China is biggest challenge for India: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना तनाव और सीमा विवाद हमेशा से सुर्खियां बटोरता रहा है, लेकिन अब वैश्विक भू-राजनीति और सैन्य समीकरणों में आए बदलावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के लिए पाकिस्तान से कहीं बड़ी और जटिल चुनौती चीन के रूप में उभर रही है।
चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति, वैश्विक संसाधनों पर नियंत्रण, क्षेत्रीय विस्तारवादी नीतियां और तकनीकी प्रभुत्व भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। रक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि 2027 तक चीन ताइवान पर कब्जा करने की क्षमता विकसित कर रहा है, जिसका वैश्विक शांति पर गहरा असर पड़ सकता है। बीजिंग के पास बन रहा नया विशाल सैन्य कमांड सेंटर भी भारत और वैश्विक समुदाय के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है। इन सभी पहलुओं पर विस्तार से समझें कि भारत को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को क्यों बदलना चाहिए।
चीन की सैन्य शक्ति : चीन की सैन्य शक्ति में पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को 2027 तक विश्व-स्तरीय सेना बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की स्थापना की शताब्दी से मेल खाता है। 2025 तक चीन का रक्षा बजट 300 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, जो भारत के रक्षा बजट से कई गुना ज्यादा है। चीन ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर युद्ध, अंतरिक्ष युद्ध और हाइपरसोनिक हथियारों जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रगति की है। पेंटागन के अनुमान के मुताबिक, 2024 के मध्य तक चीन के पास 600 से अधिक परमाणु हथियार थे और यह संख्या 2035 तक 1500 तक पहुंच सकती है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव, खासकर 2020 के गलवान संघर्ष के बाद, यह दर्शाता है कि चीन भारत के लिए सीधा सैन्य खतरा है। जहां पाकिस्तान की सैन्य क्षमता भारत के मुकाबले सीमित है, वहीं चीन की ताकत केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए चुनौती है। चीन की नौसेना, जो अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, भारतीय समुद्री हितों के लिए खतरा पैदा करती है। उसकी 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति, जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में बंदरगाहों का निर्माण और नियंत्रण शामिल है, भारत को रणनीतिक रूप से घेरने की कोशिश का हिस्सा है।
बीजिंग मिलिट्री सिटी : चीन बीजिंग के दक्षिण-पश्चिम में एक विशाल सैन्य कमांड सेंटर बना रहा है, जिसे 'बीजिंग मिलिट्री सिटी' के नाम से जाना जा रहा है। यह 1500 एकड़ में फैला परिसर पेंटागन से भी बड़ा होने की उम्मीद है। 2024 के मध्य में शुरू हुआ यह निर्माण कार्य 2027 तक PLA की शताब्दी के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है। उपग्रह चित्रों से पता चलता है कि इस परिसर में गहरे भूमिगत बंकर बनाए जा रहे हैं, जो अमेरिकी 'बंकर बस्टर' Munitions और संभवतः परमाणु हमलों का सामना करने में सक्षम होंगे। यह सुविधा युद्धकालीन कमांड सेंटर के रूप में डिजाइन की गई है, जो चीनी नेतृत्व को युद्ध की स्थिति में सुरक्षित रखने के लिए बनाई जा रही है।
यह नया कमांड सेंटर चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक है और PLA की कमांड संरचना में नेटवर्क-केंद्रित युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए बनाया गया है। यह सेंटर न केवल ताइवान के खिलाफ संभावित सैन्य कार्रवाई को समन्वित करने में सक्षम होगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य रणनीतिक लक्ष्यों को भी बढ़ावा दे सकता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।
ताइवान पर संभावित कब्जा और वैश्विक शांति पर प्रभाव : रक्षा विशेषज्ञों के बीच यह चर्चा तेज हो रही है कि चीन 2027 तक ताइवान पर कब्जा करने की सैन्य क्षमता विकसित करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। पूर्व CIA निदेशक बिल बर्न्स ने उल्लेख किया है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने PLA को 2027 तक ताइवान पर सफल आक्रमण के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि चीन निश्चित रूप से 2027 में आक्रमण करेगा, लेकिन यह उनकी गंभीर महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
ताइवान वैश्विक शांति के लिए अत्यंत संवेदनशील है, क्योंकि यह एक प्रमुख तकनीकी केंद्र है और वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करता है। यदि चीन ताइवान पर कब्जा करता है, तो यह न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदल देगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। भारत के लिए, ताइवान पर चीन का संभावित नियंत्रण कई कारणों से चिंताजनक है:यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
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यह भारत की तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि भारत ताइवान से सेमीकंडक्टर और अन्य तकनीकी घटकों पर निर्भर है।
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यह क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों पर दबाव बढ़ाएगा, जिसमें भारत एक प्रमुख भागीदार है।
वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी संसाधन : चीन का एकाधिकार : दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements - REE) आधुनिक तकनीक का आधार हैं। चीन ने वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति पर लगभग एकाधिकार स्थापित कर लिया है, जो 2023 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक उत्पादन का 60-70% नियंत्रित करता है। चीन ने इन तत्वों की रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग में भी अपनी स्थिति मजबूत की है।
भारत, जो अपनी तकनीकी और रक्षा जरूरतों के लिए इन तत्वों पर निर्भर है, इस क्षेत्र में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए तेजी से कदम उठा रहा है। चीन ने बार-बार इस शक्ति का उपयोग भू-राजनीतिक हथियार के रूप में किया है, जैसे कि 2010 में जापान के खिलाफ दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर। यह भारत के लिए एक चेतावनी है कि चीन भविष्य में इस शक्ति का उपयोग भारत के खिलाफ भी कर सकता है।
क्षेत्रीय भू-राजनीति में चीन का विस्तार : चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) और अन्य क्षेत्रीय रणनीतियों ने उसे दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति बना दिया है। श्रीलंका, मालदीव, नेपाल और बांग्लादेश जैसे भारत के पड़ोसी देशों में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है। श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट्स भारत को रणनीतिक रूप से घेरने की चीन की रणनीति का हिस्सा हैं।
चीन का दक्षिण चीन सागर में आक्रामक रुख, ताइवान के प्रति उसकी नीतियां, और क्वाड जैसे गठबंधनों पर उसका दबाव यह दर्शाता है कि वह क्षेत्रीय भू-राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। भारत, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, को इन गतिविधियों से सीधा खतरा है। इसके विपरीत, पाकिस्तान की क्षेत्रीय प्रभाव की क्षमता सीमित है और वह मुख्य रूप से चीन की रणनीति का एक हिस्सा बनकर ही भारत के लिए चुनौती पैदा करता है।
एशिया और अफ्रीका में निवेश से चीन की घुसपैठ : चीन ने BRI के तहत एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों में भारी निवेश किया है, जिसे अक्सर 'ऋण-जाल कूटनीति' (Debt-Trap Diplomacy) के रूप में देखा जाता है। इस रणनीति के तहत, चीन इन देशों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करता है, जिन्हें चुकाने की क्षमता अक्सर इन देशों के पास नहीं होती। उदाहरण के लिए, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह परियोजना के लिए चीन से लिए गए ऋण को चुकाने में असमर्थता के कारण श्रीलंका को 2017 में इस बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को पट्टे पर देना पड़ा। इसी तरह, अफ्रीका में जिबूती, केन्या और जाम्बिया जैसे देशों में चीन ने भारी निवेश किया है, जिससे ये देश भारी कर्ज में डूब गए हैं। जिबूती में, चीन ने एक रणनीतिक सैन्य अड्डा भी स्थापित किया है।
दक्षिण एशिया में, नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश जैसे देशों में चीन की परियोजनाएं भारत के लिए विशेष चिंता का विषय हैं। इन निवेशों के माध्यम से चीन न केवल आर्थिक निर्भरता बढ़ाता है, बल्कि इन देशों की नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता भी हासिल करता है, जो भारत की रणनीतिक स्थिति के लिए खतरा है।
वैश्विक ऑटो उत्पादन को प्रभावित करने की चीन की क्षमता : 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान, जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान हुआ, चीन ने यह साबित कर दिया कि वह वैश्विक ऑटोमोटिव उद्योग को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। सेमीकंडक्टर चिप्स और अन्य महत्वपूर्ण घटकों की आपूर्ति में कमी के कारण वैश्विक ऑटोमोबाइल उत्पादन में भारी गिरावट आई। चीन, जो इन चिप्स और अन्य घटकों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, ने इस संकट के दौरान अपनी स्थिति को और मजबूत किया।
भारत का ऑटोमोटिव उद्योग इस तरह के व्यवधानों के प्रति संवेदनशील है। यदि चीन भविष्य में भारत के खिलाफ आर्थिक दबाव बनाने के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखला की शक्ति का उपयोग करता है, तो भारत की अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
चीन की बढ़ती शक्ति के अन्य आयाम : चीन की बढ़ती शक्ति केवल सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। इसके अन्य आयाम भारत और वैश्विक समुदाय के लिए भी गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं:
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तकनीकी प्रभुत्व : चीन ने 5G तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में विश्व स्तर पर नेतृत्व हासिल करने की दिशा में तेजी से प्रगति की है। हुआवेई जैसे चीनी तकनीकी दिग्गजों ने वैश्विक 5G बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल की है।
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साइबर युद्ध क्षमता : चीन की साइबर युद्ध क्षमता विश्व में सबसे उन्नत में से एक है। वह साइबर हमलों, डेटा चोरी और प्रचार युद्ध के माध्यम से अन्य देशों की महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा प्रणालियों को लक्षित करने में सक्षम है। भारत में हाल के वर्षों में कई साइबर हमले, विशेष रूप से बिजली ग्रिड और सरकारी संस्थानों पर, चीन से जुड़े होने का संदेह रहा है।
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अंतरिक्ष प्रभुत्व : चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भी तेजी से प्रगति की है। उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसमें चंद्र मिशन, मंगल मिशन और स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन (Tiangong) शामिल है, वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में उसकी स्थिति को मजबूत करता है। इसके अलावा, चीन ने उपग्रह-रोधी हथियारों (Anti-Satellite Weapons) का विकास किया है।
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क्वांटम कम्प्यूटिंग और उन्नत प्रौद्योगिकी : चीन क्वांटम कम्प्यूटिंग में भी अग्रणी बनने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। 2020 में, चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होंने दुनिया का सबसे तेज़ क्वांटम कम्प्यूटर विकसित किया है, जो पारंपरिक सुपर कम्प्यूटर्स से लाखों गुना तेज है। यह तकनीक क्रिप्टोग्राफी, साइबर सुरक्षा, और डेटा विश्लेषण में क्रांति ला सकती है। भारत, जो अभी क्वांटम कम्प्यूटिंग में प्रारंभिक चरण में है, को इस क्षेत्र में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। चीन की यह प्रगति भारत की साइबर सुरक्षा और रक्षा प्रणालियों के लिए खतरा पैदा कर सकती है।
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सॉफ्ट पावर और प्रचार : चीन ने अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है। कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट्स, चीनी मीडिया आउटलेट्स जैसे CGTN, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से चीन वैश्विक स्तर पर अपनी छवि को बेहतर बनाने और अपने हितों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है।
भारत के लिए रणनीतिक कदम : चीन की बढ़ती शक्ति और उसके बहुआयामी खतरे को देखते हुए, भारत को अपनी रणनीति को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। कुछ महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हो सकते हैं :
1. सैन्य आधुनिकीकरण : भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं, विशेष रूप से साइबर और अंतरिक्ष युद्ध में, निवेश बढ़ाने की जरूरत है। स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना और क्वाड जैसे गठबंधनों के साथ सहयोग मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
2. संसाधनों में आत्मनिर्भरता : भारत को अपने दुर्लभ पृथ्वी संसाधनों का दोहन करने और उनकी प्रोसेसिंग क्षमता बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम करना चाहिए।
3. क्षेत्रीय कूटनीति : भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए ताकि चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
4. आर्थिक विविधीकरण : भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखला को विविधीकृत करने और चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम करना चाहिए।
5. ताइवान के साथ सहयोग : भारत को ताइवान के साथ तकनीकी और आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर विचार करना चाहिए, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर और अन्य महत्वपूर्ण तकनीकों के क्षेत्र में।
6. विकासशील देशों में निवेश : भारत को दक्षिण एशिया और अफ्रीका में अपने निवेश और विकास सहायता को बढ़ाना चाहिए ताकि चीन की 'ऋण-जाल कूटनीति' का मुकाबला किया जा सके।
7. तकनीकी और साइबर सुरक्षा : भारत को अपनी तकनीकी बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को मजबूत करने और स्वदेशी 5G और AI तकनीकों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।
8. सॉफ्ट पावर का विस्तार : भारत को अपनी सांस्कृतिक और कूटनीतिक उपस्थिति को बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।
पाकिस्तान के साथ भारत के ऐतिहासिक विवाद और तनाव भले ही सुर्खियों में रहते हों, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से चीन भारत के लिए कहीं अधिक बड़ी और जटिल चुनौती है। उसकी सैन्य शक्ति, 2027 की शताब्दी समारोह के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं, बीजिंग के पास नया सैन्य कमांड सेंटर, ताइवान पर संभावित कब्जे की तैयारी, वैश्विक संसाधनों पर नियंत्रण, एशिया और अफ्रीका में निवेश के माध्यम से घुसपैठ, और तकनीकी, साइबर, अंतरिक्ष, और सॉफ्ट पावर जैसे क्षेत्रों में बढ़ता प्रभुत्व भारत के रणनीतिक हितों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। समय की मांग है कि भारत अपनी प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित करे और एक ऐसी रणनीति बनाए जो न केवल रक्षा, बल्कि आर्थिक, तकनीकी, और कूटनीतिक मोर्चों पर भी मजबूत हो।