India Agni-5 MIRV: भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने, 11 मार्च को अग्नि-5 के सबसे नए संस्करण 'अग्नि-5 एमआईआरवी' (Agni-5 MIRV) के सफल परीक्षण से भारत के पड़ोसियों को ही नहीं, अन्य परमाणु शक्तियों को भी चौंका दिया है। इस बैलिस्टिक मिसाइल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि एक ही रॉकेट से, अलग-अलग लक्ष्यों पर स्वतंत्र रूप से कई परमाणु अस्त्रमुख (वॉरहेड) दागे जा सकते हैं।
एमआईआरवी का अर्थ है 'मल्टीपल इंडिपेंडेंटली-टारगेटेबल रीएंट्री व्हीकल्स'। यानी, बैलिस्टिक मिसाइल दागने की एक ऐसी प्रणाली, जिसमें एक ही रॉकेट में कई परमाणु अस्त्र रखे हुए हैं, पर उन्हें अलग-अलग जगहों पर स्थित लक्ष्यों को निशाने पर लेना है।
भारत के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, ओडिशा के पास बंगाल की खाड़ी में स्थित अब्दुल कलाम द्वीप पर से, मिशन 'दिव्यास्त्र' के नाम से अग्नि-5 MIRV प्रणाली का पहला परीक्षण योजना के अनुसार संपन्न हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि उन्हें इसमें शामिल वैज्ञानिकों पर गर्व है।
'हेग कोड ऑफ़ कॉन्डक्ट (HCOC)' नामक एक अंतरराष्ट्रीय नियमावली के अनुसार, बंगाल की खाड़ी में परीक्षण से पहले भारत को ऑस्ट्रेलिया और इन्डोनेशिया जैसे देशों तथा हवाई एवं समुद्री यातायात को बताना पड़ा कि कब और कहां परीक्षण होने वाला है, ताकि वे सावधान रहें और अपना बचाव कर सकें।
मिसाइल के वजन को घटाना पड़ा : DRDO ने अग्नि-5 मिसाइलों का विकास और परीक्षण 2012 में शुरू किया था। शुरू में ये मिसाइलें काफ़ी भारी होने से उनकी पहुंच कम होती थी। अग्नि-5 MIRV को 7000 किलोमीटर या इससे भी अधिक की अंतरमहाद्वीपीय दूरी के लिए सक्षम बनाने के लिए उसके वज़न को 20 प्रतिशत से आधिक घटाना पड़ा। इसके बिना उसकी पहुंच 5000 किलोमीटर के आस-पास तक ही रही होती। इसके लिए निर्माण सामग्री और कलपुर्जों की डिज़ाइन में कई परिवर्तन करने पड़े। मिसाइल में रखे जाने वाले परमाणु अस्त्रमुखों (वॉरहेड) को भी यथासंभव छोटा करना पड़ा।
11 मार्च के सफल परीक्षण के साथ भारत उन गिने-चुने देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है, जिन्होंने इस तकनीक में महारत हासिल कर ली है। परमाणु महाशक्तियों अमेरिका और रूस के अलावा केवल ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के पास ही MIRV वाली मिसाइलें हैं। भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान ने पिछले साल पहली बार इस तकनीक का परीक्षण किया था।
MIRV अस्थिरता कारक है : MIRV कोई बहुत नई तकनीक नहीं है। 1970 के दशक में, अमेरिका और सोवियत संघ ने ऐसी मिसाइलें बनाईं, जिन्हें ज़मीन के साथ-साथ पनडुब्बियों से भी दागा जा सकता था। भूमि-आधारित MIRV मिसाइलें आम तौर पर अस्थिरताकारी मानी जाती हैं।
परमाणु अस्त्रों से लैस इन मिसाइलों वाले किसी देश को, वे किसी दूसरे देश पर पहले ही हमला करने का प्रलोभन बन सकती हैं, क्योंकि दुश्मन की MIRV मिसाइल पर एक ही प्रहार द्वारा उसके कई हथियारों को एक साथ नष्ट किया जा सकता है। इसी कारण भूतपूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच 1990 तक चले तथाकथित शीतयुद्ध वाले ज़माने में, इन दोनों महाशक्तियों के बीच अपनी-अपनी MIRV प्रणालियों की संख्या को कम करने के लिए निरस्त्रीकरण के विभिन्न दौरों के बाद सहमति बनी।
MIRV मिसाइलों की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है: प्रतिपक्षी मिसाइल रक्षा प्रणालियों के लिए इन्हें रोक पाना मुश्किल होता है। आक्रामक रॉकेट के प्रक्षेप-पथ की गणना हालांकि प्रक्षेपण के प्रारंभिक चरण में की जा सकती है, लेकिन उसमें रखे एकल परमाणु अस्त्रमुख (वॉरहेड) किस-किस लक्ष्य की तरफ उड़ान भरेंगे, यह बहुत बाद में ही स्पष्ट हो पाएगा।
लक्ष्य एक-दूसरे से दूर हो सकते हैं : MIRV मिसाइलों के लक्ष्य एक-दूसरे से 1500 किलोमीटर तक दूर भी हो सकते हैं। हर प्रतिरक्षा प्रणाली को सभी परमाणु अस्त्रमुखों को रोकने के लिए कई प्रतिरक्षी मिसाइलों की आवश्यकता पड़ेगी। आजकल की MIRV मिसाइलें 16 परमाणु अस्त्रमुखों तक से सुसज्जित हो सकती हैं।
सुनने में आया है कि भारत की हर अग्नि-5 MIRV मिसाइल 10 से 12 परमाणु अस्त्रमुख ले जाने के सक्षम होगी। मारक क्षमता वाली उसकी दूरी 5,000 से 7,000 किलोमीटर बताई जा रही है। भारत इससे पाकिस्तान के अलावा अपने दूसरे परमाणु प्रतिद्वंद्वी चीन के हर कोने तक अपनी पहुंच बना सकेगा।
भारत को मुख्य ख़तरा चीन से : स्पष्ट है कि चीन से खतरे को भारत सबसे अधिक गंभीर मानता है। चीन पूर्वी लद्दाख के एक बड़े क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश को अपना बताता है। 2020 की 'गलवान घाटी' का सदमा भारत के लिए अब भी बहुत गहरा है, जिसमें 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे।
चीन पिछले कुछ समय से अपने परमाणु शस्त्रागार में उल्लेखनीय रूप से विस्तार कर रहा है। उसने अपने अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को छिपाने के लिए लगभग 300 नए साइलो (खित्ते) बनाए हैं। हाल ही में, परमाणु मिसाइलों से लैस कम से कम एक चीनी पनडुब्बी महासागरों की गहराई में छिपकर लगातार फेरे लगा रही है। चीनी परमाणु अस्त्रों की संख्या लंबे समय तक 200 के आसपास रहने के बाद अब संभवत: 500 के आस-पास हो गई है। अमेरिकी रक्षा विभाग को आशंका है कि इसमें काफी बढ़ोतरी होगी।
भारत का परमाणु सिद्धांत : चीन परमाणु शस्त्रीकरण के अपने इरादों के बारे में चुप्पी साधे रहता है, जिससे भारत जैसे देशों में और अधिक अनिश्चितता पैदा हो रही है। भारतीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारी इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि उनका अपना परमाणु प्रतिकार क्या अभी भी पर्याप्त है? भारत के वर्तमान परमाणु सिद्धांत के तीन घटक बताए जाते हैं:
पहला : एक विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिकार, जिसका अर्थ है कि परमाणु हथियारों की संख्या केवल इतनी ही बड़ी हो कि आक्रमणकारी को जवाब दिया जा सके। इसके लिए भारत में इस समय अनुमानतः लगभग 165 परमाणु अस्त्रमुख हैं। हाल के वर्षों में इसमें शायद ही कोई बदलाव हुआ है।
दूसरा : भारत प्रथम पक्ष के रूप में कभी भी परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं करेगा। तीसराः यदि देश को जवाबी हमला करने के लिए मजबूर किया गया, तो जवाबी हमला कहीं बड़े पैमाने पर होगा। वैसे, भारत यह नहीं मानता कि यदि कोई परमाणु युद्ध छिड़ा, तो वह किसी छोटे पैमाने तक ही सीमित रहेगा।
चीन के असली इरादे : भारत की तरह, चीन भी 'विश्वसनीय, न्यूनतम प्रतिरोध' की और परमाणु अस्त्रों का 'पहले उपयोग न करने की नीति' का दावा करता है। लेकिन, उसके परमाणु हथियारों की तीव्र गति से बढ़ती संख्या को देखते हुए, अधिकांश विशेषज्ञों को संदेह है कि चीन के असली इरादे कुछ और भी हो सकते हैं।
वाशिंगटन में 'कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' के एशले जे. टेलिस का कहना है कि चीन के ऐसे परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ रही है, जिनका उपयोग युद्ध के मैदान में किया जा सकता है। भारत के साथ पारंपरिक संघर्ष में उनके उपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए सवाल उठता है कि चीन क्या अपनी 'नो फर्स्ट यूज पॉलिसी' से मुंह मोड़ लेगा?
चीन को लेकर चिंता : स्वाभाविक है कि चीन में जो कुछ हो रहा है, वह भारतीय सोच को भी प्रभावित करता है। भारत को यदि यह आभास होता है कि चीन पहले हमले में अपने परमाणु शस्त्रागार का उपयोग इस हद तक कर सकता है कि विश्वसनीय प्रतिकार संभव ही नहीं होगा, तो भारत को भी कठोर कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा। कहा जा रहा है कि चीन एक नई मिसाइल प्रणाली विकसित करने में लगा है। यदि ऐसा है, तो भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता, भले ही चीन की इस नई प्रणाली का लक्ष्य भारत न हो।
परमाणु हथियारों की होड़ : परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत करने वाले संगठन 'फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स' के दो प्रमुख विशेषज्ञों, हैंस क्रिस्टेंसन और मैट कोर्डा ने लिखा है कि भारत की MIRV मिसाइलों की तलाश वैश्विक परमाणु हथियारों की होड़ की ही एक अभिव्यक्ति है। चीन और ब्रिटेन भी नई प्रौद्योगिकी का तेजी से उपयोग कर रहे हैं। उत्तर कोरिया भी इसके लिए पाकिस्तान जितना ही प्रयासरत है। पाकिस्तान 'अबाबील' नाम की मध्यम दूरी की एक MIRV मिसाइल बनाने के लिए प्रयत्नशील है।
दोनों विशेषज्ञ लिखते हैं कि MIRV मिसाइलें इसलिए भी बहुत खतरनाक हैं, क्योंकि परमाणु अस्त्र संपन्न देश अपने पास मौजूद हथियारों की संख्या को तेजी से बढ़ाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। उनका निष्कर्ष है: 'एक ऐसी दुनिया, जिसमें लगभग सभी परमाणु-सशस्त्र देशों के पास MIRV क्षमताएं हैं, वह हमारे वर्तमान भू-रणनीतिक परिदृश्य से कहीं अधिक खतरनाक है।'