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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 26 अगस्त 2022 (19:57 IST)

Inside story: राहुल गांधी के चलते क्या सच में कमजोर हुई कांग्रेस?

Inside story: राहुल गांधी के चलते क्या सच में कमजोर हुई कांग्रेस? - Why Congress weakened under the leadership of Rahul Gandhi?
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने ‘भारत जोड़ो अभियान’ के जरिए कांग्रेस में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे राहुल गांधी के नेतृत्व और पार्टी चलाने की उनकी कार्यप्रणाली फिर सवालों के घेरे में आ गई है। पांच दशक तक कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रहने वाले गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफे के साथ राहुल गांधी पर लगाए आरोपों ने राहुल के काम करने के तरीके को कठघरे में खड़ा किया है। 
 
राहुल पर आजाद के हमले-पांच दशक तक कांग्रेस में रहने वाले गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे अपने पांच पन्नों के इस्तीफे में साफ लिखा कि राहुल गांधी के आने से कांग्रेस पूरी तरह बर्बाद हुई और आज  चाटुकार लोग पार्टी चला रहे है। आजाद ने लिखा कि  दुर्भाग्य से पार्टी में जब राहुल गांधी की एंट्री हुई और जनवरी 2013 में जब आपने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तब उन्होंने पार्टी के सलाहकार तंत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया। आजाद ने आगे लिखा कि राहुल की एंट्री के बाद सभी सीनियर और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी सनकी लोगों का नया ग्रुप खड़ा हो गया और यही पार्टी को चलाने लगा। इसके साथ ही आजाद ने लिखा कि कांग्रेस में हालात अब ऐसी स्थिति पर पहुंच गए है, जहां से वापस नहीं आया जा सकता।

2019 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की हार के बाद एक के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का पार्टी को अलविदा कहने से कांग्रेस अब अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। गुलाम नबी आजाद सेस पहले  कांग्रेस से सीनिय नेता आनंद शर्मा ने भी पार्टी के अंदर अपने आत्मसम्मान का मुद्दा उठा चुके है। बुधवार को कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले जयवीर सिंह शेरगिल ने भी राहुल की भूमिका पर सवाल उठाए थे। 

कांग्रेस के अंदरुनी राजनीति को बहुत करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में साफ कहा था कि राहुल गांधी कांग्रेस में फिट नहीं हो पा रहे है। राहुल गांधी का कांग्रेस को लेकर नजरिया बहुत अलग है। राहुल आज की स्थिति में कांग्रेस में फिट नहीं हो पा रहे है और एक तरह से कांग्रेस के खिलाफ काम कर रहे है। वह पार्टी में अपने पिता राजीव गांधी के एजेंडा को बढ़ाना चाहते है लेकिन आज की स्थिति में वह पार्टी में मुमकिन नहीं है। 

गुलाम नबी आजाद के राहुल गांधी पर सीधे हमला के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस वकाई में कमजोर हुई है। इसको भी समझते है।

राहुल ने कांग्रेस को अधर में लटकाया?- 2019 में राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद अब तक कांग्रेस एक अदद पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं बना पाई। जब भी अध्यक्ष के चुनाव की बात आती है तो राहुल गांधी का नाम सबसे पहले आता है फिर खबर आती है कि राहुल ने अध्यक्ष बनने से इंकार कर दिया है। ऐसे में कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता पूरी तरह कन्फ्यूज है। इसके साथ अध्यक्ष न होते हुए भी कांग्रेस के हर बड़े फैसले में राहुल गांधी की भूमिका सबसे प्रमुख होती है और अंतिम फैसला उन्हीं का होता है ऐसे में राहुल किसी पद पर ना होते हुए भी पार्टी के सबसे सर्वशक्तिमान नेता है और कांग्रेस के अंदर अब भी गांधी युग ही है।   

राहुल के करीबियों को ही राहुल की क्षमता पर संदेह?–कांग्रेस में माना जाता है कि राहुल गांधी को युवाओं पर भरोसा ज़्यादा रहता है और सोनिया पुराने कांग्रेसियों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखतीं है। 2019 का लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में मची भगदड़ को शुरू करने का श्रेय भी राहुल के करीबी नेताओं को ही जाता है। राहुल के करीबी नेता चाहे वह मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया हो, उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद हो या महाराष्ट्र में प्रियंका चतुर्वेदी  या हाल में ही इस्तीफा देने वाले जयवीर शेरगिल सभी राहुल के कोर ग्रुप के सदस्य थे लेकिन इन्होंने ही राहुल का साथ छोड़ दिया। 
 
वरिष्ठों को भी साथ नहीं ले पाए राहुल-कांग्रेस को पटरी पर लाने के लिए राहुल गांधी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का साथ नहीं ले पाए। कांग्रेस के 'G-23' ने राहुल के खिलाफ जो मोर्चा खोला था, उसको राहुल कंट्रोल नहीं कर पाए। पंजाब में चाहे अमरिंदर सिंह के कांग्रेस से बाहर जाने की बात हो या जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद की सभी ने सीधे राहुल गांधी पर बड़े आरोप लगाए।

चुनाव दर चुनाव कांग्रेस की हार?- 2013 में राहुल गांधी के कांग्रेस में एंट्री के बाद कांग्रेस दो लोकसभा चुनाव के साथ 10 से अधिक राज्यों में विधानसभा चुनाव हार चुकी है। 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी की पार्टी को खड़ा करने की हर कोशिश पूरी तरह असफल होती दिखी।