स्वामी सुमेधानंद- मैं चुनाव लड़ सकता हूं, बशर्ते...
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और वैदिक आश्रम पिपराली (सीकर) के अध्यक्ष स्वामी सुमेधानंद सरस्वती राजनीति को अछूत नहीं मानते और न ही उन्हें चुनाव लड़ने से परहेज है। अपने सामाजिक कार्यक्रमों के जरिए वे राजस्थान के करीब नौ जिलों में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। ...और यदि वे संसद पहुंचते हैं तो यह पहला अवसर भी नहीं होगा, क्योंकि इससे पहले भी कई भगवाधारी संसद के गलियारों की शोभा बढ़ा चुके हैं। वे मानते हैं कि राजनीति में धर्म का होना परम आवश्यक है। हाल ही में पिपराली आश्रम में स्वामीजी ने वेबदुनिया से विशेष बातचीत के दौरान धर्म, राजनीति और भारत की वर्तमान स्थिति पर खुलकर विचार रखे। प्रस्तुत हैं स्वामीजी से बातचीत के प्रमुख अंश...क्या संतों को राजनीति में आना चाहिए?संत राजनीति में आ सकते हैं, लेकिन यदि वे भी राजनेताओं जैसा जीवन जिएंगे तो और ज्यादा गड़बड़ी होगी। आज देखने में आता है कि संतों के तामझाम भी नेताओं जैसे हैं। उनके पास बेतहाशा पैसा है, एयरकंडीशंड कमरे हैं, भोग की सभी वस्तुएं उनके पास उपलब्ध हैं, 50-50 लाख की गाड़ियां उनके आश्रमों में खड़ी रहती हैं। अब यदि ऐसे संत राजनीति में आएंगे तो भ्रष्टाचार को बढ़ाएंगे ही।दरअसल, राजनीति में तपस्वी और त्यागी को लोगों को आना चाहिए, जिनमें अपने लिए संग्रह की प्रवृत्ति न हो, किसी प्रकार की इच्छा न हो। ऐसे लोग राजनीति में आएंगे तो निश्चित ही समाज और देश का भला होगा और यदि संग्रह के लिए आएंगे तो बिगाड़ होगा। संत भी यदि कमाना चाहेगा तो गड़बड़ ही करेगा।क्या आप राजनीति में आना पसंद करेंगे?मैं राजनीति से दूर नहीं भागता न ही उसे अछूत मानता हूं। पिछली बार सीकर लोकसभा से मेरा नाम भेजा भी गया था। मेरे पास उस समय लोग आए थे। मैंने उनसे एक ही बात कही थी कि मैं टिकट के लिए नेताओं के चक्कर नहीं लगाऊंगा। हां, यदि टिकट मिलता है तो हमारे जैसे व्यक्तियों को जरूर चुनाव लड़ना चाहिए। मुझे यदि कोई कहेगा तो मैं चुनाव लड़ूंगा। किसी भी व्यक्ति को समर्पण भाव से चुनाव मैदान में आना चाहिए। चुनाव भले ही वह किसी दल से लड़े, लेकिन जीतने के बाद दलगत भावना, धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। हमारे देश की व्यवस्थाओं को देखते हुए चुनाव के लिए दलगत राजनीति में तो आना ही पड़ेगा, लेकिन बाद में सबको समान भाव से देखना चाहिए। हालांकि आज ऐसा नहीं है। जरूरतमंद व्यक्तियों तक सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। बीपीएल कार्ड एक पार्टी के बनते हैं, गरीब के नहीं। चुनाव लड़ने के लिए पार्टी में आना राजनीतिक मजबूरी है। (वीडियो भी देखें)
क्या राजनीति में धर्म की जरूरत है?राजनीति में धर्म होना ही चाहिए, लेकिन है कहां? धर्म और संप्रदाय दोनों अलग-अलग हैं। धर्म के 10 लक्षण जो हैं, वे राजनीति और राजनेताओं में होने चाहिए। सत्य, धैर्य, क्षमा, अक्रोध आदि लक्षणों को कौन नकार सकता है। यदि ये लक्षण राजनीति में आ जाएं तो काले धन की समस्या ही दूर हो सकती है साथ ही और भी कई बुराइयां दूर हो सकती हैं। हमारे भीतर आर्थिक पवित्रता होनी चाहिए। चाणक्य ने भी कहा है कि सबसे पवित्र पवित्रता अर्थ की ही होती है। पवित्रता होगी तो गलत काम नहीं होंगे।
मोदी के अलावा भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं... पढ़ें अगले पेज पर....
क्या आपको लगता है कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना चाहिए?
भाजपा के पास फिलहाल दूसरा कोई चेहरा नहीं है, जिसमें जुझारूपन हो, रचनात्मक काम करने की प्रवृत्ति हो और राष्ट्रीय सोच हो। गुजरात दंगों के अलावा मोदी के ऊपर कोई ऐसा कोई दाग नहीं है, जिससे उन पर अंगुली उठ सके। गुजरात में शांति है। यदि मोदी सांप्रदायिक होते तो गुजरात में हर साल दंगे होते। कुछेक मामलों को छोड़ दें तो गुजरात के मुसलमानों की ओर से ऐसी कोई बात नहीं आई, जिसमें उन्होंने कहा हो कि उनका शोषण हुआ हो या फिर उनके साथ अत्याचार हुआ हो। हां, साम्यवादी सोच के व्यक्ति जरूर मोदी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।नए लोग राजनीति में क्यों नहीं आ पाते?कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों ने नए लोगों को राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया। बड़े नेताओं को चाहिए कि वे चरित्रवान लोगों को मौका दें। ऐसी व्यवस्थाएं होनी चाहिए जिससे साधनहीन व्यक्ति भी राजनीति में आ सकें।राजनेताओं के चारित्रिक पतन के क्या कारण हैं?राजनेताओं के चारित्रिक पतन का सबसे बड़ा कारण सुविधाओं की अधिकता होना है। भोग की ज्यादा सुविधाएं होने के कारण व्यक्ति चारित्रिक पतन होता है। आवश्यकता इस बात की है कि राजनीति में पैसे के प्रभुत्व को कम किया जाना चाहिए। खासतौर पर चुनाव कम खर्चे में होने चाहिए। इसका सकारात्मक पक्ष यह होगा कि अच्छी सोच, चरित्र और बौद्धिक स्तर वाले लोग आगे आ सकेंगे। चुनावी व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण गलत लोग राजनीति में आ रहे हैं। भोग-विलास का जीवन आज स्टेटस बन गया है।हिन्दुत्व की बात करने वाले को सांप्रदायिक करार क्यों दे दिया जाता है?इस तरह किसी भी व्यक्ति को सांप्रदायिक करार देना गलत है। यदि कोई अपनी विचारधारा को बढ़ाने की बात करता है तो इसमें दूसरे के अधिकारों का हनन कहां होता है? यह गलत मानसिकता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजनीति में संप्रदाय और जाति को वोट बैंक मान लिया गया है। हिन्दू को सांप्रदायिक करार देने से दूसरे संप्रदाय के लोग प्रसन्न होते हैं। ...और जहां देश की बात हो तो वहां यह बातें गौण हो जाती हैं। व्यक्तिगत स्तर पर ही इनको महत्व देना चाहिए। हर व्यक्ति अपनी धार्मिक पद्धति अपनाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन इसे राष्ट्र पर नहीं थोपा जाना चाहिए। थोपी गई चीज प्रभावशाली नहीं होती। हम अपने आदर्शों को एक दूसरे के सामने रखें, उस पर सात्विक बहस और संवाद करें फिर जिसको जो अच्छा लगेगा वह उसे स्वीकार कर लेगा।
पाकिस्तान को देना होगा कड़ा जवाब... पढ़ें अगले पेज पर...
क्या आप भारत की वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हैं?आज भारत तीन स्थानों पर जूझ रहा है- सीमा पर, आर्थिक मोर्चे पर और आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर। देश के सामने ये तीन बड़े संकट हैं। ऐसे में स्थिति को संतोषजनक कैसे कह सकते हैं। सीमा पर रोज अतिक्रमण की कोशिशें हो रही हैं। देश का मुद्रा संकट किसी से छिपा नहीं है। तीनों ही मोर्चों पर दृढ़ता से काम करने की जरूरत है। सीमा पर सेना की शक्ति को बढ़ाना चाहिए, आर्थिक शक्ति बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहिए। भ्रष्टाचार जब तक खत्म नहीं होगा तब तक वैश्विक स्तर पर हमारी प्रतिष्ठा कायम नहीं होती। देश के प्रति विश्वास कायम नहीं होगा। कोई पूंजी निवेश नहीं करेगा। आंतरिक सुरक्षा के लिए तुच्छ राजनीतिक दृष्टिकोण को खत्म करना चाहिए। भाषा, प्रांत आदि के नाम पर उग्रवाद पनप रहा है। राजनीति पार्टियों को अपने स्वार्थ के लिए इसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए। राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए।क्या पाकिस्तान का कोई इलाज है?पाकिस्तान हो या फिर चीन, जब तक उनके मन में हमारे प्रति भय का भाव नहीं होगा तब तक वे हमसे प्रेम नहीं करेंगे। उसके लिए देश को मजबूत बनाना पड़ेगा। शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम शामिल होने चाहिए जिससे विद्यार्थियों में देशभक्ति भावना जागृत हो। कारगिल युद्ध के समय ही ऐसा देखने को मिला था।जीवन में धर्म की क्या उपयोगिता है?दरअसल, धर्म को हमने बाह्य प्रतीक मान लिया है, जबकि धर्म का संबंध आत्मा से है। जिससे आत्मिक उत्थान हो उसे धर्म कहते हैं। धर्म व्यक्ति को परिमार्जित करता है। इससे आत्मिक, मानसिक और बौद्धिक पवित्रता आती है। आत्मिक पवित्रता होगी तो चरित्र अच्छा होगा। पवित्रता होगी तो व्यक्ति में दया, सौहार्द और प्रेम का भाव जागृत होगा, जबकि मलिनता से ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न होता है। धर्म से व्यक्ति गतिशील होता है। इससे परोपकार की भावना जागृत होती है। धर्म का अर्थ है पवित्रता और गतिशीलता।
मुस्लिम से बनवाई गोशाला... पढ़ें अगले पेज पर...
मुस्लिम से बनवाई गोशाला : स्वामीजी ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि उन्होंने किस तरह एक मुस्लिम व्यक्ति को गोशाला बनाने के लिए प्रेरित किया। सीकर जिले के किरडोली गांव में मकसूद नामक इस व्यक्ति ने अपने पैसे से गोशाला बनाई। आज इस गोशाला करीब 150 गाएं हैं। साथ ही स्वामीजी साल में दो बार सीकर में जनसहयोग से सफाई अभियान भी चलाते हैं। वे बताते हैं कि इस दौरान करीब 4000 लोग झाड़ू लेकर सड़क पर आ जाते हैं। वे मानते हैं कि संत यदि थोड़ी भी रुचि लें तो समाज सुधार हो सकता है।दिखाई ताकत : संसद में जाने की इच्छा रखने वाले स्वामी सुमेधानंद ने पिछले दिनों जाट समुदाय को एकजुट कर अपनी ताकत भी दिखाई। बठोठ गांव में लोठू जाट की प्रतिमा स्थापित करने के एक कार्यक्रम में करीब 40 हजार से ज्यादा समाज के लोग शामिल हुए। इस कार्यक्रम में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल बलराम जाखड़, पूर्व सांसद सुभाष महरिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सांसद महादेव खंडेला, ज्ञानप्रकाश पिलानिया समेत कई भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों ने कार्यक्रम में शिरकत की।स्वामीजी सीकर का अलावा चूरू, झुंझनू, हनुमानगढ़, बीकानेर, नागौर, जयपुर ग्रामीण आदि जिलों में समाज के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उनकी प्रेरणा से समाज के साधन संपन्न लोग सुविधाएं भी जुटाते हैं।