एक साल और... मनु का बर्थ डे आ रहा है। मनु से ज्यादा मम्मा उत्साहित रहती है, इस दिन के लिए। इस बार क्या मेनू होगा ? पिछले साल चाइनीज था, उसके पहले मनु की फेवरेट पाव-भाजी, अब छोले-भटूरे ठीक रहेंगे।
रिबिन्स और झालरे हो पुराने गई है, नई लानी है, बलून्स, चॉकलेट और... रिटर्न गिफ्ट, वो तो मनु ही पसंद करता है।
“मम्मा, इस बार फ्रेंड्स को घर पर नहीं बुलाएंगे। ”
(तो क्या मैकडोनाल्ड...मम्मा का दिमागी कैलकुलेटर हिसाब लगाना शुरू कर चुका है।)
“इस बार हम, मामा और पवन, बस। अब मै बड़ा हो गया हूं।“
मनु ने जो कहा मम्मा तक सन्देश तो सही पंहुचा पर अर्थ ग्रहण करने में वक्त लग रहा है। संचार के सिद्धांत मुहं के बल गिर पड़े हैं।
ये मनु ही कह रहा है ? अभी पिछले साल तक तो दोस्तों की लिस्ट ख़तम होने का नाम नहीं लेती थी। साथ मिलकर बनाई 15-16 की ‘फाइनल लिस्ट’ बर्थ डे तक 25 का आंकड़ा पार कर जाती।
“मम्मा, वो 'अभी' याद है ना, सार्थक के घर में किराये से रहता था, आज मिल गया पार्क में, तो उसे भी बुला लिया, ठीक किया न?”
“आपने ही कहा था, प्रभु को साथ ले जाओ। अब अर्चित को इन्वाइट करना पड़ा ना, उसका बेस्ट फ्रेंड है।”
इसके बाद भी पार्टी में हर बार 2-4 नई शक्लें ‘नमस्ते आंटी’ का गेट पास लिए प्रवेश पाती दिखती।
(बाद में रहस्य उजागर किया गया, जितने फ्रेंड्स उतने गिफ्ट.)
अधिकांश के साथ 2-4-6 साल तक के छोटे भाई- बहनों की फ़ौज भी होती।
कहने की जरूरत नहीं कि इस आतिथ्य में हॉल की तीन स्तरीय बैठक व्यवस्था चरमरा जाती, स्वागत से विदाई तक ध्वनि प्रदूषण के सारे प्रतिमान धवस्त होते और नए कीर्तिमान गढ़े जाते। और जब ये विभिन्न आकार-प्रकार के जजमान एक साथ प्रसाद ग्रहण करने विराजते, तो खाद्य-आपूर्ति विभाग के सारे पुख्ता इंतजामों की धज्जियां उड़ जाती।
“आंटी, पाव- भाजी बहुत टेस्टी है, थोड़ी और प्लीज..”
“अंकल, छोटू को एक पीस केक और मुझे भी.”
“सॉस..., चिप्स... कोल्ड ड्रिंक ......”
“अरे, इसने पानी गिरा दिया ...”
उधर मेहमान रुखसत, इधर मनु महराज का गिफ्ट खोलो अभियान जोरों पर...
“मम्मा, प्रभु ने क्रॉस वर्ड दिया है।
“फाजिल ने फोटो फ्रेम ..”
‘टिफिन .., बॉटल ...... कलर्स ....”
अगले 2-3 दिनों तक घर कैसा भरा-भरा सा लगता। रिबिन्स और झालरों से सजी दीवारें, कोनों से निकलते फूटे-पिचके गुब्बारे और यहां-वहां लुढ़कती रंगीन थर्माकोल बॉल्स, सुकून भरा एहसास कराते कि घर में कुछ हुआ है। मनु भी 3-4 बार अपना गिफ्ट्स का खजाना खोल कर देखता रहता।
और अब ये सब स्मृति का हिस्सा हो जायेंगे ? नहीं, मनु को समझाना चाहिए...
या शायद मम्मा को ही समझना चाहिए। मनु बड़ा हो रहा है ....
बर्थ डे के एक दिन पहले मनु का स्वर थोडा उदास है, ‘कल गिफ्ट्स भी नहीं मिलेंगे न, हमेशा जैसे”
‘तो बुलाना है फ्रेंड्स को?”
“ना”
मनु स्कूल गया है. मम्मा शॉपिंग कर रही है, टिफिन...,बॉ़टल ... कलर्स ....
“हैप्पी बर्थ डे, राजा बेटा..”
मम्मा ने हर साल की तरह मनु की फेवरेट चॉकलेट तकिये के पास रख दी है।
फिर पापा का गिफ्ट ..क्रिकेट बैट.., दादा का ..नानू का ..... मामा का ......
और फिर गिफ्ट पेपर में रैप किए हुए टिफिन...,बॉटल ... कलर्स ...., हमेशा जैसे”
रात को मनु गिफ्ट्स गिन रहा है। कुल 11, “नॉट बेड और लाइफ का पहला डियो, वह भी मम्मा की तरफ से...वाऊ।”
फ्रिज में मनु को किंडर जॉय रखा हुआ दिख गया है। हर बर्थ डे का स्पेशल सरप्राइज, जिसे मनु को दिन भर में ढूंढना होता है।
“मनु बेड पर किंडर जॉय नहीं.... .
“हूं’
मनु बेड पर उल्टा लेटकर किंडर जॉय के साथ मिले बालिश्त भर के एयरोप्लेन से खेल रहा है। हमेशा की तरह।
“इतना भी बड़ा नहीं हुआ है अभी।” मम्मा मुस्कुराते हुए सोच रही है।