मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. चुनाव 2024
  2. लोकसभा चुनाव 2024
  3. लोकसभा चुनाव: स्पेशल स्टोरीज
  4. 6 veterans of Purvanchal politics

पूर्वांचल से चुनाव लड़ने वाले राजनीति के 6 दिग्गज

Purvanchal politics
6 veterans of Purvanchal UP: बात उस जमाने की है जब नेता का अपना एक व्यक्तित्व वजूद और सम्मान हुआ करता था। उनका दायरा व्यापक हुआ करता था। ऐसे नेता दल व सभी समीकरणों पर भारी पड़ते थे। इसमें से कुछ लोग इसी माटी के थे तो कुछ बाहरी पर सबकी खूबियां समान थीं। ये अपने क्षेत्र के दिग्गज लोग थे। और इन लोगों ने कभी पूर्वांचल की राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई थी। कुछ सफल हुए। कुछ असफल। पर इनके मैदान में आने की चर्चा खूब रही। अब भी चुनावों के समय ये याद ही आ जाते हैं। पेश है ऐसे नेताओं का ब्यौरा....
  
सुचेता कृपलानी : देश के किसी सूबे की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी 1952 में गोरखपुर मध्य से संसदीय चुनाव लड़ी थीं, पर हार गईं। 1962 में मेहदावल से विधानसभा का चुनाव लड़ीं और संघ के चंद्रशेखर सिंह को शिकस्त दी। कृपलानी 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक सूबे की सीएम भी रहीं।
 
अंबाला के एक बंगाली परिवार में 25 जून 1908 में पैदा हुई सुचेता मजुमदार अपने समय से आगे भी देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान इंद्रप्रस्थ व स्टीफेंस से पढ़ी-लिखी और बीएचयू में अध्यापन कर चुकीं सुचेता प्रसिद्ध समाजशास्त्री आचार्य जेबी कृपालानी से शादी के बाद कृपलानी हो गईं। भारत छोड़ो आंदोलन में अरुणा आसफ अली व ऊषा मेहता जैसी भूमिका निभाने वाली महिलाओं में से थीं। देश के विभाजन के बाद नोआखाली के दंगों में वह वहां गांधीजी के साथ थीं। संविधान सभा की सदस्य थीं।
मोहिसिना किदवई : 14 साल (1960-1974) तक एमएलए व दो बार सांसद रह चुकीं श्रीमती मोहसिना किदवई का शुमार कभी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में होता था। वे केंद्र व प्रदेश में वे कई मंत्रालयों का प्रभार संभाल चुकी हैं। एक समय राष्ट्रपति के चुनाव में भी वह अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं। पर पूर्वांचल के लोगों ने इस दिग्गज को भाव नहीं दिया।
 
मूलतः बाराबंकी की रहने वाली श्रीमती मोहसिना किदवई 1991 और 1996 में डुमरियागंज संसदीय सीट से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव लड़ीं। 1991 में वे दूसरे नंबर पर रहीं, जबकि 1996 में वे जमानत तक नहीं बचा सकीं।
 
बाबू गेंदा सिंह : अविभाजित देवरिया जिले में वे गन्ना किसानों के संघर्ष के प्रतीक थे। सेवरही स्थित गन्ना शोध संस्थान उनके संघ के सम्मान का प्रतीक है। 17 अगस्त 1965 से 31 मार्च 1957 तक वे विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। 57 व 62 में उन्होंने पडरौना पूरब और सेवरही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 71 में वे कांग्रेस के टिकट पर पडरौना से सांसद चुने गए पर 77 के चुनावों में वे जनता पार्टी की आंधी में अपनी सीट नहीं बचा पाए।
 
महंत दिग्विजयनाथ : मजबूत इरादों वाले, बेहद मुखर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ आत्मसम्मान से समझौता न करने वाले शख्स का नाम था। शायद ये खूबियां नान्हू सिंह को उस माटी से मिली थीं, जहां के वे मूल निवासी थे। मालूम हो कि वे चित्तौड़ (मेवाड़) के ठिकाना ककरावां में पैदा हुए थे। पर 5 साल की उम्र में गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। ‍फिर कभी चित्तौड़ नहीं लौटे। वे गांधीजी से प्रभावित होकर अपनी पढ़ाई छोड़कर 1920 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। उन्हीं गांधी की हत्या में आरोपित हुए, पर सबूतों के अभाव में ससम्मान बरी हो गए।
 
नाम तो उनका चौरीचौरा कांड में भी आया पर इस कांड में भी वे शिनाख्त न होने पर छूट गए। 1931 में जब कांग्रेस तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए कम्यूनल अवार्ड से तकरीबन सहमत हो गई तो उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया और वे हिंदू महासभा में शामिल हो गए। 1062, 67, 69 में उन्होंने विधानसभा क्षेत्र मानीराम का प्रतिनिधित्व किया। 67 में गोरखपुर संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुए। वैशाखी पूर्णिमा 1894 में पैदा हुए दिग्विजयनाथजी ने 28 सितंबर 1969 में चिरसमाधि ले ली। वे अपने समय से आगे थे। 
 
जिस जमाने मे सिनेमा व टीवी को लोग बुराई का जड़ मानते थे, उस समय उनका मानना था कि ये शिक्षा के उपयुक्त माध्यम हो सकते हैं। हिंदुत्व का मुखर पैरोकार होने के साथ वे बहुसंख्यक समाज में व्याप्त जाति-पाति के कट्टर विरोधी थे। इस बुराई को वे हिंदू समाज को आत्मघाती मानते थे।
प्रो. शिब्बनलाल सक्सेना : आजादी के बाद जब कांग्रेस की पूरे देश में आंधी चल रही थी, तब प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना ने 1952, 1955 व 1957 के चुनावों में न केवल समाजवाद का परचम लहराया बल्कि जीत की हैट्रिक भी बनाई। हालांकि 62 व 64 का चुनाव वे कांग्रेस के महादेव प्रसाद से हार गए। 71 में समाजवाद का चोला उतारकर कांग्रेसी बन गए। और कांग्रेस के टिकट से ही संसद में पहुंचे। पर इमरजेंसी के कारण उनका कांग्रेस से मतभेद हो गया और 77 का चुनाव वे जनता पार्टी से लड़े और जीते। 80 के चुनाव में वे नंबर पर रहे।
 
महंत अवैद्यनाथ : मूलतः धर्माचार्य। देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ दक्षिण भारत के रामनाथपुरम मीनाक्षीपुरम में हरिजनों के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से खासे आहत हुए। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आए। वे चार बार (1969, 89, 91 व 96) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। अंतिम लोकसभा चुनाव को छोड़ उन्होंने सभी चुनाव हिंदू महासभा के बैनर तले लड़े। 
 
वे 5 बार 1962, 67, 69, 74 व 77 में मानीराम विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 1984 में शुरू राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व राम जन्मभूमि न्यास समिति के सदस्य पद पर रहे। योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति का राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा है।
 
बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर भोजन किया। 28 मई 1989 में उत्तरांचल के गढ़वाल जिले के ग्राम कांडी में पैदा महंत अवैद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक भी रहे। 1998 में अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के बाद एक तरह से उन्होंने राजनीति से सन्यास ही ले लिया। 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 
ये भी पढ़ें
Holi 2024: हाई कोलेस्ट्रॉल की है समस्या तो होली पर भूलकर भी न खाएं ये चीज़ें