जैसे ओस से भीगी भोर में चुपके से किसी ने हाथ पर हरसिंगार रख दिया हो
शैली बक्षी खड़कोतकर | सोमवार,अप्रैल 1,2024
स्मृति आदित्य, मीडिया जगत का सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम। शानदार फीचर्स के लिए तीन बार लाड़ली मीडिया अवार्ड विजेता स्मृति ...
मित्रता दिवस पर कविता: सहेलियां जब मिलती हैं...
शैली बक्षी खड़कोतकर | शनिवार,अगस्त 5,2023
सहेलियां जब मिलती हैं...हंसी तितलियों-सी उड़ती है, बातें झरने-सी झरती है, आंखें अनकहे राज़ सुनाती है, ...सहेलियां जब ...
ललित निबंध : स्मृति, तुम्हारा स्मरण रहे..!
शैली बक्षी खड़कोतकर | शुक्रवार,जनवरी 27,2023
हम स्वयं नहीं जानते कि कब कौन-सी बात स्मृति-पटल पर अंकित हो जाती है और जाने किस मोड़ पर ये बावरी दबे पांव हमारी पथ-सखी ...
शब्द! तुम जी उठो फिर से...!
शैली बक्षी खड़कोतकर | बुधवार,फ़रवरी 9,2022
हे शब्द-शक्ति! मेरे आराध्य.... सुनो! एक अकिंचन भक्त की आर्त पुकार है.... जागृत हो! कहां हो तुम? अपनी शक्ति किसी सीपी ...
मैं और मेरी मां : मां मेरे हिस्से बहुत कम आती है
शैली बक्षी खड़कोतकर | बुधवार,अगस्त 4,2021
मां मेरे हिस्से बहुत कम आती है..!
शिकायत नहीं, बस एक हकीकत है.
मां हूं, पर मां की मुझे भी ज़रूरत है. देहरी लांघने से ...
हैप्पी फादर्स डे : क्योंकि पिता कभी बूढ़े नहीं होते...
शैली बक्षी खड़कोतकर | रविवार,जून 20,2021
स्त्री मां होती है पर पुरुष पिता बनते हैं,
बहुत धीमे, गढ़े जाते हैं, समय की आंच पर|
कांपते सख्त हाथों में नन्हें जीव ...
आयशा : आत्महत्या या प्रेम का कपट-वध?
शैली बक्षी खड़कोतकर | बुधवार,मार्च 3,2021
8 मार्च, महिला दिवस... हर साल की तरह पत्र-पत्रिकाएं अपने विशेषांकों की तैयारी में जुटी थीं, चैनल्स में उस दिन की विशेष ...
mothers day poem : जो मां का आंचल मुट्ठी में भर गहरी नींद में सोया हो
शैली बक्षी खड़कोतकर | शुक्रवार,मई 8,2020
सबसे खूबसूरत है वह
जिसके माथे और हथेलियों पर
मां ने काला दीठौना लगाया हो।
सबसे तृप्त है वह
जिसे मीठी झिड़की के ...
mothers day poem : तुम सर्वस्व हो, सृष्टि हो मेरी
शैली बक्षी खड़कोतकर | बुधवार,मई 6,2020
माँ,
तुम्हारी स्मृति,
प्रसंगवश नहीं
अस्तित्व है मेरा।
धरा से आकाश तक
शून्य से विस्तार तक।
कर्मठता का अक्षय ...
lockdown poem : संभाल कर रखिए जनाब ये फ़ुरसत के लम्हें
शैली बक्षी खड़कोतकर | शुक्रवार,अप्रैल 10,2020
संभाल कर रखिए जनाब ये फ़ुरसत के लम्हें
बड़ी क़ीमत अदा कर ये दौर ए सुकूं पाया है
अपने हाथों से दे रहे थे ज़ख्म ...