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Last Modified: मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021 (13:18 IST)

टीकाकरण से ही मिल सकती है कोरोना से विश्वसनीय सुरक्षा

टीकाकरण से ही मिल सकती है कोरोना से विश्वसनीय सुरक्षा - corona and vaccination
नई दिल्ली, दो सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों और मॉडल अनुमानों के अनुसार भारत की एक बड़ी आबादी में इस समय सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है।

हालांकि, मौजूदा प्रमाणों से पता चलता है कि एंटीबॉडिज की उपस्थिति के कारण बनने वाली यह रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहेगी। इसकी तुलना में टी-सेल द्वारा बनी रोग प्रतिरोधक क्षमता कहीं लम्बे समय तक प्रभावी रहती है।

इसीलिए वैज्ञानिकों का यह स्पष्ट मत है कि कोरोना वायरस के विरुद्ध दीर्घकालिक एवं विश्वसनीय सुरक्षा सिर्फ टीकाकरण से ही मिल सकती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य में यह बात कही गई है।
चेन्नई स्थित गणितीय संस्थान के निदेशक राजीव एल. करंदीकर, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), हैदराबाद के प्रोफेसर एम. विद्यासागर जैसे विशेषज्ञों की टिप्पणियों पर आधारित इस वक्तव्य में भारत में तेज गति से हो रहे टीकाकरण की तुलना शेष विश्व से की गई है।

इसमें कहा गया है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित  कोविड-19 नेशनल सुपर मॉडल कमेटी के अनुमान के अनुसार मार्च, 2021 के अंत तक कोविड-19 के सक्रिय मामलों की संख्या गिरकर कुछ हजार में सिमट जाएगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस के कारण फैल रही कोविड-19 महामारी में वृद्धि के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत में इसका संक्रमण सितंबर, 2020 में किसी समय अपने चरम पर था और उसके बाद से यह लगातार घट रहा है।

11 सितंबर, 2020 को जहां अधिकतम 97,655 प्रतिदिन नये मामले मिले थे, वहीं फरवरी, 2021 के पहले सप्‍ताह में यह संख्‍या घटकर 11,924 पर आ गई। इसमें से आधे मामले केरल में हैं। इस बात को सुनिश्चित करना जरूरी है कि संक्रमण की दर को दोबारा बढ़ने न दिया जाए। जैसा कि इटली, ब्रिटेन और अमरीका जैसे कई देशों में हुआ है।

विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकरण से प्राकृतिक संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता मिलती है, जो इस महामारी के नियंत्रण के लिए एक अचूक अस्त्र है। हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि पिछले संक्रमणों के कारण बनी एंटीबॉडिज की मौजूदगी, टीकाकरण के मुकाबले वायरस के रूपांतरण से दोबारा होने वाले संक्रमण के खिलाफ कम सुरक्षा देती हैं। इसीलिए, कहा जा रहा है कि मान्य वैक्सीन के जरिये राष्ट्रव्यापी  टीकाकरण कार्यक्रम को शीघ्रता से पूरा किया जाना अनिवार्य  है।

टीकों से संबंधित एक रोचक पहलू मृत वायरस से तैयार किये गए टीके से बनी एंटीबॉडिज और स्पाइक प्रोटीन से तैयार टीके से बनी एंटीबॉडिज को लेकर है। यह उल्लेखनीय है कि मृत वायरस से तैयार टीके से बनी एंटीबॉडिज, स्पाइक प्रोटीन से तैयार टीके से बनी एंटीबॉडिज के मुकाबले रूपांतरित वायरस के विरुद्ध कहीं अधिक प्रभावी हैं।
देशव्यापी टीकाकरण की आवश्यकता के संदर्भ में भारत के नियामक प्राधिकारों ने दो वैक्सीनों को मंजूरी दी है– उनमें से एक (कोविशील्‍ड) को बिना शर्त और दूसरी (कोवैक्‍सीन) को क्लिनिकल ट्रायल मोड में मंजूरी मिली है। विशेषज्ञों की समिति इस बात से सन्तुष्ट है कि दोनों वैक्सीन सुरक्षित हैं और कोरोना वायरस के विरुद्ध प्रभावी प्रतिरक्षा उत्पन्न करती हैं।


डॉ शेखर सी. मांडे (बाएं), प्रोफेसर एम. विद्यासागर (मध्य) और राजीव एल. करंदीकर (दाएं)

इन दोनों वैक्सीन को लेकर शुरू किए गए टीकाकरण अभियान को कुछ लोगों ने जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताकर इसके महत्व को कम करने का प्रयास किया। हालांकि, डब्‍ल्‍यूएचओ ने कहा है कि किसी वैक्सीन को आपात स्थिति में मंजूरी देने के पहले भी यह देखना जरूरी है कि वह 50 प्रतिशत तक प्रभावी अवश्य हो।

कभी-कभी 40 प्रतिशत की प्रभावशीलता वाली वैक्सीन भी कुछ हद तक संरक्षण दे देती हैं। लेकिन, कभी-कभी 80 प्रतिशत की प्रभावशीलता वाली वैक्सीन लगने के बाद भी व्यक्ति संक्रमण की चपेट में आ सकता है। ऐसे में, यह अपेक्षा की जाती है कि नियामक प्राधिकार इस दिशा-निर्देश से बंधे न रहकर विवेकपूर्ण निर्णय लेंगे। इसके साथ ही, यह भी आवश्यक है कि बेशक लक्षित आबादी में हर किसी का (18 वर्ष से अधिक उम्र) टीकाकरण हो जाए, तब भी लोगों को सुरक्षा मानदंडों का पालन करते रहना होगा।

वायरस के प्रसार के साथ-साथ इसके रूपांतरण को रोकने पर भी जोर दिया जा रहा है। इसके लिए सिर्फ किसी एक देश के प्रत्येक व्यक्ति का टीकाकरण ही पर्याप्त नहीं है। महामारी का अंत करने के लिए दुनिया भर के लोगों का शीघ्रता से टीकाकरण किया जाए। भारत सिर्फ अपनी टीकाकरण जरूरतों को पूरा करने में ही सक्षम नहीं है, बल्कि वह इस मामले में पूरे विश्व की मदद कर सकता है। वैक्सीन की वैश्विक मांग को पूरा करने में अपना योगदान देकर और वैश्विक समुदाय में इस महामारी से लड़ने की उम्मीद बंधाकर भारत ने महामारी-जन्य संकटकाल में विश्व मंच पर अपनी अग्रणी उपस्थिति दर्ज करायी है। (इंडिया साइंस वायर)
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