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Last Updated : रविवार, 1 मार्च 2020 (22:16 IST)

Delhi violence : दिल्ली के दंगाग्रस्‍त क्षेत्रों में अब सिर्फ राख के ढेर, टूटे घर और टूटी उम्मीदें..

Delhi violence : दिल्ली के दंगाग्रस्‍त क्षेत्रों में अब सिर्फ राख के ढेर, टूटे घर और टूटी उम्मीदें.. - Only ash piles in Delhi's riotous areas
नई दिल्ली। पिछले रविवार से इस रविवार तक पूरा एक सप्ताह बीत गया और इस दौरान भड़की हिंसा में 45 बेकसूर लोग मौत के आगोश में समा गए...दंगाई क्षेत्रों में उन्मादी भीड़ ने न तो मुसलमानों को छोड़ा, न ही हिंदुओं पर रहम किया। यहां पर अब सिर्फ राख के ढेर, टूटे घर और टूटी हुई उम्मीदें ही शेष बची हैं...

दिल्ली में हुए दंगों की वजह से 25 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। हैवानों ने 500 वाहन जला दिए, 92 घर फूंक डाले, 57 दुकानों, 6 गोदामों, 4 फैक्टरी और 4 धार्मिक स्‍थलों को जला डाला। इन वहशी लोगों ने 2 स्कूलों को भी आग के हवाले कर दिया, जहां पर कई धर्मों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे।

जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनकी आंखें रो-रोकर सूज चुकी हैं। घर के क्या तो नौजवान और क्या बूढ़े...सभी की आंखों से बहते आंसू चीख-चीखकर यही सवाल कर हैं कि दिलवालों की दिल्ली को तबाह करने वाले गुनाहगार कौन हैं?

पूर्वी दिल्ली के उम्रदराज शकील अहमद की आंखों पर चढ़े चश्मे के नीचे से आंसू टपक रहे थे। उन्होंने बताया कि 6 महीने पहले ही बड़े अरमानों से जिंदगीभर की कमाई से 30-40 लाख रुपए की लागत से घर बनाया था, जो जला दिया गया। शकील चाचा ने कहा कि जब भीड़ मेरे घर के समीप मंदिर को नुकसान पहुंचाने पहुंची तो मैं ढाल बनकर खड़ा हो गया। आप देखिए वहां कोई भी मूर्ति खंडित नहीं हुई।

शकील चाचा के बगल में ही रवि शंकर की दुकान थी, जो दंगाइयों की भेंट चढ़ गई। इस दुकान में अब कुछ नहीं बचा है। उन्होंने बताया कि मेरा 4 साल का बेटा मुझसे पूछता है, 'पापा आपकी तो पूरी दुकान जल गई...' इतना कहते ही वे फफककर रो पड़ते हैं। बाद में शकील चाचा उन्हें ढांढस बंधाते हैं। रवि कहते हैं कि ठीक है, नुकसान तो हुआ लेकिन इंसान की जान से ज्यादा कीमती और कुछ भी नहीं है...

शिव विहार इलाके में मुकेश शर्मा की हार्डवेयर की दुकान 25 साल पुरानी थी। उन्होंने बताया कि करोड़ों का नुकसान हो गया और इतने सालों की मेहनत पलभर में आग की भेंट चढ़ गई।

बाबू खान का दर्द तो कलेजा फाड़ने जैसा था। उन्होंने बताया कि एक हफ्ते के बाद मैं किसी तरह अपने जले हुए कारखाने की बरबादी का मंजर देखने आया हूं। हिम्मत ही नहीं हो रही थी अपने जले हुए कारखाने को देखने के लिए आने की।

बाबू खान के अनुसार, मेरे पूरे परिवार की रोटी इसी कारखाने से आती थी। मेरे तो हाथ कट गए और मैं सड़क पर आ गया। नफरत की चिंगारी ने मुझे और परिवार को पूरी तरह तोड़कर रख दिया। अब तो मेरी इतनी भी हिम्मत नहीं है कि मैं इस कारखाने को फिर से खड़ा कर सकूं...
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