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Last Updated : बुधवार, 8 फ़रवरी 2023 (16:52 IST)

TMC ने राज्यसभा में उठाया सवाल, क्या अच्छे दिन आ गए और फिर अमृतकाल शुरू हो गया?

Lok Sabha
नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार को राज्यसभा में सरकार से जानना चाहा कि जो अच्छे दिन आने वाले थे क्या वे आ गए और क्या उसके बाद अमृतकाल शुरू हो गया? पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार अमृतकाल, आजादी का अमृत महोत्सव, अच्छे दिन का जिक्र जनता के सामने मौजूद मुद्दों, उनकी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए कर रही है।
 
उच्च सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में अमृतकाल की बात कही गई है लेकिन यह अमृतकाल आखिर है क्या? उन्होंने पूछा कि जो अच्छे दिन आने वाले थे क्या वे आ गए और उसके बाद अमृतकाल शुरू हो गया?
 
उन्होंने कहा कि हमें इस बात की बहुत खुशी है कि आज आजादी का अमृत महोत्सव वे लोग मना रहे हैं जिनके पूर्वजों ने देश के स्वाधीनता संग्राम में कभी हिस्सा ही नहीं लिया था। उन्होंने कहा कि अमृतकाल, आजादी का अमृत महोत्सव, अच्छे दिन का जिक्र जनता के सामने मौजूद मुद्दों, उनकी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए ही यह शब्द गढ़े गए हैं।
 
सरकार पर सब्जबाग दिखाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने काला धन वापस लाने, किसानों की आमदनी दोगुनी करने, 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने, बुलेट ट्रेन चलाने से लेकर कई वादे किए, जो केवल वादे ही रह गए और उनके पूरे होने के आसार भी नहीं हैं।
 
उन्होंने सवाल किया कि क्या ये वादे अमृतकाल, आजादी का अमृत महोत्सव, अच्छे दिन का हिस्सा हैं? उन्होंने तंज किया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध किए जाने के बावजूद 'पठान' फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई कर रही है और शायद 15 लाख रुपए उससे ही आएंगे। सरकार ने कहा कि अभिभाषण में भ्रष्टाचार खत्म करने की बात की गई है लेकिन सच यह है कि आज तक यह खत्म नहीं हो पाया है।
 
उन्होंने अडाणी समूह से जुड़े मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि तमाम वित्तीय संस्थाओं को धता बताते हुए जो कुछ किया गया, वह आज देश के अब तक के सबसे बड़े वित्तीय घोटाले के रूप में सामने आया है और उनकी पार्टी इस पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित किए जाने की मांग करती है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर तो सदन में चर्चा भी नहीं की जा रही है। इस मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में समयबद्ध तरीके से जांच की जानी चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि अभिभाषण में गरीबी का जिक्र है। आज गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं और अमीरों की अमीरी बढ़ती जा रही है। बीते 11 साल में सरकार ने कोई उपभोक्ता खर्च सर्वे नहीं कराया, फिर अस्पष्टता के बीच गरीबी की बात कैसे की जा सकती है। यह सर्वे 2011-12 में कराया गया था और बाद में मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसा कोई सर्वे नहीं कराया गया है। उन्होंने मांग की कि यह सर्वे कराया जाए और इसकी रिपोर्ट पेश की जाए।
 
जवाहर सरकार ने जानना चाहा कि देश में गरीबों की संख्या कितनी है? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपने आप गरीबों को लेकर समीक्षा करती है लेकिन तथ्य कभी पेश नहीं करती। उन्होंने कहा कि गरीबों की मदद के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं का बजट आवंटन सरकार ने कम कर दिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल के साथ भेदभावपूर्ण व्यवेार किए जाने का आरोप लगाया।
 
तृणमूल सदस्य ने साथ ही कहा कि बहुत जल्द ही संसद की नई इमारत बन जाएगी और हम वहां काम करेंगे। लेकिन अब तक इस बारे में अब तक न तो कोई चर्चा की गई है और न ही हमें पता है कि वेां कौन-कौन-सी सुविधाएं होंगी? क्या भारतीय स्टेट बैंक सहित विभिन्न जरूरतों के लिए हमें एक इमारत से दूसरी इमारत जाना पड़ेगा?
 
उन्होंने कहा कि बहुत बड़े हिस्से में सभागार बनाया जा रहा है और इसका कारण भी है। उन्होंने कहा कि करीब 50 फीसदी संसद सदस्य लॉबी में या अन्य जगहों पर जरूरी काम में लगे रहते हैं और ऐसे में टीवी कैमरे सदन में मौजूद करीब 50 फीसदी सदस्यों को ही दिखा पाते हैं। बड़े सभागार में सदस्यों की अनुपस्थिति कैमरों पर नजर आएगी तो इसका मतलब यह होगा कि सदस्य सदन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सरकार के अनुसार इससे उस सोच को बल मिलेगा कि संसद की जरूरत नहीं है।
 
उन्होंने दावा किया कि गुजरात विधानसभा में बैठकों की संख्या बहुत कम कर दी गई है और राष्ट्रीय संसद में भी ऐसा ही किया जा सकता है। संसद भवन की पुरानी इमारत में हमें कमल का फूल, अन्य भारतीय प्रतीक चिह्नों सहित बहुत कुछ हमारी विरासत से, हमारी संस्कृति से जोड़ता है लेकिन क्या नई इमारत में भी ऐसा होगा? नई इमारत के निर्माण के लिए परामर्श की खातिर 250 करोड़ रुपए में गुजरात के एक वास्तुविद को चुना गया है।
 
सरकार ने कहा कि स्वास्थ्य पर बजट का व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 3.6 फीसदी है जबकि पश्चिमी जगत में यह 12 से 19 फीसदी है। हमें शर्म आती है कि हम, सबसे बड़ी आबादी, स्वास्थ्य के क्षेत्र में किस हद तक उदासीन हैं।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta