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Last Updated : शनिवार, 27 फ़रवरी 2021 (18:09 IST)

आयुर्वेद और तकनीक के मेल से तलाशे जाएंगे प्रभावी चिकित्सा विकल्प

आयुर्वेद और तकनीक के मेल से तलाशे जाएंगे प्रभावी चिकित्सा विकल्प - AYURVED, MEDICAL
नई दिल्ली, कोविड-19 महामारी के बाद पूरे विश्व का ध्यान भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हुआ है। आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम  चिकित्सा प्रणालियों में से एक है।

आयुर्वेदिक औषधियां अनेक जटिल रोगों के निदान में कारगर पायी गयी हैं। वर्तमान में प्राचीन आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान के मेल से चिकित्सा के क्षेत्र में नए विकल्प तलाशने  के प्रयास जारी हैं। इसी दिशा में विभिन्न शोध-परियोजनाओं और शिक्षण में परस्पर सहयोग बढ़ाने और एक साथ काम करने के उद्देश्य से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधपुर ने एक आपसी सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।

इस सहमति पत्र के अनुसार दोनों संस्थान शैक्षणिक एवं अनुसंधान की गतिविधियों में सूचनाओं का आदान-प्रदान करेंगे, कौशल-विकास के कार्यक्रमों का संयुक्त रूप से संचालन करेंगे, तथा शोध प्रयोगशालाओं का परस्पर उपयोग करते हुए शैक्षणिक एवं शोध-कार्यों का संचालन भी करेंगे।

इस सहमति-पत्र पर अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर के कुलपति प्रोफेसर अभिमन्यु कुमार एवं आईआईटी, जोधपुर के निदेशक प्रोफेसर शान्तनू चैधरी ने हस्ताक्षर किए है।

सहमति पत्र के संदर्भ में जानकारी देते हुए सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर की कुलसचिव सीमा कविया ने कहा कि प्रस्तावित साझा शोध-गतिविधियों के माध्यम से व्यक्ति की प्रकृति से जुड़े आयुर्वेद के सिद्धान्त को आधुनिक तकनीक एवं वैज्ञानिक मानदंडों मापदण्डों पर परिभाषित करने में मदद मिलेगी।

इस अध्ययन से आयुर्वेद में बताए गए तीन दोष- वात, पित्त, और कफ की विशिष्टताओं के अनुसार व्यक्ति-विशेष के लिये हितकर खानपान एवं दिनचर्या का निर्देशन कर पाना सम्भव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि यह शोध आयुर्वेदिक औषधियों के फार्मेको-डायनेमिक्स के विश्लेषण में भी सहायक हो सकेगा। साथ ही साथ नाड़ी-दोष, पंचकर्म इत्यादि में सहायक विभिन्न उपकरणों का तकनीक के माध्यम से विकास किया जा सकेगा।

पर्यावरण-प्रदूषण से प्रभावित हुई आयुर्वेदिक औषधियों  के अध्ययन एवं जल-प्रदूषण एवं वायु-प्रदूषण के नियंत्रण से जुड़े कई अन्य पहलुओं पर भी इस शोध के द्वारा नयी जानकारियां सामने आने की सम्भावना है। दोनों संस्थान जल्द ही एक संयुक्त कार्यशाला का आयोजन करेंगे जिसमें सुझावों एवं संकल्पनाओं को एकत्रित किया जाएगा और उसी अनुरूप आगे की योजनाएं बनाई जायेंगी। (इंडिया साइंस वायर)