काश संस्कार बाजार में मिलते
संस्कारी बच्चा सबसे अच्छा
संस्कार से परिवार की पहचान होती है। संस्कार वह खाद है, जो परिवार रूपी पेड़ की जड़ों को मजबूत करता है। माता-पिता यदि संस्कारवान होंगे तो बच्चे भी संस्कारी होंगे। परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला होता है। यहीं से बच्चे संस्कार का पाठ सीखते हैं और उस पर अमल करते हैं। बचपन से ही यदि बच्चों को संस्कारी बनाया जाए तो वह बड़ा होकर अपने परिवार का नाम रोशन करता है। कोई माता-पिता अपने बच्चों को झूठ बोलना, चोरी करना, बड़ों का अनादर करना आदि गलत संस्कार नहीं सिखाते परंतु वे बच्चों को बड़ों के चरण स्पर्श करना, हमेशा मीठी वाणी बोलना आदि अच्छे संस्कारों का पाठ भी नहीं पठाते। |
संस्कार वह सूत्र है जिसमें हमारे परिवार को जोड़े रखता है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता है। इससे आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कि इसकी जड़ें कितनी गहरी होती होंगी? |
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काश संस्कार बाजार में मिलते तो शायद हर बच्चा संस्कारी होता परंतु हकीकत में ऐसा नहीं होता है। बच्चों को संस्कार अपने पालक से मिलते हैं, जिनकी निगरानी में बच्चे बड़े होते हैं। जो बच्चों को बखूबी जानते हैं वे ही उन्हें संस्कार का पाठ पढ़ा सकते हैं। आजकल का बच्चा इंजीनियर, डॉक्टर या वकील तो बन जाता है परंतु एक जिम्मेदार नागरिक या संस्कारी नहीं बनता। इस बात का पता तब चलता है, जब बच्चा कई लोगों के सामने अपने माँ-बाप को बेइज्जत कर देता है।बच्चे उस गीली मिट्टी के समान होते हैं, जिसे जिस आकार में ढालो वो वैसे ढल जाते हैं। बच्चों को माँ-बाप का प्यार व दुलार चाहिए परंतु इतना जिससे कि बच्चा आप पर हावी न हो जाए। हर चीज की अति हमेशा नुकसानदेह होती है। बच्चों की अच्छी परवरिश करना आपकी जिम्मेदारी है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि आप बच्चे आप पर ही राज करने लग जाए। कई समृद्ध व प्रतिष्ठित परिवारों में भी अक्सर यह देखा जाता है कि छोटे-छोटे बच्चे भी सबके सामने माँ-बाप पर हाथ उठाते हैं या अपशब्द कह देते हैं। यहीं पर परिवार के संस्कार नजर आते हैं। संस्कारों का अर्थ किसी की गुलामी करना नहीं है। इसका अर्थ तो सबका सम्मान करना है। यहीं तो हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान भी है। संस्कार वह सूत्र है जिसमें हमारे परिवार को जोड़े रखता है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता है। इससे आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कि इसकी जड़ें कितनी गहरी होती होंगी?