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Written By WD

वोटिंग वृद्धि से आयोग और अलगाववादी खुश

-सुरेश एस डुग्गर

वोटिंग वृद्धि से आयोग और अलगाववादी खुश -
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मतदान से दोनों ही पक्ष चुनाव आयोग और अलगाववादी खुश हुए हैं। दोनों की खुशी का कारण यह है कि अगर इस बार कश्मीर में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है तो अलगाववादियों के बहिष्कार का भी प्रभाव दिखा है।

वर्ष 2009 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मुकाबले कश्मीर घाटी में मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है। इस जीत पर चुनाव आयोग तथा राज्य सरकार खुश हैं। यह बात अलग है कि चुनाव में हिंसा और आतंकी आह्वान के कारण अधिकतर लोग मतदान में शामिल नहीं हो सके मगर इस बार के मतदान प्रतिशत ने चुनाव आयेाग की लाज रख ली है।

याद रहे कि पीडीपी तथा नेकां के बीच जबरदस्त टकराव वाले अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में इस बार तमाम वारदातों के बावजूद मतदान 28 प्रतिशत के करीब पहुंचा था। हालांकि यह प्रतिशत 1998 के आंकड़े को तो नहीं छू पाया लेकिन 1999 के आंकड़े को अवश्य पार कर गया। अनंतनाग में वर्ष 1998 के लोकसभा चुनावों में 41.94 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया था तो 1999 के चुनावों में यह सबसे कम 27.79 था। वैसे इससे पहले आतंकवाद की शुरुआत में 1989 के चुनावों में यह 5.48 प्रतिशत ही रहा था।

इसी प्रकार की दशा श्रीनगर संसदीय क्षेत्र की थी जहां से डॉक्‍टर फारुक अब्दुल्ला तीसरी बार संसद में पहुंचने की कोशिशों में हैं लेकिन मतदान प्रतिशत में होने वाली वृद्धि ने उन्हें परेशान कर दिया है। पिछले चुनावों के मतदान प्रतिशत से इस बार एक प्रतिशत मतदान अधिक हुआ है अर्थात वर्ष 2004 में हुए 18.09 प्रतिशत मतदान के आंकड़े को इस बार के 27 प्रतिशत ने पार कर लिया है। वैसे 1998 में यह आंकड़ा 30.06 प्रतिशत था अर्थात इस बार के मतदान प्रतिशत ने 2004 के चुनावों के रिकॉर्ड को अवश्य तोड़ डाला है। यही हाल बारामुला संसदीय क्षेत्र का है जहां मतदाताओं ने दोनों पक्षों को खुश रखा है।

तीनों संसदीय क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत में हुई वृद्धि से चुनाव आयोग और राज्य सरकार जरूर उत्साहित हैं। उनके उत्साह का स्पष्ट कारण यह है कि मतदान प्रतिशत में वृद्धि ने उन तमाम शंकाओं को परे रख दिया जो मतदान प्रतिशत के 5 के आंकड़े से भी नीचे रहने के प्रति जताई जा रही थीं और हिंसा के प्रति अधिकारियों का कहना था कि इतनी हिंसा आज के युग में मतदान के साथ हमेशा ही जुड़ी रहती है।

इतना जरूर है कि अलगाववादी नेता तथा हुर्रियत कांफ्रेंस मतदान प्रतिशत 1998 के आंकड़े को पार न कर पाने को अपनी जीत बता पा रहे हैं। इन नेताओं के बकौल, कश्मीरी जनता ने उनके बहिष्कार के आह्वान पर ही मतदान में हिस्सा नहीं लिया जबकि जितना भी मतदान हुआ है उसके प्रति हुर्रियती नेताओं का आरोप था कि उसमें फर्जी और जबरदस्ती करवाया गया मतदान शामिल है।

स्थिति यह है कि परिस्थितियों का लाभ उठाने की कोशिश अब दोनों पक्षों द्वारा हो रही है। मतदान में कमी का श्रेय अगर हुर्रियत कांफ्रेंस ले रही है तो मतदान प्रतिशत में पिछले चुनावों के स्तर में हुई वृद्धि का सेहरा राज्य सरकार तथा चुनाव आयोग अपने सिर पर बांधने की कोशिशों में हैं। राज्य सरकार कहती है कि उसके शांति प्रयासों के कारण ही मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है।

कश्मीर के चुनाव का कड़वा स
मतदान के तीसरे चरण ने कश्मीर के मतदान के प्रति जो सच्चाई सामने लाई है वह बहुत ही रोचक और कड़वी है। दरअसल इसने कश्मीर के असली चेहरे को दर्शाया है जिसमें बहिष्कार करने वालों ने अफजल गुरु की शहादत को तो याद रखा पर मकबूल बट की शहादत को भूला दिया।

मुहम्मद अफजल गुरु के नाम से अधिकतर लोग वाकिफ होंगें और मकबूल बट के नाम को अधिकतर लोग भूला चुके होंगें। ठीक यही दशा आज कश्मीरियों की भी है जिन्होंने ऐसा ही किया। जानकारी के लिए मकबूल बट जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का संस्थापक सदस्य था जिसे 1984 में तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी।

मुहम्मद अफजल गुरु को भारतीय संसद पर आत्मघाती हमले के आरोप में पिछले साल फांसी पर चढ़ा दिया गया था। दोनों ही बारामुला-कुपवाड़ा संसदीय क्षेत्र के रहने वाले थे। कहीं पर मतदान करने वालों पर हुर्रियती बहिष्कार के आह्वान का पूरा असर था और कहीं वे इस आह्वान के साथ-साथ उन कश्मीरियों की शहादत को भी भूला बैठे थे जो पिछले 26 सालों से कश्मीर में तथाकथित आजादी की जंग लड़ रहे थे।

यही कारण था कि सोपोर में मतदान करने वाले मात्र एक परसेंट लोग थे जो अफजल गुरु की शहादत को याद रखते हुए मतदान प्रक्रिया से दूर रहे थे। हालांकि अफजल गुरु की विधवा तब्बसुम कहती थीं कि उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है कि कोई मतदान कर रहा है या नहीं, पर सोपोर के सीर जागिर गांव के लोग जरूर अफजल गुरु की शहादत को याद करते हुए कहते थे कि मतदान से दूर रहकर वे उसकी शहादत को प्रणाम करना चाहते हैं।

कुपवाड़ा जिले के त्रेगाम गांव में ऐसा नहीं था। इस गांव में जेकेएलएफ के संस्थापक सदस्य मकबूल बट का परिवार, जिसमें अब औरतें और उनकी मां ही बची हैं, रहता है। मकबूल बट की मां शामली बेगम के दिल पर कल उस समय करारी चोट लगी थी जब उसके पड़ौसी उससे बार-बार आकर पूछते थे कि वह वोट डालने के लिए क्‍यों नहीं गई।

त्रेगाम ने कल जमकर मतदान किया था। वैसे कश्मीर में मतदान के कई और रंग भी देखने को मिले थे। अगर कोई पत्थरबाजी के खौफ से घरों में दुबका रहा था तो कोई सुरक्षाबलों पर अत्याचारों के आरोप लगा मतदान से दूर रहा था। बावजूद इस सबके बारामुला-कुपवाड़ा संसदीय क्षेत्र में 40 परसेंट मतदान हुआ।