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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 23 दिसंबर 2019 (20:13 IST)

एक साल में 5 राज्यों में BJP के सरकार गंवाने के 5 बड़े कारण, 35 फीसदी क्षेत्र में सिमटी पार्टी

एक साल में 5 राज्यों में BJP के सरकार गंवाने के 5 बड़े कारण, 35 फीसदी क्षेत्र में सिमटी पार्टी - Analysis : Five reason BJP lose 5 big state in last one year
झारखंड की हार के साथ भाजपा ने देखते ही देखते पिछले एक साल में 5 बड़े राज्यों में अपनी सत्ता गवां दी है। पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार से जो पार्टी ने सत्ता गंवाने का सिलसिला शुरु किया था वह महाराष्ट्र होते हुए अब झारखंड तक पहुंच गया है। दिसंबर 2017 में भाजपा जो देश के 75 फीसदी क्षेत्र पर शासन कर रही थी अब मात्र 35 फीसदी क्षेत्र पर ही सिमट गई  है। ऐसे में एक साल में भाजपा के 5 बड़े राज्यों में हार के 5 बड़े कारणों पर चर्चा शुरु हो गई है। 
 
1- स्थानीय मुद्दों को वरीयता नहीं देना – लगातार 5 बड़े राज्यों में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण उसका राष्ट्रीय मुद्दों पर राज्यों के चुनाव लड़ना है। झारखंड में भी भाजपा ने राममंदिर और राष्ट्रवाद का मुद्दा जोर शोर से उठाकर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद भाजपा को फिर एक बार निराशा हाथ लगी। इसके साथ ही झारखंड में विपक्षी पार्टियों ने स्थानीय जल, जंगल और जमीन का मुद्दा उठाकर वोटरों को अपने साथ ले जाने में सफल हो गई। ठीक इसी तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने किसान कर्जमाफी को जो कार्ड खेला था और किसानों के मुद्दों को जोर शोर से उठाया वहीं उसकी जीत का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड साबित हुआ था।
 
2- सहयोगियों को एकजुट नहीं रख पाना – झारखंड में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण उसका अपने गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट नहीं रख पाना है। ठीक चुनाव से पहले जिस तरह पांच साल भाजपा के साथ सरकार चलाने वाली आजसू ने उसका साथ छोड़कर अकेले चुनाव लड़ना और उसका 3 से 4 सीटों पर चुनाव जीतना इस बात को बताता है कि अगर आजसू और भाजपा एक साथ चुनाव लड़ती तो स्थिति इतनी बुरी नहीं होती। इससे पहले महाराष्ट्र में भी अपने 30 साल पुराने सहयोगी शिवसेना को साथ लेकर नहीं चल पाने के चलते वह राज्य की सत्ता अपने हाथ से गवां बैठी थी। 

3 – भाजपा का ओवर कॉन्फिडेंस  – लगातार 5 राज्यों में सत्ता गंवाने के पीछे भाजपा का ओवर कॉन्फिडेंस में होना उसकी हार का बड़ा कारण साबित हो रहा है। झारखंड में भाजपा ने 65 प्लस का नारा और हरियाणा में 75 पार का नारा दिया था लेकिन दोनों ही राज्यों में पार्टी अपने लक्ष्य से आधी सीटों पर जीत नहीं हासिल कर सकी। इसके साथ मध्य प्रदेश में भाजपा जिसने 200 पार का नारा दिया था वह मुश्किल से विधानसभा में 100 का आंकड़ा पार कर पाई। भाजपा की चुनावी रणनीति में यह चूक उसके लिए धीमे धीमे बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में भाजपा 15 सालों से सत्ता में काबिज थी लेकिन उसके जनाधार किस कदर घटा इसका भाजपा का पूर्वानुमान नहीं था या भाजपा कहीं न कहीं अपनी रणनीति में चूक कर गई।
 
4. मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ना – 2014 के बाद भाजपा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर अत्यधिक निर्भरता भी अब उसके लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। दिसंबर 2017 तक भाजपा ने जिन भी राज्यों में सत्ता हासिल की उसे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर जीत मानी गई है। इससे ठीक उलट जिन राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा के हाथ से सत्ता छीनी उसमें केंद्रीय नेतृत्व की जगह पार्टी के राज्य के नेताओं की बड़ी भूमिका रही है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की तरह अकेले दम पर भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। 
 
5. भीतरघात और आपसी खींचतान – बीते एक साल में भाजपा ने जिन पांच राज्यों में सत्ता गंवाई है उसमें से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तो ऐसे बड़े राज्य थे जिसमें पार्टी थोड़ी सी चूक से सरकार बनाने से चूक गई। मध्य प्रदेश में तो भाजपा कांग्रेस से महज पांच सीटों से पिछड़ गई वहीं महाराष्ट्र में तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी चुनाव पूर्व गठबंधन के सहयोगी को आपसी खींचतान के चलते नहीं एकजुट रख पाई।