• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. when will the neta change the fate of the people
Written By

आखिर कब बदलेंगे नेता जनता की किस्मत

आखिर कब बदलेंगे नेता जनता की किस्मत - when will the neta change the fate of the people
-प्रवीन शर्मा
 
'किस्मत बदलदी वेखी मैं, मैं जग बदलदा वेख्या/ मैं बदलते वेखे अपने, मैं रब बदलता वेख्या।
 
मशहूर सिंगर 'एम्मी विर्क' के एलबम 'किस्मत' की ये पंक्तियां हर व्यक्ति के जीवन के उतार-चढ़ाव को समझा रही हैं और वर्तमान में जिस तरह से भारत के राजनीतिक दल जनता व भारतीय जवानों की किस्मत के साथ खेल रहे हैं, वह अफसोसजनक है।
 
आज हर मनुष्य अपनी किस्मत बदलने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठा है, चाहे बाबाओं के पास जाना हो या किसी से हाथ मिलाना। 3 साल 3 महीने पहले जम्मू-कश्मीर में हुए पीडीपी-बीजेपी गठबंधन को पूर्व-पश्चिम मिलन के रूप देखा जा रहा था। दोनों राजनीतिक दलों का कहना था कि उन्होंने यह अहम फैसला राष्ट्रहित के लिए लिया है, परंतु यह राष्ट्रहित के लिए नहीं, बल्कि पार्टीहित के लिए लिया गया फैसला था।
 
पार्टियां चाहे कुछ भी कहें, परंतु असल वजह सबको पता है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। पर यह राजनीति है साहब, यहां किस्मत चमकाने व किस्मत आजमाने के लिए कुछ भी हो सकता है। यदि पीडीपी-बीजेपी गठबंधन गलत नहीं, तो बीएसपी-एसपी गठबंधन (बुआ-बबुआ गठबंधन), कांग्रेस-एसपी गठबंधन (पप्पू-बबुआ गठबंधन) गलत क्यों? और बाकी गठबंधन, ठगबंधन क्यों? इन बेचारों ने भी तो पार्टीहित के लिए कुछ सोचकर ही फैसला लिया होगा।
 
यदि मीडिया मित्रों की मानें तो सन् 2014 से आतंकवादी गतिविधियों के कारण होने वाली मृत्युदर में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और दूसरी तरफ सिक्योरिटी पर्सनल की मृत्युदर में 72 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आम नागरिक की मृत्युदर में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी नजर आई है। यह उपलब्धि बस किस्मत चमकाने की वजह से ही हासिल कर पाए हैं हम लोग।
 
राजनीतिक पार्टियां, पार्टीहित के लिए किसी से भी हाथ मिला सकती हैं। चाहे वे राष्ट्रीय पार्टी हों या लोकल पार्टी, सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वे कभी भी जनता के बारे में नहीं सोचतीं, परंतु विपक्ष में होने पर जनता के कंधे पर बंदूक रखकर सत्ताधारी को अच्छी-खासी सुनाना जानती हैं। किस्मत तो जनता की ही खराब है, जो इन नेताओं व सरकारी अधिकारियों के हाथों की कठपुतली बनी घूम रही है। जैसा ये चाहते हैं, वैसा करवाते हैं, अपनी मर्जी से सामने वाले को नचाते हैं।
 
एक जवान की शहादत के बाद कुछ ही महीनों के भीतर उसके परिवार के पास सरकारी क्वार्टर खाली करने का नोटिस आ जाता है व जल्द ही खाली भी करवा लिया जाता है, वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री सत्ता छिन जाने के बाद अपना बंगला नहीं छोड़ते, उनको हिलाने के लिए उच्च न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है। यदि उसके बाद भी वे बंगला छोड़ दें, तो उसका सामान भी अपने साथ ले जाते हैं। कुछ ने तो विधेयक भी पास कर दिया ताकि जनता के पैसों से बनाया हुआ बंगला खाली नहीं करना पड़े।
 
सभी राजनीतिक दल वही कर रहे हैं जिससे जनता आपस में भिड़ी रहे ताकि उसे अपनी मूलभूत जरूरतों का एहसास नहीं हो। हम ऐसे मुद्दों में फंसते व टांग अड़ाते हैं जिससे हमारा हित बस इतना होता है कि सामने वाले पर हमारा दबदबा बन जाए। आज कुछ दलों के प्रयासों के कारण एक व्यक्ति अपने आपको मनुष्य कहने में शर्म महसूस करता है, परंतु अपनी जाति, धर्म व समुदाय घमंड के साथ बताता है। 
 
इंसान अपने आपको इंसान कहलवाना नहीं चाहता और कई तो ऐसे हैं उत्तरप्रदेश में, जो बुरा भी मान सकते हैं। हमसे अच्छे तो जानवर हैं, देखने में एक से हैं और मददगार भी। वर्तमान की स्थिति और आजादी के पहले की स्थिति में फर्क बस इतना है कि पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे जिसमें हमारी मर्जी नहीं थी और आज हम अपनी मर्जी से फिर से गुलाम बने बैठे हैं।
 
आज हर राजनीतिक दल किसान, गरीब व बेसहारों की किस्मत चमकाने की बात कर रहा है कि उनकी सरकार आएगी तो 'ये कर देंगे, वो कर देंगे'। पर भाई साहब कई साल पहले भी थी आपकी सरकार तब आपको करके दिखाना चाहिए था और वर्तमान सरकार के बारे में तो कहने से डरते हैं कि कहीं जनता एंटीनेशनल का ठप्पा नहीं लगा दे। कई सालों से सुनते आ रहे हैं कि अब किस्मत बदलने वाली है, अब ऐसा हो जाएगा, गरीब भूखे पेट नहीं सोएगा, किसान की जिंदगी से सभी दु:ख दूर हो जाएंगे आदि-आदि। पर धरातल पर इनमें से कोई भी चीज देखने को नहीं मिल रही है। कोई भी सरकार हो, वह पार्टीहित वाले आंकड़ों का प्रचार बड़े जोर-शोर से करती है, परंतु कई आंकड़े छिपा भी देती है।
 
कुछ कहते हैं कि राजनीति दल-दल है, कुछ का कहना है कि गंदा गटर है, कुछ का कहना है कि इन अनपढ़ों के हाथ में सत्ता पहुंच गई है, इन्होंने देश को बर्बाद कर दिया है। पर अगर इन्हीं से पूछा जाए तो ये अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर इंजीनियर व डॉक्टर बनाना चाहेंगे ताकि इसकी किस्मत चमक सके, पर नेता नहीं। तो इनको कोई हक नहीं बनता कि ये नेताओं को कुछ कहें। एक नेता की कई पुश्तों की किस्मत चमक जाती है सत्ता में आने के बाद।
 
अगर एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, अच्छे लोग अपने हित के लिए भगवान बदल सकते हैं, तो शायद ऐसा भी दिन आएगा, जब गरीब की थाली में रोटी, किसान के हाथ में सही दाम व जीवित जवान हमारे भारत देश में होंगे।
 
'किस्मत का तो खेल है निराला,
वोटर के पास ही नहीं है निवाला।'
 
 
ये भी पढ़ें
हिन्दी महोत्सव 2018 में दूसरे दिन दिए गए 'वातायन' पुरस्कार