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कोरोना से लड़ाई में महत्वपूर्ण अस्त्र योग, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का आलेख

अब तो बस एक ही बात,योगमय बने गुजरात

कोरोना से लड़ाई में महत्वपूर्ण अस्त्र योग, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का आलेख - Gujarat Chief Minister Vijay Rupani's article on International Yoga Day
योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम् पहचान ही नहीं बल्कि एक सुखद, संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने की एकमात्र कुंजी भी है। युगों पुराना यह योग भारत के स्वर्ण काल का आधार रहा है। हालांकि आधुनिकता के इस समय ने भले ही हमारी इस प्राचीन विद्या को थोड़ा धुंधला बना दिया था लेकिन 21 जून 2015 के दिन पूरे विश्व ने योग के तेज को अनुभव किया, उसे आत्मसात किया और उसे शिरोधार्य भी किया। 
 
आज पूरा विश्व लागतार सांतवे वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मना रहा है। यह देश प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का हमेशा आभारी रहेगा कि उन्होंने योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 27 सितम्बर 2014 को माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने की पहल की थी। और 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों में से 177 सदस्य देशों ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से स्वीकृति दी थी। यह हर भारतवासी के लिए बहुत ही गौरव का पल था। हालांकि इससे पूर्व भी कई ऐसे महान प्रणेता रहे हैं जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर योग को विस्तार दिया है, उसका संरक्षण किया है और उसे नई पीढ़ी में प्रस्फुटित भी किया है। यही कारण है कि आज विश्व योग के इस स्वरूप का दर्शन कर पा रहा है। वास्तव में, अतंर्राष्ट्रीय योग दिवस, हमारे उन सभी दिवंगत ऋषि-मुनियों, योगियों और योग प्रशिक्षिकों के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि है जिन्होंने अपना सर्वस्व योग विद्या को समर्पित किया था।  
 
आज विश्व के बहुत से देश भारत को एक योग गुरु की दृष्टि से देख रहे हैं और यह आशा भी रखते हैं कि हम उनके समक्ष योग की वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करें। इस विषय पर यदि थोड़ा प्रकाश डाला जाए तो वर्तमान में योग के विषय में सामान्यतः लोगों की यह धारणा है कि योग एक शारीरिक स्वास्थ्य का विषय है और आसन-प्राणायम करना योग की विधि है। लेकिन वास्तव में योग आठ क्रियाओं यानि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की समायोजित क्रिया है और इन आठों क्रियाओं का क्रमबद्ध व सूत्रबद्ध पालन ही योग का वास्तविक विज्ञान कहलाता है। 
 
विश्व के लिए एक योग गुरु के रूप में हमें योग के इसी वास्तविक विज्ञान को आगे बढ़ाना चाहिए। हमें योग के संपूर्ण प्रारूप के बारे में बात करनी चाहिए। लेकिन शायद अभी हम योग के सही स्वरूप के अनुपालन में शैशवावस्था से गुजर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि बीतते समय के साथ भारत की नई पीढ़ी और विश्व के लोग योग के वास्तविक विज्ञान को सरलता से समझेंगे और उसे अपनाएंगे भी।
 
योग के प्रति अपनी इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए हमनें साल 2019 में राज्य में गुजरात योग बोर्ड की स्थापना की। गुजरात देश का एकलौता ऐसा राज्य है जिसने ऐसा कदम उठाया है। गुजरात योग बोर्ड का उद्देश्य है कि राज्य का हर एक नागरिक योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाए। इसके लिए, गुजरात योग बोर्ड राज्य के 33 जिलों में लगभग 53 हजार से अधिक योग शिक्षकों के माध्यम से 10 हजार से अधिक निःशुल्क योग कक्षाओं का संचालन कर रहा है। हमनें लक्ष्य तय किया है कि आगामी समय में पूरे गुजरात में एक लाख योग शिक्षक और 25 हजार योग कक्षाओं का संचालन किया जाए। इस पर हम तेज़ी से काम कर रहे हैं। 

योग के महत्व को हम हाल ही की कोरोना महामारी से भी समझ सकते हैं। हम पिछले एक साल से कोरोना महामारी से संघर्ष कर रहे हैं। कोरोना महामारी के खिलाफ हमारी इस लड़ाई में योग क्रिया एक महत्वपूर्ण अस्त्र के रूप में उभर कर सामने आई है। हम सभी ने यह देखा है कि कैसे महामारी के समय में देश-विदेश के लाखों लोगों ने योग कर अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता के साथ-साथ अपनी मानसिक स्वास्थ्य की क्षमता का भी विकास किया है। योग के महत्व को देखते हुए ही हमनें पिछले साल कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान ‘Do Yoga, Beat Corona’ अभियान भी चलाया था जो कि एक बहुत ही सफल अभियान था। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में भी योग क्रिया ने कई चमत्कार किए। कई लोगों ने अपने असाध्य बीमारियों को योग क्रिया से स्वस्थ करने में सफलता पाई है। 
 
आधुनिक विज्ञान के नवीनतम अनुसंधानों में भी यही प्रमाणित हुआ है कि योग विद्या एक स्वास्थ्य परक आध्यात्मिक विद्या है और आध्यात्म विद्या भी एक समग्र विज्ञान है। विज्ञान के निष्कर्षों में भी वही सत्य ध्वनित होता है जिसे भारत के महर्षियों ने अपनी आत्मचेतना में पाया था। जैसे-जैसे विज्ञान स्थूल पदार्थों से सूक्ष्मता की ओर गति कर रहा है परिणामस्वरूप हमारे ऋषि प्रणीत सूत्रों में निहित वैज्ञानिकता भी प्रकट हो रही है। इसीलिए योग-शास्त्र को आध्यात्मिक शास्र होने के साथ-साथ एक मनोविज्ञान का शास्त्र भी कहा जा सकता है। मेरा मानना है कि निकट भविष्य में आने वाली नई पीढ़ी के लिए यह चिंतन का विषय अवश्य बनेगा जहां वे योग के वास्तविक विज्ञान के अनुपालन, इसके संरक्षण और इसके विस्तार पर चर्चा करेंगे और इस पर सार्थक काम भी करेंगे। 
 
वर्तमान में आज हम गुजरात में‘अब तो बस एक ही बात, योगमय बने गुजरात’ के नारे के साथ इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मना रहे हैं। यह हम सभी की सामाजिक जिम्मेदारी है कि इस दिवस को केवल एक दिन के उत्सव के रूप में न देखें बल्कि इसे हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक लंबी यात्रा का प्रारब्ध बनाएं।
 
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