शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Supreme Court's observation in the death penalty case
Written By
Last Modified: शनिवार, 25 जून 2022 (00:01 IST)

मृत्युदंड से बचने के तरीके तलाशना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता होगा

Supreme court
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जिन मामलों में न्यायिक जांच के बाद आदेश पारित किए गए हैं, उनमें मौत की सजा देने से बचने के तरीके तलाशना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता करना होगा।इसके साथ ही न्यायालय ने सजा के मुद्दे पर मृत्युदंड के दोषियों द्वारा अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी तर्कों पर भी टिप्पणी की।

उच्चतम न्यायालय ने साढ़े सात साल की मानसिक रूप से अस्वस्थ एवं दिव्यांग बच्ची के साथ 2013 में बलात्कार और उसकी हत्या के दोषी को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा। इसके साथ ही न्यायालय ने सजा के मुद्दे पर मृत्युदंड के दोषियों द्वारा अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी तर्कों पर भी टिप्पणी की।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों का यह प्रयास कभी नहीं रहा है कि किसी भी तरह से मौत की सजा को सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए निरर्थक और अस्तित्वहीन बनाया जाए। न्यायालय ने कहा, जिन मामलों में न्यायिक जांच के बाद आदेश पारित किए गए हैं, उनमें मौत की सजा देने से बचने के तरीके तलाशना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता करने जैसा होगा।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने मृत्युदंड दिए जाने के राजस्थान उच्च न्यायालय के 29 मई, 2015 के आदेश को बरकरार रखा है।

पीठ ने कहा, हमारे विचार में न्यायिक प्रक्रिया अपनी निष्पक्षता से समझौता करेगी यदि दृष्टिकोण बड़े अपराधों (जैसे कि आईपीसी की धारा 302) के लिए वैकल्पिक सजा के रूप में मौत की सजा देने वाले वैधानिक प्रावधान को रद्द करने के लिए है और इसे असंवैधानिक नहीं ठहराया गया है।

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति माहेश्वरी द्वारा लिखे गए 129 पृष्ठों के फैसले में कहा गया है कि वह कानूनी पहलू से भी निपटता है जहां दोषी उन मामलों में आमतौर पर मौत की सजा के बजाय उम्रकैद की सजा देने की गुहार लगाते हैं, जहां मामले परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित होते हैं।(भाषा)
ये भी पढ़ें
मुंबई में हिंसा के डर से हाईअलर्ट, 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की तैयारी