Bharat ratna Lal krishna adwani : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को घोषणा कर बताया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। इस खबर के बाद भारत रत्न और लालकृष्ण आडवाणी सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहा है। बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद यह सम्मान पाने वाले आडवाणी दूसरे भाजपा नेता हैं। घोषणा के बाद PM नरेंद्र मोदी ने फोन कर बधाई दी है।
इस सम्मान की घोषणा के बाद एक तरह से उस बहस पर विराम सा लग गया है कि जिसमें अक्सर ये कहा जाता था कि जिस शख्स ने भारतीय जनता पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई उसे पार्टी से कुछ नहीं मिला। हिंदुत्व की राजनीति और रथ यात्रा से राम मंदिर आंदोलन की अलख जगाने से लेकर भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी बनाने तक आडवाणी की अहम भूमिका रही है। लेकिन वे कभी पीएम नहीं बन सके, न राष्ट्रपति। अब मोदी राज में आडवाणी भारत रत्न से सम्मानित हो गए हैं।
जानते हैं आखिर कैसा रहा है लालकृष्ण आडवाणी का राजनीतिक सफर। भाजपा को खड़ा करने वाले नेता : लालकृष्ण आडवाणी वो नेता हैं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। वह बीजेपी के संस्थापक सदस्य हैं। साल 1980 में बीजेपी के गठन के समय वह भी पार्टी में एक मजबूत आधार स्तंभ रहे। लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले नेता हैं।
कब से कब तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आडवाणी
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1986 से 1990 तक
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1993 से 1998 तक
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2004 से 2005 तक
आडवाणी का जन्म और स्कूली शिक्षा : भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था। उनके पिता का नाम डी अडवाणी और मां का नाम ज्ञानी आडवाणी था। 25 फरवरी 1965 को उन्होंने कमला आडवाणी से शादी की। उनके दो बच्चे हैं, बेटी का नाम प्रतिभा आडवाणी है। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कराची के सेंट प्रैट्रिस स्कूल से पूरी की। विभाजन के बाद भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री ली।
RSS से आडवाणी का जुड़ाव: लाल कृष्ण आड़वाणी ने लंबे समय तक संघ प्रचारक के तौर पर काम किया। शुरू से ही उनका रूझान RSS की गतिविधियों की तरफ था। साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो लालकृष्ण आड़वाणी पाकिस्तान में होने की वजह से इस आजादी का जश्न नहीं मना सके और उनको मजबूर अपना घर छोड़ना पड़ा। देश के विभाजन के बाद वह कराची से दिल्ली आ गए और राजस्थान में संघ के लिए प्रचार करने लगे। 1947 से 1951 तक उन्होंने कराची शाखा के RSS सचिव के रूप में कई तरह की गतिविधियां कीं।
कैसा रहा आडवाणी का राजनीतिक सफर : लालकृष्ण आडवणी के राजनीतिक सफर की बात करें तो साल 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जब जनसंघ की स्थापना की, तब से साल 1957 तक आडवाणी पार्टी सचिव रहे। फिर 1973 से 1977 तक उन्होंने जनसंघ में अध्यक्ष पद पर सेवाएं दीं। साल 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई तब वह इसके संस्थापक सदस्य थे। आडवाणी ने 1980 से 1986 तक बीजेपी के महासचिव रहे। 1986 से 1991 तक वह बीजेपी अध्यक्ष रहे। आडवाणी तीन बार बीजेपी के अध्यक्ष रहे। वह 5 बार लोकसभा सांसद और 4 बार राज्यसभा सांसद रहे। साल 1977 से 1979 तक वह पहली बार केंद्र में मंत्री बने। उन्होंने इस दौरान सूचना प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार संभाला।
रथयात्रा से जगा दी अयोध्या की ज्योत : लालकृष्ण आडवाणी वो नेता है जिन्होंने अपनी रथयात्रा से देशभर में अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की ज्योत जगा दी थी। आडवाणी के इस कदम की वजह से ही देश की राजनीति में 'यात्राओं' का कल्चर शुरू हुआ था। लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा की थी, जिसके बाद देश में हिंदुत्व की राजनीति जैसी विचारधारा उभरकर सामने आई। बिहार में तब के सीएम लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद राजनीति में आडवाणी का कद और ज्यादा बढ गया।
आडवाणी की यात्राएं
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राम रथ यात्रा
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जनादेश यात्रा
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भारत सुरक्षा यात्रा
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स्वर्ण जयंती रथ यात्रा
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भारत उदय यात्रा
दो सीटों से 86 सीटों तक : 1980 से 1990 के बीच आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना सबकुछ झौंक दिया। परिणाम यह था कि जब 1984 में महज 2 सीटें हासिल करने वाली पार्टी को लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिली। पार्टी की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और बीजेपी सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी।
आपातकाल और जनसंघ : 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया और अपना तानाशाही शासन कायम कर लिया। उन्होंने आदेश दिया कि सभी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में कैद कर दिया जाए। उन्होंने आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया। अटल जी और आडवाणी जी उस समय बैंगलोर में थे जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। जब 18 जनवरी, 1976 को चुनाव का ऐलान हुआ तो अटल जी को वापस दिल्ली भेजा गया। देश में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई और जिस समय चुनावों का ऐलान हुआ उसी समय जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया। 28 सदस्यों वाली पार्टी का ऐलान हुआ जिसकी अध्यक्षता मोरारजी देसाई कर रहे थे और चरन सिंह उपाध्यक्ष थे। जनता पार्टी के सदस्य 4 पार्टियों से थे। कांग्रेस, जनसंघ, समाजवादी पार्टी और लोक दल जिन्होंने एकसाथ आकर इस नई पार्टी का गठन किया जाए। आडवाणी जी, मधु लिमये, राम धान और सुरेन्द्र मोहन इसके 4 महासचिव थे। आपातकाल 23 मार्च 1976 को आधिकारिक रूप से खत्म हुआ। चुनाव हुए और परिणामों में जनता पार्टी 542 में से 295 सीटों के बहुमत के साथ जीत गई।
ऑर्गनाइजर में आडवाणी की भूमिका: राजस्थान से दिल्ली आने के बाद सबसे पहला घर जिसमें आडवाणी जी रहे थे, वह अटल जी का आधिकारिक निवास था, 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड। दिल्ली में दफ्तर में करीब 3 साल तक काम करने के बाद आडवाणी ने अपने जीवन का एक नया अध्याय बतौर पत्रकार शुरू किया। 1960 में उन्होंने ऑर्गनाइजर में सहायक संपादक का पदभार ग्रहण किया। ऑर्गनाइजर एक हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका थी जो कि आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित थी। 1947 में स्थापित ऑर्गनाइजर का पाठक वर्ग काफी कम था लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग के बीच इसकी गूंज हो चुकी थी। इसके संपादक के आर मलकानी एक बढ़िया लेखक थे जिन्हें आडवाणी जी पसंद थे और वह भी सिन्ध से आए थे। मलकानी जी के काबिल नेतृत्व में ऑर्गनाइजर आरएसएस और जनसंघ के विरोधियों और साथ वालों के बीच काफी लोकप्रिय होने लगा।
गृह मंत्री की भूमिका में आडवाणी : 1996 के आम चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और राष्ट्रपति ने भी बीजेपी को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया। हालांकि यह सरकार बेहद कम समय के लिए रही और 13 दिन बाद ही गिर गई।
दूसरा कार्यकाल 1998–1999 : मार्च 1998 में बीजेपी-शासित एनडीए वापस सत्ता में आया और अटल जी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। इससे पहले देश ने इन्द्र कुमार गुजराल और एच डी देवगौड़ा के रूप में 2 अस्थाई सरकारें देखी। 1996 से 1998 के बीच यूनाइटेड फॉन्ट की 2 सरकारों (इन्द्र कुमार गुजराल और एच डी देवगौड़ा) के गिरने के बाद लोकसभा में अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनाई। एनडीए ने लोकसभा में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की थीं। लेकिन सरकार केवल 13 हफ्तों तक टिक सकी क्योंकि तमिलनाडु की नेता जयललिता ने अपना सहयोग वापस ले लिया था। बहुमत न होने की स्थिति में एकबार फिर लोकसभा भंग हो गई लेकिन अटलजी चुनाव होने तक प्रधानमंत्री बने रहे। कारगिल युद्ध के कुछ समय बाद, 1999 में दोबारा चुनाव हुए। 13वें लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में ऐतिहासिक साबित हुआ, क्योंकि ऐसा पहली बार हो रहा था कि संयुक्त मोर्चे की पार्टियों को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था और एक स्थायी सरकार ने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया था। इस सरकार का नेतृत्व अटल जी ने किया था और इस तरह से राजनीतिक अनिश्चितता के एक दौर का अंत हुआ था। इस दौर की एनडीए सरकार ऐसी इकलौतीगैर-कांग्रेसी सरकार थी जो 5 साल का कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। आडवाणी जी ने गृह मंत्री का पदभार संभाला और बाद में उप-प्रधानमंत्री बने। केन्द्रीय मंत्री के तौर पर आडवाणी जी कई बार पाकिस्तान से तल्ख मुद्दों पर टक्कर लेते नजर आए हैं।
आडवाणी नहीं बन सके प्रधानमंत्री: 2009 के चुनावों में आडवाणी जी नेता प्रतिपक्ष थे, इसलिए यह माना जा रहा था कि वह आगामी चुनावों जो 16 मई, 2009 को खत्म होने वाले थे, में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। आडवाणी जी के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह थी कि आडवाणी जी बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता रहे हैं और उनके अलावा सिर्फ अटल जी इतने शीर्ष पर मौजूद थे, लेकिन अटल जी खुद भी आडवाणी जी के पक्ष में थे। 10 दिसंबर, 2007 को भाजपा के संसदीय बोर्ड ने यह औपचारिक ऐलान किया कि 2009 के आम चुनावों के लिए लालकृष्ण आडवाणी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, लेकिन जब कांग्रेस और उसका गठबंधन चुनाव जीत गए और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर दोबारा काबिज हो गए तो आडवाणी ने 15वीं लोकसभा में सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष बनाया। बाद में नरेंद्र मोदी सरकार में अंदाजा लगाया जा रहा था कि आडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब मोदी सरकार ने आडवाणी को भारत रत्न देकर सम्मानित किया है।
लालकृष्ण आडवाणी
जन्म: 8 नवंबर 1927
पिता : किशन चंद आडवाणी
माता : ज्ञानी देवी आडवाणी
आडवाणी के राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर एक नजर
1936-1942– कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़ाई, 10वीं तक रह क्लास में किया टॉप
1942– राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में शामिल हुए
1942– भारत छोडो आंदोलन के दौरान गिडूमल नैशनल कॉलेज में दाखिला।
1944– कराची के मॉडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी
12 सितंबर, 1947– बंटवारे के बाद सिंध से दिल्ली के लिए रवाना
1947-1951– अलवर, भरतपुर, कोटा, बुंडी और झालावार में आरएसएस को संगठित किया
1957-अटल बिहारी वाजपेयी की सहायता के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए।
1958-63– दिल्ली प्रदेश जनसंघ में सचिव का पदभार संभाला.
1960-1967– ऑर्गनाइजर में शामिल, यह जनसंघ द्वारा प्रकाशित एक मुखपत्र है।
फरबरी 25, 1965– श्रीमती कमला आडवाणी से विवाह, प्रतिभा एवं जयंत-दो संतानें
अप्रैल 1970– राज्यसभा में प्रवेश
दिसंबर 1972– भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
26 जून, 1975– बैंगलोर में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार, भारतीय जनसंघ के अन्य सदस्यों के साथ जेल में कैद।
मार्च 1977 से जुलाई 1979– सूचना एंव प्रसारण मंत्री
मई 1986- भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने
1980-86– भारतीय जनता पार्टी के महासचिव बनाए गए
मई 1986– भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान.
3 मार्च 1988– दोबारा पार्टी अध्यक्ष बने।
1988– सरकार में बने गृह मंत्री
1990– सोमनाथ से अयोध्या, राम मंदिर रथ यात्रा का शुभारंभ
1997- भारत की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती मनाते हुए स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का उत्सव
अक्टूबर 1999 – मई 2004 - केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, गृह मंत्रालय
जून 2002 – मई 2004 - उप-प्रधानमंत्री
Written by Navin Rangiyal