वर्ष 2008 व 2009 में गंगा नदी की रक्षा के लिए प्रो. जीडी अग्रवाल ने उपवास किया था तो केंद्रीय सरकार पर उसका बहुत असर हुआ था व उनकी मांगों के अनुरूप कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। इन निर्णयों के पीछे सरकार की यह स्वीकृति भी थी कि वे देश के अग्रणी पर्यावरणीय इंजीनियर हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आरंभिक कार्यों में उनकी अतिमहत्वपूर्ण भूमिका थी। आईआईटी, कानपुर के छात्रों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रोफेसर के रूप में सम्मानित किया था। इससे पहले उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से इस विषय पर डॉक्टरेट प्राप्त की थी। बाद में वर्ष 2011-12 में प्रो. अग्रवाल ने संन्यास ग्रहण कर लिया व अपना जीवन पूरी तरह गंगा रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। अब वे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के रूप में विख्यात हुए।
हाल ही में 22 जून को उन्होंने हरिद्वार में फिर गंगा रक्षा के लिए उपवास आरंभ किया है। इससे पहले 24 फरवरी को उन्होंने प्रधानमंत्री को अपनी मांगों के बारे में पत्र लिखा था व इन मांगों के पूरा न होने पर उपवास आरंभ करने के संदर्भ में कहा था। उपवास आरंभ होने के बाद उन्हें 2 केंद्रीय मंत्रियों (नितिन गडकरी व उमा भारती) से उपवास जारी न रखने की अपील प्राप्त हुई।
इस उपवास ने एक बार फिर ध्यान दिलाया है कि गंगा नदी की रक्षा के लिए हो रहे कार्यों में समुचित प्रगति नहीं हो रही है। इस बारे में सीएजी रिपोर्ट ने भी ध्यान दिलाया था। स्वामी ज्ञानस्वरूप ने उपवास से पहले ही यह भी स्पष्ट किया कि मुद्दा केवल समुचित प्रगति न हो पाने या पर्याप्त बजट खर्च न होने का नहीं है, बल्कि मुद्दा तो गंगा की रक्षा के प्रति सोच व नीति में बुनियादी बदलाव का है। अनेक ऐसे कार्य हैं, जो सरकारी प्रचार में विकास कार्य के रूप में हो रहे हैं व उनसे गंगा की रक्षा का कार्य आगे नहीं बढ़ता है, पर पीछे जा सकता है, उस पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
स्वामी ज्ञानस्वरूप ने जो मुद्दे अपने पत्रों में उठाए हैं, उसके अतिरिक्त इन दिनों गंगा के हिमालय स्थित जल-ग्रहण क्षेत्रों में एक बड़ा मुद्दा यह भी उठा है कि विभिन्न विकास परियोजनाओं के नाम पर हजारों पेड़ बहुत निर्ममता से काटे जा रहे हैं। पर्यावरण की दृष्टि यह अतिविनाशकारी है तथा इस कटान को रोकना भी जरूरी है। अनेक निर्माण कार्यों का मलबा गंगा नदी और सहायक नदियों में फेंका जा रहा है। इन कारणों से नदी की क्षति होने के साथ अनेक आपदाओं का खतरा भी बढ़ रहा है। अत: गंगा नदी व सहायक नदियों के आसपास हिमालय क्षेत्र में होने वाले इन विनाश पर भी रोक लगनी चाहिए।
हाल के समय में कुछ निष्ठावान प्रयासों से यह उम्मीद उत्पन्न हुई है कि गंगा नदी की रक्षा के लिए क्या होना चाहिए व इसके लिए किस व्यापक सोच की जरूरत है, उसके बारे में समुचित चिंतन-मनन हो ताकि सही नीतियां सामने आ सकें। जब तक नीतियां उचित नहीं हैं व उनके पीछे की बुनियादी सोच उचित नहीं है, तब तक गंगा रक्षा का कार्य भी उचित प्रगति नहीं कर सकेगा।
स्वामी ज्ञानस्वरूप के प्रयासों का विशेष महत्व यह है कि वे विकास नीतियों में बुनियादी बदलाव लाने पर भी बहुत जोर देते रहे हैं। उनकी अपनी जीवन-पद्धति व जीवन-दर्शन में विलासिता व उपभोक्तावाद के प्रति विरोध रहा है व सादगी आधारित जीवन के प्रति विशेष आग्रह रहा है। इस जीवन-दर्शन के माध्यम से ही वे नदी की रक्षा को देखते हैं जिससे नदी की रक्षा के प्रति नई संभावनाएं उत्पन्न होती हैं, नई उम्मीद उत्पन्न होती है। (सप्रेस)