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न्‍याय के दरबारों से जारी ये फरमान जानवरों को इंसानों द्वारा दिए जा रहे सबसे बड़े धोखे हैं

Dogs
खुद को सनातनियों की सबसे बड़ी पैरोकार मानने वाली सरकार पहले ही अपनी गायों को स्‍लॉटर हाउस में कटने से नहीं बचा पा रही है— ऐसे में अगर महाराष्‍ट्र हाईकोर्ट कबूतरखानों पर तिरपाल डालकर कबूतरों का दाना-पानी बंद कर दे और सुप्रीम कोर्ट दिल्‍ली की सड़कों से कुत्‍तों का सफाया करने के फतवे जारी करे तो ऐसे अमानवीय समय में जानवरों के लिए संवेदनशीलता बरतने की उम्‍मीद शायद किसी से नहीं की जाना चाहिए— क्‍योंकि न्‍याय के इन दोनों ही दरबारों से ये असंवेदनशील फैसले देने वाले जाहिर है खासे-पढ़े लिखे लोग हैं। हालांकि पढ़े-लिखे सभ्‍य समाज की संवदेनशीलता तो इस हद तक भी नापी जानी चाहिए कि वो किसी जानवर को ‘आवारा’ किस आधार पर कह देते हैं?

बहरहाल, बावजूद अपने आसपास तमाम अराजकताओं के एक मनुष्‍य में इतनी चेतना तो बची रह जाना चाहिए कि जब किसी कोने से बेजुबानों को दाना-पानी नहीं देने और उन्‍हें रहवासी इलाकों से निर्वासित किए जाने की क्रूरता बरती जा रही हो तो कम से कम उन लोगों को तो खड़े हो ही जाना चाहिए जिनके पास जबानें हैं— जो बोल सकते हैं।

याद दिला दें कि हाल ही में मुंबई में कबूतरों को खतरा मानते हुए हाईकोर्ट ने उन्‍हें दाना डालने पर एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान किया है— जबकि दिल्‍ली में सुप्रीम कोर्ट ने कुत्‍तों को ‘गंभीर समस्‍या’ मानते हुए उन्‍हें राजधानी की सड़कों से साफ करने का निर्देश दिया है।

इस बात को अंडरलाइन किया जाना चाहिए कि बेजुबान जानवरों और पक्षियों के खिलाफ यह सारे फरमान उस देश में जारी हो रहे हैं— जहां घरों में सबसे पहली रोटी गाय और कुत्‍तों के लिए निकाली जाती है। जबकि पक्षियों को दाना डालना एक पवित्र और पुण्‍य कर्म माना जाता रहा है। ये फैसले सुनाने वाली चाहे कोई भी और कितनी भी पढ़ी-लिखी संस्‍था क्‍यों न हो— मैं इन फैसलों को इंसानों द्वारा जानवरों को दिए जा रहे सबसे बड़े धोखे की तरह देखता हूं। क्‍योंकि अब भी कोई न कोई कुत्‍ता हमारी देहरी पर बची हुई रोटी के लिए इंतजार करता है और कोई न कोई पक्षी दाने की आस में हमारी छतों पर आ ही जाता है।
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राहुल गांधी : बेज़ुबान कोई 'समस्या' नहीं
जानवरों के प्रति संवेदनशीलता बरतने की उम्‍मीद की थोड़ी सी लौ जलाने का काम कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किया। राहुल ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि ये दशकों से चली आ रही मानवीय और साइंटिफिक पॉलिसी से पीछे ले जाने वाला कदम है। ये बेज़ुबान आत्माएं कोई 'समस्या' नहीं हैं, जिन्हें मिटाया जा सके। इनके लिए अन्‍य विकल्‍पों पर सोचा जाना चाहिए। मुंबई में जैन मुनि नीलेशचंद्र विजय कबूतरों को बचाने के लिए खड़े हुए हैं। अभिनेता जॉन इब्राहिम बोले हैं। मेनका गांधी तो जाहिर है बोलेगीं ही। मेनका गांधी ने कहा है कि निर्देश देने से पहले उन लोगों से पूछा जाए जो जानवरों को जानते- समझते हैं— हम बताएंगे कि कुत्‍ते क्‍यों काटते हैं और कैसे उनसे बचा जाए।

जॉन अब्राहिम : कुत्ते आवारा नहीं, समुदाय का हिस्सा हैं
जॉन अब्राहम
ने कहा कि कुत्ते आवारा नहीं हैं, बल्कि समुदाय का हिस्सा हैं। लोग उन्हें प्यार करते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप इस अपने फैसले की समीक्षा करेंगे। क्‍योंकि कुत्‍ते आवारा नहीं, हमारी सोसायटी का हिस्सा हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का कुत्‍तों को हटाने का यह निर्देश पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 और इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसलों के बिल्कुल उलटा है। एबीसी नियम के अनुसार कुत्तों को किसी शेल्टर होम में नहीं रखा जा सकता। इसके बजाय उनकी नसबंदी और टीकाकरण करने के बाद उन्हें उन्हीं इलाकों में वापस छोड़ देते हैं जहां वे रहते हैं। उन्‍हें रिलोकेट नहीं किया जा सकता। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ कुत्‍तों की बेदखली का ही विकल्‍प क्‍यों सूझा। जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों में कुत्‍तों का संरक्षण ठीक तरह से किया जा रहा है।

बांग्‍लादेशी घुसपेठिये ज्‍यादा खतरनाक : हां, यह सच है कि कुत्‍तों के काटने और हमले किए जाने की घटनाएं बढ़ी हैं। लेकिन इसके पीछे कई तरह की वजहें हैं, उन्‍हें खाना नहीं मिलना, उनके प्रति क्रूरता दिखाना और सफाई की वजह से सड़कों पर खाने के लिए वेस्‍ट उपलब्‍ध नहीं होना आदि। इसके लिए विकल्‍प खोजे जाने चाहिए। लेकिन ज्‍यादातर शहरों के स्‍थानीय प्रशासन कुत्‍तों के संरक्षण में विफल रहे हैं। दिल्‍ली की बात करें तो यहां कुत्‍तों से ज्‍यादा आवारा और खतरनाक बांग्‍लादेशी घुसपेठिये हैं, जिन्‍हें दिल्‍ली सरकार चिन्‍हित तक नहीं कर पाई है।

कागजों में सिमटा एनिमल बर्थ कंट्रोल : देशभर के राज्‍यों की बात करें तो बता दें कि कुत्तों की नसबंदी कर उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए नगर निगमों के पास एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) योजना है, लेकिन वह कागजों में सिमट गया है। कई राज्‍यों में कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन के टारगेट पूरे नहीं हो पा रहे हैं, यह काम एनजीओ पर छोड़ दिए गए हैं, जिनमें भयावह भ्रष्टाचार है। एबीसी रूल्स, 2023 में संशोधन की जरूरत है, क्योंकि उसके नियम सोसायटियों पर अत्यधिक बोझ डालते हैं। इन नियमों में लोगों को कुत्तों को सोसायटी परिसर में ही खिलाने और उनके लिए जगह तय करने को कहा गया है। इससे अक्सर डॉग लवर और कुत्‍तों को नापसंद करने वाले लोगों में विवाद होते हैं।

दोस्‍ती : इंसान और कुत्‍ते : सवाल यह है कि इंसान किसी भी जानवर के प्रति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है— खासकर कुत्‍तों के प्रति जो हमेशा से हमारे धर्म और हमारी परंपराओं में शामिल रहे हैं और शुरू से इंसानों के कंपेनियन रहे हैं। याद रखना होगा कि ये देश जानवरों को ही पूजता रहा है। गणेशजी के रूप में हाथी और हनुमानजी के रूप में हम बंदरों को पूजते रहे हैं। गाय और कुत्‍ते इस देश की सबसे बड़ी आबादी के धर्म का हिस्‍सा रहे हैं। ऐसे में इन्‍हें हमारी सोसायटी से बेदखल करने की बजाए इन्‍हें फिर से अपना दोस्‍त बनाना है जो हमेशा से दोस्‍त रहे ही हैं और हमारे ही भरोसे रहे हैं।

किस देश में कैसे होता है कुत्‍तों का संरक्षण?
भूटान : इंडियन एक्सप्रेस के मुताबाकि भारत का पड़ोसी देश भूटान 2023 में 100% आवारा कुत्तों की नसबंदी (स्टरलाइजेशन) करने वाला देश बन गया। भूटान ने ऐसा करने के लिए 2021 में नेशनवाइड एक्सेलेरेटड डॉग पॉपुलेशन मैनेजमेंट और रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम शुरु किया था। हालांकि नसबंदी और वैक्सीनेशन का प्रोग्राम करीब 14 साल तक अलग अलग फेज में चला था। 2021 से लेकर 2023 कर करीब 1.5 लाख से ज्यादा आवारा कुत्तों की नसबंदी हो गई। इस प्रोग्राम का बजट करीब 29 करोड़ रूपये था।

मोरक्को : मोरक्को ने आवारा कुत्तों संभालने के लिए मानवीय तरीका अपनाया। देश में TNVR प्रोग्राम शुरू किया गया, यानी ट्रैप-नयूटर-वैक्सीनेट-रिटर्न. इस में कुत्तों को पकड़ना, उनकी नसबंधी करना, रेबीज की वैक्सीन लगाना, टैग लगाना और फिर उन्हें उनके पुराने इलाकों में छोड़ना शामिल है। पिछले पांच साल में सरकार ने इस प्रोग्राम पर करीब 23 मिलियन डॉलर (लगभग 190 करोड़ रुपये) खर्च किए हैं।

नीदरलैंड : नीदरलैंड आज यूरोप का पहला देश है, जहां एक भी आवारा कुत्ता नहीं है, जबकि 19वीं 20वीं सदी की शुरुआत में वहां उनकी संख्या बहुत ज्यादा थी। शुरुआत में सरकार ने उन्हें मारना, पट्टामजल के नियम और डॉग टैक्स जैसे कदम उठाए, लेकिन टैक्स से बचने के लिए लोग और कुत्ते छोड़ने लगे। 20वीं सदी के अंत में जानवरों के साथ दुर्व्यवहार को अपराध घोषित किया गया और तीन बड़े बदलाव हुए, स्टोर से खरीदे कुत्तों पर भारी टैक्स, CNVR प्रोग्राम (पकड़ना, नसबंदी, टीकाकरण, वापस छोड़ना) और पेट-पुलिस फोर्स, जो दुर्व्यवहार करने वालों पर कार्रवाई करती है और जानवरों को बचाती है।

जापान : जापान में सख्त एनिमल वेलफेयर नियम हैं। यहां आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है, क्वारंटीन में रखा जाता है और गोद लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वेटरनरी डॉक्टर कम-खर्च में नसबंदी प्रोग्राम चलाते हैं ताकि आवारा कुत्तों की संख्या काबू में रहे। यूथनेशिया यानी दया मृत्यु की भी इजाजत है मगर सिर्फ बीमार या खतरनाक कुत्तों के लिए। कुछ इलाकों में जेसै टोक्यो में इसे गैस चैंबर से किया जाता है। इस तरीके की आलोचना होती है क्योंकि इसमें कुत्तों को मरने के लिए 15 मिनट तक पीड़ा झेलनी पड़ती है।

साउथ कोरिया : साउथ कोरिया में छोड़े गए पालतू जानवरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए सरकार ने आवारा बिल्लियों के लिए ट्रैप-न्यूटर-रिटर्न (TNR) प्रोग्राम शुरू किया। यानी बिल्लियों को पकड़ना, नसंबदी करना और फिर उन्हें उनके पुराने इलाके में छोड़ना।
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