जगदीश चंद्र बोस थे वायरलेस के असली आविष्कारक
30 नवंबर को जन्मदिन पर विशेष
जन्म : 30 नवंबर 1858 मृत्यु : 23 नवंबर 1937 रेडियो के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बेतार टेलीग्राफी प्रौद्योगिकी के आविष्कार का श्रेय मार्कोनी ले गए, लेकिन जगदीश चंद्र बोस इसके असली हकदार थे। एक गैर पेशेवर विज्ञान इतिहासकार ने साक्ष्य उपलब्ध कराए थे, जिसमें इस विश्वास को पुख्ता करने की कोशिश की गई कि बेतार (वायरलेस) के असली आविष्कारक जगदीश चंद्र बोस थे।भौतिक विज्ञानी जी मार्कोनी ने अटलांटिक महासागर से उस पार पहला बेतार संदेश भेजा था, लेकिन विज्ञान इतिहासकार प्रोबिर बंद्योपाध्याय ने साक्ष्य देकर साबित करने कोशिश की कि यह दावा सचमुच विवादास्पद है।हालांकि मार्कोनी को 1909 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से इस अविष्कार के लिए सम्मानित किया गया था। जिस विशेष उपकरण अर्थात कोहेरर का उपयोग मार्कोनी ने किया, बोस उसे पहले ही बना चुके थे।कोलकाता स्थित बोस संस्थान के निदेशक प्रोफेसर शिवाजी राहा ने कहा हालांकि रेडियो के अविष्कार के संबंध में बोस को उनका उचित सम्मान नहीं मिला, लेकिन उनका जुझारूपन ऐतिहासिक है। जैसी वैज्ञानिक अभिरुचि उन्होंने दिखाई वह दुर्लभ है।न्यूयॉर्क स्थित संस्था ‘इलेक्ट्रानिक्स एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स (आईईईई) ने अपनी कार्रवाइयों के संबंध में एक प्रकाशन किया, जिसमें बंद्योपाध्याय ने जगदीश चंद्र बोस के समर्थन में उचित साक्ष्य पेश किया है कि बेतार के अविष्कार का श्रेय बोस को जाता है।संस्था ने कुछ वर्ष पहले डायोड के अविष्कार की सौवीं और ट्रांजिस्टर की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक समारोह के उपलक्ष्य में यह विशेष प्रकाशन किया। बंद्योपाध्याय खुद भी अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित जानसन अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र में उपग्रह और संचार इंजीनियर हैं।उनके अनुसार मार्कोनी ने इतालवी नौसेना अधिकारी की मदद से रैखिक नली के आकार के ‘लौह पारा लौह’ का सेल्फ रिकवरिंग कोहेरर के निर्माण का दावा किया था। संभवत: यह दावा जांचकर्ताओं को इसके पीछे की सच्चाई की भनक न लगने के लिए किया गया था।मार्कोनी ने अपने निष्कर्ष में दावा किया था कि उन्होंने टेलीफोन डिटेक्टर के मध्यम से एक लौह पारा लौह कोहेरर भेजा था। बोस ने 1898 में इस कोहेरर की खोज की थी।मार्कोनी ने बेतार ट्रांसमीटर में सुधार का जो दावा किया था, उसके संबंध में बंद्योपाध्याय ने कहा-वह एक प्रकार की मधुमक्खी की तरह थे, जो विभिन्न फूलों से मकरंद जमा करते थे। मार्कोनी ने 1899 में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच इंग्लिश चैनल के दोनों ओर बेतार संचार (वायरलेस कम्युनिकेशंस) स्थापित कर दिखाया था।जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को हुआ था। वर्ष 1885 में वे कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर बने और यहां उन्होंने भौतिक विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान से संबंधित कई प्रयोग किए।प्रेसीडेंसी कॉलेज से 1915 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने 1917 में बोस संस्थान (बसु विज्ञान मंदिर) की स्थापना की। इस संस्थान के वर्तमान निदेशक और अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में अनुसंधान कार्य कर चुके राहा ने कहा कि औपनिवेशिक शासन में बोस ने जो साहस दिखाया, वह भारत में एक मिसाल है।बोस को 1916 में नाइटहुड और 1920 में ब्रिटेन में रॉयल सोसाइटी ऑफ साइंस के फेलो के रूप में सम्मानित किया गया। 23 नवंबर 1937 को उनका निधन हो गया। वर्ष 1899 में लंदन में रॉयल सोसाइटी के समक्ष पेश किए अपने अनुसंधान पत्र में बोस ने संवेदनशील उपकरण के खोज की घोषणा की थी, जिससे लंबी दूरी तक बेतार संचार संभव है।इसी कारण मांग की जाती है कि बेतार टेलीग्राफी की खोज के लिए 1909 में मार्कोनी के साथ ही बोस को भी नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए था।राहा ने कहा आज की शिक्षा पद्धति भावी पीढ़ी के वैज्ञानिक तैयार करने के बजाय ग्रेड दिलाने के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इसमें सुधार की जरूरत है। इसमें आमूलचूल परिवर्तन के लिए व्यापक बहस की जरूरत है।