इंदौर की एक सर्द रात थी जब वैष्णव विद्यालय के खुले प्रांगण में रसिकजन पंडित भीमसेन जोशी का गायन सुनने के लिए उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उस वक्त वे बीमार थे। विद्यालय के एक छोटे से कमरे में ...
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कभी-कभी ईश्वर किसी पर इतना कृपालु हो जाता है कि वह ईश्वर के देवदूत में बदल जाता है। लगता है जैसे ईश्वर ने अपनी ही इच्छा को पूरा करने के लिए उस देवदूत को चुना। वह किसी में अपना देवदूत इसलिए चुनता है कि
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