बुधवार, 24 दिसंबर 2025
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. वीमेन कॉर्नर
  3. डोर रिश्तों की
  4. Brother-sister relationship
Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 5 अगस्त 2025 (10:46 IST)

भाई-बहन का रिश्ता: बढ़ती सुविधा, घटती दूरी

Relationship
- तनुजा चौबे
 
जैसे-जैसे मनुष्य जीवन आधुनिक हो रहा है, वैसे-वैसे तकनीकी सुविधाएं रिश्तों को सहेजने और करीब लाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। पहले की तरह रिश्तों में दूरी अब बची नहीं है। इसी कड़ी में सृष्टि का बनाया खूबसूरत रिश्ता, भाई-बहन का संबंध भी इन बदलावों से अछूता नहीं रहा है।
 
पहले जहां भाई या बहन को महीनेभर एक-दूसरे की शक्ल ना देखने की 'सजा' मिलती थी, अब मोबाइल, व्हाट्सऐप, लैपटॉप आदि के जरिए कितनी भी दूरियां क्यों न हों- संवाद तुरंत संभव है। अब न केवल आवाज, बल्कि चेहरा और भाव भी स्क्रीन पर देखे जा सकते हैं। चाहे वे देश में हों या विदेश में, आज एक क्लिक से दिल की बात कही जा सकती है। वीडियो कॉल में वह मुस्कान भी मिल जाती है, जो दिल को सुकून देती है।
 
त्योहार, जन्मदिन या किसी दुखद घटना के समय भी अब इंसान अपनों की सूरत देखने से वंचित नहीं रहता। दूर रहकर भी रिश्ते करीब बने रहते हैं। अब तो यह भी जान लिया जाता है कि आज उसने क्या बनाया, क्या खाया, क्या पहना। अब भाई-बहन एक-दूसरे की जिंदगी से जुड़े रहते हैं, भले ही मीलों की दूरी हो। अब 'क्या हाल है?' का जवाब इमोजी में भी मिल जाता है।
 
ऑनलाइन दुनिया ने फिजिकल दूरी को लगभग समाप्त कर दिया है। अब स्नेह सिर्फ चिट्ठियों का मोहताज नहीं, रियल टाइम संवाद में बदल चुका है। हर छोटी-बड़ी बात को साझा करना अब सामान्य बात हो गई है। दिनभर के अनुभव, भावनाएं और चिंता- सब अब स्क्रीन के जरिए साझा हो जाती हैं। जैसे पुरानी तस्वीरों के ऐल्बम भावनाओं को जोड़ते थे, वैसे ही अब गैलरी शेयरिंग रिश्तों को और गहरा करती है। कभी वॉयस मैसेज में छुपा प्यार भी सैकड़ों किलोमीटर की दूरी को पलों में मिटा देता है।
 
अब लड़कियां और लड़के समान रूप से आत्मनिर्भर हैं, आर्थिक रूप से सक्षम हैं। स्त्री अब केवल रिश्तों के निर्वाह की ज़िम्मेदारी नहीं उठाती, बल्कि बराबरी से साथ भी देती है। पहले जो यात्राएं हफ्तों में पूरी होती थीं, अब वे चंद घंटों की रह गई हैं। भाई अब बहन का रक्षक ही नहीं, उसका संबल और प्रेरणा भी है। और बहन, अब केवल राखी बांधने वाली नहीं, समर्थन की मज़बूत दीवार बन चुकी है। उपहार भेजना हो तो अब डाक या लिफाफे की ज़रूरत नहीं, ऑनलाइन कुछ ही पलों में स्नेह पहुंच जाता है। अब हर रिश्ते की डोर तकनीक से जुड़ी है, लेकिन भावना अब भी केंद्र में है। 
 
डिजिटल माध्यमों ने वक़्त की सीमाओं को तोड़ दिया है। रिश्तों की गर्माहट अब टेक्स्ट, फोटो, और वीडियो में भी झलकती है। शब्दों की जगह इमोजी ने ले ली है, लेकिन भाव वही रहते हैं। अब ज़माना 'अनदेखे अपनों' का नहीं, 'हर वक़्त जुड़े रहने' का है। जन्मदिन हो, सालगिरह हो या कोई उपलब्धि- स्टेटस, फेसबुक या इंस्टाग्राम पर एक संदेश रिश्तों की गर्माहट को और बढ़ा देता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भले ही छुट्टियां न मिलें, फिर भी आत्मीय जनों से जुड़ाव बना रहता है।
 
परेशानी आने पर तुरंत मदद संभव है- तकनीक अब सिर्फ सुविधा नहीं, भावनात्मक सहारा भी है। भाई-बहन का रिश्ता अब केवल पारिवारिक नहीं, डिजिटल आत्मीयता में भी ढल चुका है। वो 'भाई तुमसे बात करनी है' वाला मैसेज, कई बार मन का बोझ हल्का कर देता है। ऑनलाइन गेम, वीडियो कॉल या छोटे मैसेजेस से भी जुड़ाव बना रहता है। हालांकि, हर सुविधा के दो पहलू होते हैं। जब बातचीत केवल चैट या कॉल तक सीमित हो जाती है, तो व्यक्तिगत मुलाकातों की संभावनाएं घट जाती हैं। लंबे समय तक सिर्फ टेक्स्ट पर निर्भर रहने से कई बार भावनाएं अधूरी रह जाती हैं, जिससे गलतफहमियां जन्म ले सकती हैं। कभी-कभी अनकहे जज़्बात स्क्रीन पर महसूस नहीं हो पाते।
 
जब रिश्ते वर्चुअल हो जाते हैं, तो स्पर्श और वास्तविक उपस्थिति की कमी खलती है। भाई का सिर पर हाथ रखना या बहन की हंसी- यह सब स्क्रीन से बाहर की चीजें हैं। सोशल मीडिया पर दिखावे की दुनिया वास्तविक रिश्तों पर प्रभाव डालती है। कभी दिखावे की पोस्ट जलन और तुलना को जन्म देती है। रिश्ते जब लाइक्स और कमेंट्स में तोले जाने लगते हैं, तो अपनापन पीछे छूटने लगता है। स्नेह अब भी है, पर कभी-कभी उसमें छलकता दिखावा भी घुल जाता है।
 
इंस्टाग्राम या फेसबुक पर अपनी 'लाइफस्टाइल' को बेहतर दिखाने की होड़ में कई बार लोग झूठी बातें साझा कर देते हैं। इससे अपने ही रिश्तेदारों या दोस्तों में ईर्ष्या और मनमुटाव पनपने लगता है। डिजिटल माध्यम भाई-बहन को जोड़ने के लिए उपयुक्त साधन हैं, पर जब इनका असंतुलित उपयोग होने लगता है, तो यही दूरी भी बढ़ा सकते हैं। इसलिए असली रिश्तों को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम समय निकालकर एक-दूसरे से मिलें, बात करें, साथ बैठें।
 
क्योंकि असली मुलाकात में जो स्नेह होता है, जो आंखों की भाषा होती है, वह किसी टेक्स्ट या वीडियो कॉल से संभव नहीं। वहीं सच्चा स्पर्श, वही अपनापन रिश्तों को स्थायित्व देता है। भाई का चुपचाप चॉकलेट थमा देना और बहन का चुपके से रुमाल पकड़ा देना- ये डिजिटल नहीं, दिल से जुड़े लम्हे होते हैं।
ये भी पढ़ें
एक माह में 2 ग्रहण, 7 को सूर्य और 21 को चंद्र ग्रहण से घट सकती है सबसे बड़ी घटना