• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Bahubali Anand Mohan Singh's absurd statement on increasing crime in Bihar
Last Updated : मंगलवार, 15 जुलाई 2025 (17:22 IST)

बिहार विधानसभा चुनाव में बाहुबलियों की धमक, बोले आनंद मोहन, अपराध बढ़ें तो समझ लें चुनाव हैं

Bihar Assembly Elections
बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है वैसे-वैसे अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों राजधानी पटना में सूबे के बड़े व्यापारी गोपाल खेमका की हत्या के बाद जहां नीतीश सरकार विपक्ष के निशाने पर है, वहीं बाहुबली से जेडीयू नेता बने आनंद मोहन सिंह ने सूबे की सरकार का बचाव अपने ही अंदाज में किया है। आनंद मोहन सिंह ने कहा यह चुनावी मौसम का असर है। उन्होंने कहा कि जब देश की सीमा पर तनाव और राजधानी में अपराध बढ़ जाए तो समझ लीजिए कि चुनाव पास है। यह कोई नहीं बात नहीं है, चुनावी मौसम में ऐसी घटनाएं होती रहती है।

आनंद मोहन सिंह बिहार की राजनीति के ऐसे बाहुबली नेता है जो कलेक्टर की हत्या के केस में उम्रकैद की सजा पाने के बाद भी आज जेल से बाहर है। साल 1994 में गोपालगंज के कलेक्टर जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन सिंह को नीतीश सरकार ने नियम बदलकर जेल से आजाद कर दिया।

आज आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद जेडीयू से सांसद है तो उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर से आरजेडी से विधायक चुने गए थे लेकिन नीतीश ने जब भाजपा के साथ सरकार बनाई तो वह बागी होकर अविश्वास प्रस्ताव पर नीतीश के समर्थन में मतदान किया और आज खुलकर जेडीयू के साथ है। विधानसभा चुनाव करीब आते ही आनंद मोहन सिंह और उनका परिवार एक बार फिर सुर्खियों में है।

बाहुबली से राजनेता बनने तक का सफर-देश के इतिहास में फांसी की सजा पाने वाले पहले राजनेता का तमगा हासिल करने वाले आनंद मोहन सिंह की जीवन की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। बिहार में जातीय संघर्ष की आग में तप कर निकलने बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह अस्सी के दशक में राजपूतों के मसीहा बनकर उभरे और आज भी उनकी बिहार की राजनीति में तूती बोलती है। आनंद मोहन सिंह की बिहार विधानसभा में बड़ी भूमिका होगी इसमें  कोई दो राय नहीं है।

1980 बिहार में शुरु हुए जातीय संघर्ष के सहारे रानजीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले आनंद मोहन सिंह राजपूतों के बड़े नेता थे। सियासत में आने से पहले ही आनंद मोहन सिंह अपनी दबंगई के लिए मिथिलाचंल में बड़ा नाम बन गए थे। बिहार का कोसी का इलाका करीबी तीन दशक तक जातीय संघर्ष के खून से लाल होता रहा है। अस्सी के दशक में बिहार में अगड़ों-पिछड़ों के जातीय संघर्ष ने बिहार की राजनीति में कई बाहुबली नेताओं की एंट्री का रास्ता भी बना। 

नब्बे के दशक में बाहुबली आनंद मोहन सिंह बिहार की सियासत में एंट्री करते है। बिहार में  आरक्षण विरोध की सियासत करने वाले आनंद मोहन सिंह 1990 में मंडल कमीशन का खुलकर विरोध करते हैं और 1993 में अपनी अलग पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन कर लेते हैं। जाति की राजनीति के सहारे अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले आनंद मोहन नब्बे के दशक में देखते ही देखते राजनीति के बड़े चेहरे हो गए, लोग उनको लालू यादव के विकल्प के रूप में भी देखने लगे थे। 1996 और 1998 में आनंद मोहन सिंह शिवहर लोकसभा सीट से चुनाव में उतरते हैं और बड़े अंतर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच जाते हैं। 

समाजवादी क्रांति सेना बनाने वाले आनंद मोहन सिंह के खौफ के आगे पुलिस नतमस्तक थी। कोसी के कछार में आनंद मोहन सिंह की प्राइवेट आर्मी और बाहुबली पप्पू यादव की सेना की भिड़ंत से 'गृहयुद्ध' जैसे बने हालात को काबू में करने के लिए लालू सरकार को बीएसएफ का सहारा लेना पड़ा था।    

1994 में बिहार में गोपालगंज के कलेक्टर दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी जाती है। हत्या का आरोप आनंद मोहन सिंह पर लगता हैं और 2007 में कोर्ट आनंद सिंह मोहन को फांसी की सजा सुनाती है हालांकि बाद में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
ये भी पढ़ें
Share bazaar: शेयर बाजार में 4 दिन से जारी गिरावट थमी, Sensex 317 और Nifty 114 अंक चढ़ा