- दक्षिण से लेकर बॉलीवुड तक कैसी रही हैं सितारों की राजनीतिक पारियां
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नए दौर में कंगना से लेकर गोविंदा और उर्मिला तक तलाश रहे राजनीतिक भविष्य
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सुपरस्टार से लेकर टीवी कलाकारों तक ने आजमाई किस्मत, कुछ ही के सितारे चमक सके
Indian Celebrity in politics: आमतौर पर ज्यादातर नेता बहुत अच्छे अभिनेता होते हैं। जनता से झूठे वादे करना, राजनीतिक बयानबाजी करना और फिर मुकर जाना उनके बाएं हाथ का खेल होता है। ऐसे नेता राजनीति में अपने अभिनय की वजह से कामयाब भी होते रहे हैं, लेकिन फिल्मों में अभिनय करने वाले सितारे जब राजनीति में एंट्री करते हैं तो अक्सर बुरी तरह फ्लॉप हो जाते हैं।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि जो बहुत अच्छे एक्टर होते हैं वे राजनीति की एक्टिंग में फेल हो जाते हैं। हालांकि यह पूरी तरह से सही नहीं है, कुछ सितारे सियासत में नाकामयाब रहे तो वहीं हिंदी पट्टी से लेकर दक्षिण भारतीय सिनेमा के ऐसे कई अभिनेता रहे हैं, जिन्होंने राजनीति में भी फिल्मों में एक्टिंग की तरह ही झंडे गाड़े हैं। सियासत में पास और फेल होने के इस सिलसिले के बावजूद सितारों की राजनीति में आने की ये लालसा खत्म नहीं होती।
राजनीति में फिल्मी सितारों का मेला : बॉलीवुड से अमिताभ बच्चन से लेकर सुनील दत्त, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, मिथुन चक्रवर्ती, सन्नी देओल, संजय दत्त, शेखर सुमन, जया बच्चन, जया प्रदा, हेमा मालिनी, शबाना आजमी, रेखा तक तो दूसरी तरफ दक्षिण भारत की फिल्मी दुनिया से जय ललिता, एनटी रामाराओ, करुणानिधि, एमजी रामचंद्रन, रजनीकांत और कमल हासन तक ने सियासत में कदम रखा।
हाल ही में गोविंदा और कंगना रनौत की सियासत में एंट्री के बाद एक बार फिर से सिनेमा और सियासी दुनिया का ये गठजोड़ चर्चा में है।
गोविंदा फिर से आला रे : इसी गुरुवार को लोकप्रिय अभिनेता गोविंदा ने 14 साल बाद एक बार फिर से सियासत में एंट्री की है। इस बार उन्होंने एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना ज्वॉइन की है। इसके पहले वे कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं और अपने राजनीति में आने के फैसले को सबसे बुरा अनुभव बताकर उन्होंने इसे अलविदा कहा था। उन्होंने कहा था अपनी राजनीतिक पारी को वे हमेशा के लिए भूल जाना चाहते हैं, लेकिन एक बार फिर से राजनीति का ग्लैमर उन्हें सियासी गलियारों में खींच लाया। दूसरी पारी में कितना सफल रहेंगे ये तो वक्त ही बताएगा।
क्या कंगना बनेंगी सियासी क्वीन : कंगना रनौत बॉलीवुड क्वीन मानी जाती हैं। लेकिन पिछले कुछ साल से सनातन की पैरवी कर रही हैं। सरकार और राइटविंग की विचारधारा को सपोर्ट करती हैं। हिंदू और हिंदुत्व के पक्ष में बयानबाजी करती रही हैं। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कंगना को मंडी से टिकट दिया है। एक्टिंग और बोलने में तेजतर्रार कंगना रनौत सियासत में कितना सफल हो पाएगी, यह उनकी राजनीतिक पारी के बाद ही तय होगा। कंगना की राजनीतिक पारी उर्मिला मातोंडकर और नगमा की तरह धक्के खाएगी या कुछ सार्थक कर पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा।
उर्मिला मातोंडकर : मस्त गर्ल की राजनीति नहीं हुई मस्त : उर्मिला मातोंडकर ने 2019 में राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव के पहले राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस जॉइन की थी। उन्होंने उत्तर मुंबई सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा प्रत्याशी गोपाल शेट्टी से हार गईं। इसके 5 महीने बाद ही उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे के दौरान उन्होंने कहा था—
मेरी राजनीतिक और सामाजिक समझ बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए है, लेकिन मुंबई कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी के कारण मैं ऐसा नहीं कर पा रही हूं। इसके कुछ समय बाद उर्मिला ने शिवसेना जॉइन कर ली थी।
सबसे सफल दत्त साहब : मायानगरी मुंबई से राजनीति में आने वालों में सबसे सफल नाम सुनील दत्त का रहा। सुनील दत्त मनमोहन सरकार में राज्यसभा सांसद रहे। इसी सरकार में युवा और खेल विभाग के मंत्री बनाया गया। राजनीति में रहते हुए सुनील दत्त बेहद सक्रिय रहे, कई बार सडक पर उतर आते थे। वे राजनीति में सबसे सफल अभिनेता माने जाते हैं।
एंग्री यंग मेन की सियासत : बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने 1980 के दशक में राजनीति में हाथ आजमाया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अपने दोस्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए अमिताभ बच्चन 1984 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे थे। इस सीट पर यूपी के पूर्व सीएम एचएन बहुगुणा को हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। लेकिन बोफोर्स कांड में नाम आने के बाद अमिताभ ने राजनीति से तौबा कर लिया।
विनोद खन्ना : संसद से सन्यास तक : विनोद खन्ना ने अभिनय और फिल्मों से सन्यास लेने के बाद राजनीति में कदम रखा और दूसरे अभिनेताओं की तुलना में उनका यह सफर कहीं ज्यादा सफल रहा। विनोद खन्ना साल 1997 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे और 1998 में गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद चुने गए। 2014 के लोक सभा चुनाव में जीत दर्ज कर चौथी बार संसद पहुंचे। इससे पहले 1999 और 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भी वह जीते थे। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में वे हार गए। 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रीय मंत्री भी रहे। उन्हें विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री भी बनाया गया था। कुछ समय के लिए विनोद खन्ना सब से विदा लेकर ओशो की शरण में चले गए और सन्यास ले लिया था।
शत्रुघ्न सिन्हा की राजनीति : अपने 32 साल से सियासी करियर में शत्रुघ्न सिन्हा 2 बार राज्यसभा सदस्य, 1 बार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, जहाजरानी मंत्री, लोकसभा सांसद जैसे बड़े पदों पर रह चुके हैं। 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा छोड़ दी। अब शत्रुघ्न सिन्हा 2024 लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं।
राज बब्बर की राजनीति : राज बब्बर फिरोजाबाद से सपा के टिकट पर सांसद चुने थे। 2006 में सपा से निलंबित होने के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। अभी वे आगरा से कांग्रेस के टिकट पर सांसद हैं।
धर्मेंद्र, खन्ना और देओल : सुपर स्टार काका राजेश खन्ना, हीमेन धर्मेंद्र, सन्नी देओल ने भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई। लेकिन इन अभिनेताओं का राजनीतिक सफर ठीकठाक ही रहा।
सियासी मैदान में रूप की रानियां : सियासत की उठापटक और राजनीतिक समीकरण की लालसा से रूपहले पर्दे की खूबसूरत रानियां भी नहीं बच सकीं। जया बच्चन, जया प्रदा, हेमा मालिनी, शबाना आजमी और रेखा जैसी खूबसूरत हसीनाओं ने भी राजनीति में दाव पेच आजमाए। हालांकि इनमें से जया बच्चन, हेमा मालिनी और कुछ हद तक जया प्रदा के अलावा कोई भी हसीना अपना राजनीतिक जोहर नहीं दिखा पाईं। जया बच्चन समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद रह चुकी हैं। हेमा मालिनी भाजपा से मथुरा सांसद हैं। जया प्रदा ने सपा और टीडीपी से राजनीति किस्मत आजमाई और वर्तमान में भाजपा में कार्यकर्ता हैं। रेखा राज्यसभा सांसद रही हैं,जबकि शबाना आजमी भी राज्यसभा सांसद रही हैं।
दक्षिण भारत के सितारों के सफल सियासी चेहरे : तमिलनाडु में जयललिता रही हों, या करुणानिधि या फिर एमजी रामचंद्रन। फिल्मी जगत से जुड़ी ये हस्तियां मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रही। एमजी रामचंद्रन पहले दिग्गज अभिनेता थे, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। अविभाजित आंध्रप्रदेश में एनटी रामाराव ने भी यह उपलब्धि हासिल की थी। इधर अन्नादुरई से लेकर कमल हासन तक तमिलनाडु की राजनीति के केंद्र में रहे। तमिलनाडु के पहले सीएम अन्नादुरई का नाता फिल्मों से रहा। उन्होंने फिल्मों की स्क्रिप्ट्स में द्रविड़ विचारधारा को परोसने की शुरूआत की थी। 1952 की एक तमिल फिल्म पराशक्ति इस मामले में टर्निंग पॉइंट कही जाती है, जिसकी स्क्रिप्ट करुणानिधि ने लिखी थी। बता दें कि द्रविड़ पार्टियों के अब तक 7 मुख्यमंत्रियों में 5 का सीधा संबंध फिल्मी दुनिया से या तो बतौर एक्टर रहा या लेखक और कलाकार के तौर पर रहा है। इसी तरह आंध्रप्रदेश में भी फिल्मी कलाकारों ने राजनीति में बड़ी परिभाषाएं गढ़ीं। वहीं, नई पॉलिटिकल पार्टी बनाने के मामले में साउथ फिल्म इंडस्ट्री के चिंरजीवी, पवन कल्याण जैसे सितारों के नाम शामिल हैं। एमजीआर हो या रजनीकांत इन सितारों का फैन बेस दक्षिण भारत में जिस स्तर तक रहा है, संभवत: हिन्दी या उत्तरी सिनेमा के किसी सितारे का नहीं रहा। दक्षिण भारत में कलाकारों को भगवान की तरह पूजा जाता है।
कुल मिलाकर राजनीति में दक्षिण भारत के सितारे तो बहुत सफल हुए हैं, लेकिन हिंदी पट्टी के अभिनेता और अभिनेत्रियां राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाए हैं। जो लोग हाल ही में राजनीति में आए हैं, उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह तो आने वाला कल ही बता सकेगा।