मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Sharad pagare, writer, hindi writer, hindi sahitya

शरद पगारे: इतिहास की अनसुनी गूंज सुनाता साहित्यकार...

शरद पगारे: इतिहास की अनसुनी गूंज सुनाता साहित्यकार... - Sharad pagare, writer, hindi writer, hindi sahitya
(90वें वसंत में चिरयुवा कथाकार शरद पगारे की साहित्ययात्रा पर विशेष)

जीवन के संध्याकाल में मुस्कुराता एक ऐसा चेहरा...जिसकी हर झुर्री इतिहास का झरोखा है। सांस की हर जुंबिश सदियों पुरानी दास्तानों के अनछुए पहलू को सामने लाती है। हम बात कर रहे हैं, हाल ही में देश के बेहद प्रतिष्ठित साहित्य अवार्ड 'व्यास सम्मान' से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार इंदौर के शरद पगारे जी की।

आज 5 जुलाई को वे अपने जीवन के 90वें वसंत में प्रवेश कर रहे हैं। आप उनसे मिलें तो वे अभी भी उत्साह से भरपूर चिरयुवा नज़र आते हैं और ऐतिहासिक कथानकों को कागज पर उतारने में जुटे हुए हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी वे इतिहास की अनसुनी गूंज को पाठकों तक पहुंचाने में बेहद व्यस्‍त नज़र आते हैं।

5 जुलाई, 1931 को मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्में शरद पगारे देश में हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इतिहास की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया है।

डॉ. शरद पगारे इतिहास के विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं। साहित्यकार तथा इतिहासकार डॉ. शरद पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इतिहास विषय में में एम.ए.पी-एच.डी. रह चुके डॉ. पगारे मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल का विश्वनाथ सिंह पुरस्कार तथा वागीश्वरी पुरस्कार, अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद 'दिव्य' पुरस्कार, सागर, मध्य प्रदेश लेखक संघ का भोपाल का अक्षर आदित्य अलंकरण जैसे कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं।

बातचीत में वे बताते हैं कि चूंकि मैं इतिहास का विद्यार्थी और बाद में इतिहास का ही प्रोफेसर रहा हूं, इसलिए रचना का केंद्र ऐतिहासिक पात्र ही रहे। मैंने पात्र की काया में प्रवेश किया और उनसे संवाद करने की कोशिश की। पात्र काया प्रवेश करके इतिहास में उसके साथ जो अन्याय हुआ वह लिपिबद्ध करने की कोशिश की।

वे कहते हैं मेरा काम इतिहास का सत्य और साहित्य के यथार्थवादी काल्पनिक सौंदर्य का समन्वय अपने पाठकों के सामने लाना है। इसके द्वारा ही ऐतिहासिक उपन्यास का सृजन होता है। डॉ. पगारे ने धर्मा की ही तरह इतिहास की कई गुमनाम स्त्रियों को पहचान दी हैं। इन्हीं में से एक हैं गुलाराबेगम। शाहजहां की प्रेमिका गुलारा बेगम पर आधारित इस उपन्यास के अभी तक 11 संस्करण छप चुके हैं। इसका मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, पंजाबी में अनुवाद भी हो चुका है। गुलारा बेगम की ही तरह औरंगज़ेब के रोमांटिक पहलू को उजागर करती 'बेगम जैनाबादी' भी इतिहास के पन्नों में गुम हो चुकी थीं। जिनकी छवि को शरद पगारे ने कलमबद्ध किया।

उल्लेखनीय है कि शरद जी के उपन्यास गुलारा बेगम और बेगम ज़ैनाबादी की चर्चा पाकिस्तान में भी है। खंडवा में 1931 में जन्में डॉ पगारे के अब तक 8 उपन्यास और 10 कहानी संग्रह आ चुके हैं। इतिहास विषय पर भी आपने 12 पुस्तकें लिखी हैं। इतिहास से इतर नक्सलवाद पर लिखा उनका चर्चित उपन्यास 'उजाले की तलाश ' अंग्रेजी में अनुदित होकर आया है। यूं अंग्रेजी के उपन्यासों का हिंदी में अनुवाद अकसर देखा जाता है। हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद अपेक्षाकृत कम ही होते हैं।

डॉ पगारे को हाल ही में 2020 के व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है। वे मध्यप्रदेश के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें देश के प्रतिष्ठित व्यास सम्मान से विभूषित किया गया है। वे बताते हैं साहित्य में उनका कोई पितामह नहीं था, ना ही वे कभी पुरस्कारों की राजनीति में शामिल हुए। यूं भी पुरस्कार अक्‍सर योग्यता और कृति के महत्व की जगह व्यक्ति विशेष को दिए जाते हैं। पुरस्कार देते समय कृति को नहीं देखा जाता, यह देखा जाता है कि जिस आदमी को पुरस्कार दिया जा रहा है वह उनका अपना है या नहीं।

अनेक ऐसे साहित्यकार हुए हैं जिन्हें समय पर सम्मानित नहीं किया गया, लेकिन उनकी कृतियां आज भी अजर-अमर हैं। मेरे लिए पाठकों का प्रेम हर पुरस्कार से ऊपर है। मुझे पाठकों का अभूतपूर्व प्यार मिला है, वही मेरी रचनात्मकता की कुंजी है। 90 वसंत पूरे कर चुके श्री पगारे कहते हैं कि अभी मुझे बहुत लिखना है। मैं वैशाली की जनपद कल्याणी पूरी कर चुका हूं।

इस उपन्यास को मैंने बुद्ध की दृष्टि से देखने-समझने-लिखने की कोशिश की है। मैंने नगरवधू नहीं, भगवान बुद्ध ने जिन्हें जनपद कल्याणी लिखा है उसका उल्लेख किया है। वह जिसे मोल देकर आप खरीद सकते हैं उसका जिक्र नहीं किया। मेरी नायिका वह है जिसके कारण उसकी जनपद का कल्याण हुआ। इस उपन्यास में मैंने दो अन्य राज नर्तकियों की जीवन गाथा का भी उल्लेख किया है। स्वयं चाणक्य लिखते हैं, राजनर्तकी, राष्ट्र का गौरव है। मैं उसी गौरव को कलमबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूं।

श्री पगारे ने वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी एक किताब 'भारत की श्रेष्ठ एतिहासिक प्रेम कथाएं'। श्री पगारे दावा करते हैं कि विश्व साहित्य या किसी भी देश में ऐसी किताब नहीं है, जिसमें सच्चे प्रेम की 16 कहानियां संकलित हो और जिनका एतिहासिक प्रमाण मिलता हो।
ये भी पढ़ें
एकादशी के दिन भगवान को चढ़ाएं यह प्रसाद, यह है आसान विधि