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Last Updated : गुरुवार, 23 अप्रैल 2020 (18:05 IST)

कोविड-19 की हर्बल दवा पर शोध कर रहे हैं भारतीय वैज्ञानिक

कोविड-19 की हर्बल दवा पर शोध कर रहे हैं भारतीय वैज्ञानिक - COVID19
उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली, कोविड-19 से निपटने के लिए वैज्ञानिक किसी भी तरीके को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। लखनऊ स्थित नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) में कोविड-19 की जाँच के लिए एक तरफ बायोसेफ्टी लेवल (बीएसएल)-2 लैब तैयार की जा रही है, तो दूसरी ओर संस्थान के वैज्ञानिक कोविड-19 की हर्बल दवाओं पर भी शोध कर रहे हैं। इसके लिए एनबीआरआई ने लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के साथ करार किया है।

इस समझौते के तहत एनबीआरआई में कोरोना वायरस की जाँच के साथ-साथ वायरस संक्रमण रोकने के लिए हर्बल यौगिकों का परीक्षण किया जाएगा। औषधीय पादप विविधता के अध्ययन से प्राप्त हर्बल यौगिक एनबीआरआई के पास पहले से मौजूद हैं। वैज्ञानिक जैव-रसायनिक, जैविक और अजैविक परीक्षणों के माध्यम से हर्बल यौगिकों की वैधता की जाँच करेंगे।

सभी आवश्यक पूर्व-चिकित्सीय अध्ययनों के बाद, केजीएमयू द्वारा चिकित्सीय परीक्षण किए जाएंगे। इस तरह, दोनों संस्थान मिलकर पादप आधारित हेल्थकेयर उत्पाद और दवाएं विकसित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। एनबीआरआई द्वारा पहले भी मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए हर्बल औषधि (बीजीआर-34) विकसित की जा चुकी है, जो काफी सफल हुई है।

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) से संबद्ध एनबीआरआई को मुख्य रूप से वनस्पति आधारित अनुसंधान के लिए जाना जाता है। हर्बल यौगिकों के परीक्षण के अलावा, कोविड-19 की जाँच में तेजी लाने के लिए एनबीआरआई में अब बायोसेफ्टी लेवल (बीएसएल)-2 स्तरीय लैब तैयार की जा रही है। एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने बताया कि कोविड-19 की जाँच के लिए नमूने एवं किट रिएजेंट केजीएमयू द्वारा उपलब्ध कराए जाएंगे। रिएजेंट उन तत्वों के सेट को कहते हैं, जिसका उपयोग परीक्षण में किया जाता है।

एनबीआरआई के निदेशक डॉ एस.के. बारिक ने बताया कि “बीएसएल-2 लैब की आवश्यकता कोविड-19 के नमूनों के परीक्षण में पड़ती है। कोविड-19 के परीक्षण के लिए सीएसआईआर मुख्यालय से संस्थान को मंजूरी मिल चुकी है। कोविड-19 के परीक्षण के लिए संस्थान ने निजी सुरक्षा उपकरण की खरीद के लिए ऑर्डर दे दिए हैं और लैब को तैयार किया जा रहा है। अगले चार से पाँच सप्ताह में यह लैब बनकर तैयार हो जाएगी।”

बायोसेफ्टी (बीएसएल) का संबंध रोगजनक सूक्ष्मजीवों से संरक्षण के स्तर से है, जिसे जैविक प्रयोगशालाओं में प्रायः सुरक्षा के लिहाज से अपनाया जाता है। इसके अंतर्गत प्रयोगशालाओं को जैविक सुरक्षा से संबंधित सुविधाओं के आधार पर बीएसएल-1 से बीएसएल-4 तक चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया है। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए संदिग्ध लोगों का परीक्षण करके संक्रमित मरीजों की पहचान और फिर उन्हें क्वारांटाइन करना अभी तक सबसे कारगर उपाय माना जा रहा है।

लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में परीक्षण को बढ़ावा मिलेगा तो कोविड-19 को रोकने में मदद मिल सकती है।
एनबीआरआई में कोविड-19 के परीक्षण के लिए उपकरण तो मौजूद हैं, पर इस संस्थान की विशेषज्ञता पौधों पर कार्य करने की रही है। इसलिए, संस्थान कोविड-19 के परीक्षण के लिए अपने वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करने के लिए केजीएमयू की मदद ले रहा है। कोविड-19 के परीक्षण के लिए आरएनए एक्सट्रैक्शन की जरूरत पड़ती है। दोनों संस्थानों के बीच हुए करार के बाद इसकी जानकारी एनबीआरआई के वैज्ञानिकों को केजीएमयू से मिल सकती है।

डॉ बारिक ने बताया कि “संस्थान में कई ऐसे हर्बल यौगिक मौजूद हैं, जिनका उपयोग कोविड-19 के साथ-साथ मोटापे, गठिया और कैंसर जैसे रोगों के उपचार की दवाओं के विकास से जुड़े शोधों में किया जा सकता है। केजीएमयू के साथ मिलकर एनबीआरआई इन यौगिकों का क्लीनिकल ट्रायल करेगा। उम्मीद है कि दोनों संस्थानों के सहयोग से हर्बल दवाओं के विकास में मदद मिल सकती है। इस समझौते के बाद दोनों संस्थानों के शोधार्थियों को केजीएमयू और एनबीआरआई में मौजूद अनुसंधान सुविधाओं का भी लाभ मिल सकेगा।” (इंडिया साइंस वायर)