अहमदाबाद। भाजपा ने भले ही गुजरात में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली हो, लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन नतीजों ने कई मुद्दों पर भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।
उनका यह भी मानना है कि यद्यपि चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी परिपक्व नेता के तौर पर उभरते दिखे, लेकिन विपक्षी पार्टी ने भाजपा के खिलाफ लोगों के गुस्से को चुनावी जीत में तब्दील करने का सुनहरा मौका गंवा दिया।
गुजरात चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई थी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इसी राज्य से आते हैं। राज्य में पैठ बना रहे राहुल गांधी के प्रभाव को रोकने के लिए दोनों नेताओं ने निजी तौर पर प्रचार अभियान का नेतृत्व किया।
यद्यपि भगवा पार्टी 182 सदस्यीय विधानसभा में 99 सीटें जीतने में कामयाब रही लेकिन पिछले चुनाव में प्राप्त 115 सीटों के मुकाबले इसमें काफी गिरावट आई है। यह भाजपा के गुजरात में मिशन 150 प्लस के लक्ष्य से काफी कम है।
भाजपा ने 92 के जादुई आंकड़े से सिर्फ सात सीटें अधिक हासिल कीं जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 80 सीटें मिलीं, जो साधारण बहुमत से 12 कम है। विश्लेषकों के अनुसार नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि गुजरात में भाजपा के खिलाफ लहर थी।
राजनीतिक विश्लेषक घनश्याम शाह ने कहा कि गुजरात की जनता ने भाजपा को नोटिस दे दिया है। संदेश साफ है कि वह जनता को हल्के में नहीं ले सकती। यद्यपि यह धारणा थी कि भाजपा के लिये चुनाव जीतना कठिन काम नहीं है, लेकिन इस बार कई महत्वपूर्ण कारक थे जिसने पिछले चुनावों की तुलना में इसे अधिक जटिल बना दिया।
राज्य में चुनाव लगातार तीन वर्षों तक कम बारिश होने के बाद हुए। कम बारिश की वजह से ग्रामीण आबादी में काफी संकट में थी। इसके अलावा जीएसटी और नोटबंदी की वजह से आर्थिक सुस्ती और भाजपा के शासन के 22 साल बाद सत्ता विरोधी लहर भी महत्वपूर्ण कारक थे।
मोदी के केंद्र में आने के बाद भाजपा में जनता में जबर्दस्त अपील वाले विश्वसनीय नेताओं का अभाव भी बड़ा कारण था जो पार्टी के खिलाफ जा रहा था।
साल 2015 में पाटीदार आंदोलन और पिछले उना में दलितों पर कोड़े बरसाए जाने की घटना के बाद पैदा हुई अशांति के बाद पार्टी ने महसूस किया कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन जरूरी है और विजय रूपाणी को पिछले साल अगस्त में आनंदीबेन पटेल की जगह मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने से एक साल से अधिक समय पहले मुख्यमंत्री बनाया गया।
राजनीतिक पर्यवेक्षक हालांकि मानते हैं कि कांग्रेस चुनाव में अपने फायदे के लिए राजनीतिक हालात का पूरी तरह इस्तेमाल करने में विफल रही।
शाह ने कहा कि लोगों के असंतोष के बावजूद कांग्रेस इस सुनहरे मौके को अपने फायदे में तब्दील करने में विफल रही क्योंकि उसके पास कोई भरोसेमंद चेहरा नहीं था। नतीजों ने दर्शाया कि जहां भाजपा ने शहरी मतदाताओं पर अपना प्रभाव कायम रखा, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में उसने खराब प्रदर्शन किया। तब भी कई लोग मानते हैं कि काफी हद तक यह मोदी का करिश्मा था, जिसने भाजपा की डूबती नैया पार लगा दी।
शाह ने कहा कि सरकार के आर्थिक प्रदर्शन पर शहरी क्षेत्रों में ‘गुजराती अस्मिता’ और नरेंद्र मोदी का करिश्मा भारी पड़ा। उन्होंने अकेले भाजपा को इस चुनाव में जीत दिलाई।
एक अन्य विश्लेषक हरि देसाई ने कहा कि वह चुनाव के नतीजे को भाजपा के लिए खतरे की घंटी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के काफी परिपक्व नेता के तौर पर उभरने के रूप में देखते हैं।
देसाई ने कहा कि यह निश्चित तौर पर भाजपा और राज्य में उसके प्रदर्शन के लिए खतरे की घंटी है। पार्टी को जमीन पर ला दिया गया है। उन्होंने विकास पर चुनाव नहीं जीता है, बल्कि भावनात्मक अपील पर चुनाव जीता है। एक और बात जो इस चुनाव से सामने आती है कि कांग्रेस ने गुजरात में खुद को पुनर्जीवित कर लिया है। राहुल गांधी बेहद परिपक्व नेता के तौर पर उभरे हैं। भाजपा उनकी अब और अनदेखी नहीं कर सकती है। (भाषा)