भारतीय राजनीति में सुषमा स्वराज एक ऐसा नाम था जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। अपनी सरल भाषा, हाजिरी जवाब और सबकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहना, ऐसा था सुषमा स्वराज का राजनीतिक लक्ष्य। सुषमा स्वराज ने बहुत ही छोटी उम्र में राजनीति सफर शुरू कर दिया था। चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए वह हमेशा तत्पर रहती थीं। वह केंद्रीय मंत्री दूरसंचार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और संसदीय कार्य विभागों की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई। लेकिन उनकी पहचान विदेश मंत्री के रूप में बखूबी बनी। जिसका मुख्य कारण था वह विदेश में फंसे भारतीयों द्वारा ट्वीट करने पर मदद के लिए तुरंत एक्टिव हो जाती थीं। 6 अगस्त यानी आज सुषमा स्वराज की दूसरी पुण्यतिथि हैं। उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। विदेश मंत्री के तौर पर जो कार्य उन्होंने भारतीयों के लिए किया है वह आज भी याद है।
विपक्ष भी सुनता था उनके भाषण
सुषमा स्वराज के भाषण में जो तल्ख था, अपनी बात रखने का सलीका था, वह इस कदर था जिसका विरोधी भी सम्मान करते थे। उनके विरोधी भी यही कहते थे कि उन्होंने कभी किसी की लकीर को छोटा करके अपनी लकीर बड़ी नहीं की। सुषमा स्वराज का भाषण का एक किस्सा है जिसे सुनने के बाद आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
44 साल की उम्र सुषमा स्वराज ने 13 दिन की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान संसद में कहा था, ''आज से पहले इस सदन में एक दल की सरकार होती थी और बिखरा हुआ विपक्ष हुआ करता था लेकिन आज एक बिखरी हुई सरकार है और एकजुट विपक्ष है। क्या यह द़श्य अपने आप में जनादेश की अवहेलना की खुली कहानी नहीं कह रहा।'' आगे कहा था कि, 'राज्य का सही अधिकारी अपने राज्य के अधिकार से वंचित कर दिया गया। त्रेता में यही घटना राम के साथ घटी थी और महाभारत में युधिष्ठीर के साथ।'
नाम उनका सुषमा स्वराज था। पर असल में स्वराज तो उनके दिल में बसता था। वह जानती थी कि जनता के दिल में कैसे जगह बनाई जाती थी। बातों से ज्यादा एक्शन में विश्वास रखती थी। बहुत कम नेता होता है जो कुर्सियों से कमाल नहीं रचते बल्कि वे अपनी सूझबूझ से कुर्सियों की महत्ता निर्धारित करते हैं। वह कहती थी, 'Terror and Talks Can't Work Together.' कभी बयानों में शायराना संदर्भ होता था तो कभी हल्के फुल्के अंदाज में व्यंग भरे शब्द होते थे। बस मंच और मौके से उनकी भाषा का लहजा बदलता था लेकिन तथ्य की परिभाषा नहीं बदलती थी। बेशक उनके जाने से आज भी यह लगता है अच्छे नेताओं की गिनती थोड़ी कम हो गई।
वह जब बोलती थी उनकी जिह्वा पर जैसे साक्षात सरस्वती विराजमान हो। सधी हुई भाषा ,सधी हुई शैली और एक -एक शब्दों का इस्तेमाल जैसे शिल्पी की तरह किया हो।
सुषमा स्वराज के बात विपक्ष भी मानते थे। और यह भी मानते थे कि उनके जैसा कोई प्रवक्ता नहीं है। साल 2009 से 2014 तक विपक्ष नेता रही सुषमा स्वराज के भाषण के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मुरीद थे। संसद में खुद पूर्व पीएम मनमोहन सिहं ने कहा था कि, 'मैं उनकी तरह तेजस्वी वक्ता नहीं हूं।'
जानिए कब-कब की थी भारतीयों की मदद
-दिवंगत सुषमा स्वराज ने मोदी सरकार-2 में विदेश मंत्री की भूमिका के साथ संपूर्ण न्याय किया था। अगस्त 2016 में दिल्ली के फैजान पटेल अपनी पत्नी के साथ यूरोप जा रहे थे। लेकिन उनकी पत्नी सना का पासपोर्ट गुम हो गया था। तब ट्वीट कर सुषमा स्वराज से गुहार लगाई थी। इसके बाद सना का पासपोर्ट बन गया था।
- भारतीय शूटर अभिनव ब्राजील के रियो प्री ओलंपिक में गए थे लेकिन उनके कोच का पासपोर्ट चोरी हो गया था। अभिनव ने ट्वीट कर सुषमा स्वराज से गुहार लगाई थी। वह उनकी मदद के लिए तैयार थी लेकिन एक शर्त रखी थी कि आप भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतेंगे।
- गीता पाकिस्तान में 10 साल की उम्र पाक रेजंर्स को मिली थी। हालांकि यह साफ तौर पर नहीं पता चल सका की वह पाकिस्तान कैसे पहुंची। करीब 10 साल तक वह पाक में ईधी फाउंडेशन में रही। सुषमा स्वराज ने गीता को पाक से भारत लाने की पूरजोर कोशिश की। इसके बाद 2016 में गीता को भारत लाया गया।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। जिसमें स्वराज ने गीता को हिंदुस्तान की बेटी कहा था। इसके बाद गीता को मप्र के इंदौर गूंगे-बहरे बच्चों की एक संस्थान में रखा गया। सुषमा स्वराज गीता के हाथ भी पीले कराना चाहती थी लेकिन 6 अगस्त 2019 को एम्स में दिल का दौरा पड़ा और 67 साल की आयु में निधन हो गया।