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महिला सशक्तिकरण को संजोने का उत्सव है दिवाली

महिला सशक्तिकरण को संजोने का उत्सव है दिवाली - Diwali is a festival to cherish women empowerment
बचपन से पढ़ रहे हैं हम कि पौराणिक कथाओं में देवता वे शूरवीर पात्र हैं, जो मूल्यों की अभिव्यक्ति करते हैं और क्लिष्टतम अवधारणाओं को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वहीं, भारतीय त्योहार अक्सर नारी शक्ति से सम्बद्ध हैं। सभी देवियां नारी शक्ति और विभिन्न अनन्य गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। दीपावली भी बुराई पर अच्छाई का त्योहार है। लंका के राजा रावण पर भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम की जीत को स्मरण करने का प्रतीक।

मेरे अनुसार माता सीता भारतीय महिला के मानस का एक अभिन्न अंग हैं। बल्कि भारतीय ही नहीं, हर महिला के जीवन का प्रतिबिम्ब हैं। जिंदगी के हर पड़ाव से जुड़ाव है उनका। विस्मित हूं कि किस प्रकार प्राचीन महाकाव्य ने पूरी वर्तमान संस्कृति की मानसिकता हमेशा के लिए तय कर दी और एक चरित्र के कुछ पहलुओं को दूसरों की तुलना में अधिक बल दे दिया।

वैसे दिवाली न केवल एक शक्तिशाली राजा की दूसरे पर विजय का उत्‍सव का प्रतीक है, बल्‍कि यह एक महिला की पीड़ा और उसकी शक्ति के बारे में है जो अपने चरित्र पर सवाल उठाने के वर्षों के बाद और अधिक अपमान सहने से इनकार कर देती है और स्वयं के लिए अकेले खड़े होने का निर्णय लेती है।

वह मुखर थीं, वह खुद को व्यक्त करने की स्वतंत्रता रखती थीं, अपने पति के प्रति ईमानदार और निस्‍वार्थ थीं, अपने परिवार के प्रति समर्पित थीं, ग्लैमर और भौतिक वस्तुओं से कदापि नहीं बहकीं। इतने पर भी उन्होंने एक क्रोधित और संशय करने वाले पति का सामना किया, फिर भी उसे खुश करने की कोशिश की, उसके अलगाव को स्वीकार किया, एक सिंगल मदर के रूप में अच्छी तरह से बच्चों की परवरिश की, और फिर आगे बढ़ गईं। जहां भी थीं, जिस भी स्थिति में थीं, सत्य, इमानदारी शक्ति, आत्मसम्मान से परिपूर्ण शक्ति थीं।

माता सीता को पीड़ित के रूप में नहीं देखा जा सकता। वर्तमान सन्दर्भ में शायद वे श्रीराम का सामना करने के लिए वापस चलीं जाती और अपने समान अधिकारों की मांग करतीं। ताकत और साहस के गुणों पर जोर देकर, हम हिंदू महिलाओं के समकालीन सामाजिक परिपेक्ष्य को बदल सकते हैं। वे मजबूत रोल मॉडल की तलाश में हैं, सिर्फ नैतिक ही नहीं।

दिवाली रावण पर श्रीराम की जीत का उत्‍सव मनाने के बारे में ही नहीं है, बल्कि नारी शक्ति का प्रतीक है – माता सीता की अद्भुत शक्ति, जो सभी प्रतिकूलताओं के बावजूद अपनी पवित्रता और साहस को स्थिर रखती है। जो हर महिला को स्वतंत्र रहने और जीने का अधिकार देती है। दिवाली सिर्फ रोशनी का त्योहार या जहां बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव नहीं, यह सशक्त और सहिष्णु सीता का प्रतिनिधित्व करता है जो जीवन की सभी प्रतिकूलताओं को दूर करती हैं और आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं। दिवाली महिला सशक्तिकरण को संजोने का उत्सव है।