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Last Updated : शुक्रवार, 13 नवंबर 2020 (10:42 IST)

विश्व की सबसे पुरानी ‘द लिनियन सोसाइटी’ के फेलो बने एनबीआरआई के वैज्ञानिक

विश्व की सबसे पुरानी ‘द लिनियन सोसाइटी’ के फेलो बने एनबीआरआई के वैज्ञानिक - NBRI
नई दिल्ली,सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. टी एस राणा को विज्ञान के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए लंदन की प्रतिष्ठित द लिनियन सोसाइटी का फेलो (एफएलएस) चुना गया है। उन्हें यह फेलोशिप प्लांट मॉलिक्यूलर सिस्टमेटिक्स और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दी जा रही है।

लिनियन सोसाइटी ऑफ लंदन की स्थापना वर्ष 1788 में हुई थी। इसकी स्थापना सर जेम्स एडवर्ड स्मिथ ने की थी। इसका नामकरण स्वीडन के प्रकृतिवादी वैज्ञानिक कार्ल लिनियस के नाम पर हुआ है। इसे दुनिया की सबसे पुरानी
सक्रिय बायोलॉजिकल सोसाइटी होने का गौरव प्राप्त है।

यह सोसाइटी जीव विज्ञानों के विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति और उन पर परिचर्चाओं का प्रमुख मंच है। इसी सोसाइटी ने चार्ल्स डार्विन और अल्फ्रेड रसेल वॉलेस के अनुकूलता के सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रकाशन किया था। कई वैज्ञानिक, प्रकृतिवादी, इतिहासकार, कला जगत से जुड़े और प्राकृतिक संसार में रुचि रखने वाले लोग इस सोसाइटी से जुड़े हुए हैं। इस सोसाइटी की गतिविधियां संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने की दिशा में भी योगदान दे रही हैं।

डॉ. टी.एस. राणा पादप आणुविक वर्गिकी और मानव कल्याण के लिए औषधीय पादप संसाधनों के जैव-पूर्वेक्षण (बायो-प्रोस्पेक्टिंग) के क्षेत्र में तीन दशकों से शोध में जुटे हैं। उन्होंने वर्ष 2002 में सीएसआईआर-एनबीआरआई, लखनऊ में ‘आणुविक पादप विज्ञान प्रयोगशाला’ की स्थापना की और संस्थान में पहली बार समकालीन आणुविक मार्करों का उपयोग कर पौधों पर शोध कार्य शुरू किया।

जैव विविधता मूल्यांकन, पादप आणुविक वर्गिकी, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और औषधीय पौधों की जैव-पूर्वेक्षण के क्षेत्र में डॉ. राणा के योगदान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। उनके 100 से अधिक शोध पत्र और 3 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘प्लांट टैक्सोनॉमी एंड बायोसिस्टमैटिक्स: क्लासिकल एंड मॉडर्न मेथड्स’ (2014) पुस्तक में  पादप वर्गिकी की पारंपरिक और आधुनिक अवधारणाओं की विविधता के बारे में समग्र जानकारी उपलब्ध है। इस पुस्तक को भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पादप विज्ञान के शोधकर्ताओं द्वारा संदर्भ के रूप में प्रयोग किया जाता है।

डॉ. राणा द लिनियन सोसाइटी-लंदन के साथ ही साथ  इंडियन बॉटनिकल सोसाइटी, इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एनवायर्नमेंटल बॉटनिस्ट और उत्तर प्रदेश एकेडमी ऑफ साइंसेज आदि जैसे कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक निकायों के सदस्य भी हैं। डॉ. राणा को वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2002 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय स्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा द्वारा प्रतिष्ठित बॉयजकास्ट-BOYSCAST फैलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है। (इंडिया साइंस वायर)
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