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Last Updated : शनिवार, 19 फ़रवरी 2022 (14:33 IST)

भारत को भी ‘ब्‍लैकमेल’ करने का था वैक्‍सीन कंपनियों का इरादा लेकिन, हम झुके नहीं और बनाई ‘मेड इन इंडिया वैक्सीन’

भारत को भी ‘ब्‍लैकमेल’ करने का था वैक्‍सीन कंपनियों का इरादा लेकिन, हम झुके नहीं और बनाई ‘मेड इन इंडिया वैक्सीन’ - Vaccine companies intended to 'blackmail' India too
दुनियाभर में पसरे कोरोना वायरस के लिए जो सबसे अहम चीज थी वो है वैक्‍सीन। अगर वैक्‍सीन ईजाद नहीं होती तो दुनिया में कितनी तबाही होती इसका अंदाजा लगाना भी मुश्‍किल है।

लेकिन क्‍या दुनिया के तमाम देशों को ये वैक्‍सीन यूं ही मिल गई। क्‍या कंपनियों ने इसके बदले देशों से कुछ मांगा या नियम रखें। दरअसल, मीडि‍या रिपोर्ट में कहा गया कि वैक्‍सीन देने से पहले वैक्‍सीन कंपनियों ने कई देशों के सामने बेहद सख्‍त नियम और शर्तें रखी थीं। ये शर्तें ईस्‍ट इंडि‍या कंपनी की तरह थे।

इसके लिए इन मीडि‍या रिपोर्ट्स में PFIZER कंपनी का उदाहरण दिया गया। कहा गया कि PFIZER ने कई देशों के सामने ऐसी शर्तें रखीं जैसे वैक्सीन के बदले में सारा पैसा एडवांस में जमा कराना होगा।
कंपनी के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी लेनी होगी।
वैक्सीन रखने के लिए मिलिट्री बेस तैयार करना होगा।
अलग से एक दूतावास बनाने की भी डि‍मांड की गई, जिसमें उनके अधिकारी किसी राजनयिक की तरह रह सकें।

वैक्‍सीन देने के लिए 'विदेशी कंपनियों ने दादागिरी' की तरह काम किया। PFIZER ने तो अर्जेंटीना की सरकार के सामने ये शर्तें रखीं थी कि वैक्सीन के बदले में उसे सारा पैसा इंटरनेशनल बैंक में एडवांस में जमा कराना होगा। ब्राजील और कई दूसरे देशों के सामने भी शर्तें रखी गईं थीं।

लेकिन भारत में नहीं चली दादागिरी
दूसरे कई देशों में वैक्‍सीन कंपनियों ने दादागिरी चलाई, लेकिन भारत में उनकी दादागि‍री नहीं चली। मॉडर्ना और फाइज़र जैसी कोरोना वैक्सीन भारत में क्यों नहीं आ पाईं? इन सवालों का जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि मॉडर्ना और फाइज़र जैसी वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी।

दरअसल, मॉडर्ना और फाइज़र की वैक्सीन भारत को एक बड़े बाज़ार के तौर पर देख रही थी और इन दोनों अमेरिकी कंपनियों को लगता था कि भारत कभी विदेशी वैक्सीन के बिना अपने देश की 136 करोड़ से ज्यादा आबादी को वैक्सीन नहीं लगा पाएगा।

नवंबर 2021 में भारत में कोरोना वायरस की पहली लहर पीक पर थी। करीब 1 लाख केस रोजाना आ रहे थे। ठीक इसी बीच मॉडर्ना और फाइज़र भारत सरकार से वैक्सीन खरीदने के लिए मोल भाव कर रही थी। भारत सरकार चाहती थी कि विदेशी वैक्सीन कंपनियां भारत के लिए वैक्सीन का निर्माण भारत में ही करें, लेकिन ये किसी कंपनी को मंज़ूर नहीं था।

भारत के सामने ऐसी-ऐसी शर्तें रखी गईं कि उन्हें मानना आसान नहीं था। इसके बाद भारत ने मनमानी शर्तों के आगे नहीं झुकने का फैसला किया। इससे भारत को दिक्कत तो हुई। आलोचना भी झेली, लेकिन भारत ने ना केवल अपनी खुद की वैक्सीन बना ली, बल्कि कई देशों को वैक्सीन बांटी भी।

ये खुलासा खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने किया. दरअसल, एक किताब के लॉन्च के दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने ये बातें सार्वजनिक तौर पर कहीं’

लेखिका प्रियम गांधी मोदी द्वारा लिखी गई ‘A Nation To Protect- Leading India Through The Covid Crisis’ नाम की किताब के लॉन्च के मौके पर Zee News के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी भी मौजूद थे। इस मौके पर सुधीर चौधरी ने सवाल किया कि विदेशी वैक्सीन भारत में क्यों नहीं आ पाई? अब तक सरकार इस सवाल के कूटनीतिक जवाब ही देती आई है, लेकिन इस सवाल पर पहली बार स्वास्थ्य मंत्री ने साफ किया कि ये नया भारत है जो अपनी शर्तों पर चलता है। और हमने विदेशी कंपनियों के सामने झुकना मंज़ूर नहीं किया। हमने अपनी वैक्सीन बना ली।
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