मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. rajasthan, camel and sunlight
Written By DW
Last Modified: रविवार, 5 फ़रवरी 2023 (08:13 IST)

राजस्थान के ऊंट पालने वालों को अब भाने लगी है धूप, जानिए क्या है वजह

राजस्थान के ऊंट पालने वालों को अब भाने लगी है धूप, जानिए क्या है वजह - rajasthan, camel and sunlight
कभी तेज धूप भंवर राइका को बेहद बुरी लगती थी। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ धूप तेज होती जा रही है और ऊंट पालने वाले भंवर राइका की परेशानी बढ़ती जा रही थी। ऊंट का दूध बेचकर अपनी आजीविका चलाने वाले राइका के लिए 52 डिग्री तापमान में काम करना आसान नहीं था।
 
सबसे बड़ी मुश्किल तो ये थी कि दूध बिकने से पहले खराब हो जाता था क्योंकि उन्हें इसे डेयरी तक ले जाना होता था जो उनके घर से 80 किलोमीटर दूर थी।
 
55 वर्षीय राइका की किस्मत पिछले साल फरवरी में बदल गई जब राजस्थान में उनके गांव नोख से करीब दो किलोमीटर दूर एक फ्रिज लगाया गया जिसे नाम दिया गया ‘इंस्टेंट मिल्क चिलर'। इस फ्रिज की खास बात है कि यह उसी धूप से चलता है जो राइका को परेशान करती थी।
 
यह फ्रिज उरमुल सीमांत समिति नाम की एक समाजसेवी संस्था ने लगवाया था, जिसकी बाइजू डेयरी में राइका दूध बेचते हैं। इस फ्रिज के कारण राइका अब अपने दूध को खराब होने से बचा रहे हैं। इस कारण उनकी मासिक आय चार गुना बढ़कर करीब 50 हजार रुपये हो गई है।
 
वह बताते हैं, "पिछले कुछ सालों से मौसम लगातार गर्म हो रहा है और मेरे लिए तो यह देखना अविश्वसनीय था कि जो सूरज  हमारे दूध को इतनी जल्दी खट्टा कर देता था वही उसे फटाफट ठंडा भी कर रहा था और इसकी ताजगी को बचा रहा था।”
 
सैकड़ों ऊंटपालकों को फायदा
इस पहल का फायदा बीकानेर, जोधपुर और जैसलमेर जिलों के करीब सात सौ ऊंट पालकों को पहुंचा है। इन इलाकों में चार जगह मिल्क-चिलर लगाए गए हैं। ये गांवों से बहुत पास हैं और सौर ऊर्जा से चलते हैं। हर चिलर में 500-1500 लीटर दूध जमा हो सकता है। इसकी कीमत आकार के हिसाब से नौ लाख रुपये से लेकर 14 लाख रुपये तक हो सकती है।
 
मशीन इस तरह बनाई गई हैं कि दूध के जीवन को कम से कम तीन दिन तक बढ़ा देती हैं बशर्ते उसे चार डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर रखा जाए। अगर इसे जमा दिया जाए तो उम्र और लंबी हो सकती है।
 
उरमुल के प्रोजेक्ट मैनेजर मोतीलाल कुमावत कहते हैं, "इससे समुदाय को ठीकठाक आय कमाने में मदद होती है और उन्हें दूध खराब हो जाने के कारण नुकसान नहीं उठाना पड़ता।” इस प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी धन अलग-अलग समूहों से आता है जिमें सेल्क फाउंडेशन और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) शामिल है।
 
कुमावत बताते हैं कि जो लोग इन मशीनों का प्रयोग करते हैं वे यहां काम करके अपना योगदान देते हैं। भारत में कई संस्थाओं ने इस तरह के कोल्ड स्टोरेज देशभर में स्थापित किए हैं जो सौर ऊर्जा से चलते हैं। कहीं इनका इस्तेमाल फसल सुक्षित रखने के लिए हो रहा है तो कहीं बिजली ग्रिडों से चलने वाले महंगे फ्रिजों के विकल्प के रूप में।
 
सबका विकास
उरमुल जैसी इन परियोजनाओं के जरिए ही भारत अक्षय ऊर्जा को अपने मुख्य ऊर्जा तंत्र के रूप में प्रयोग करने की ओर बढ़ रहा है। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के हरजीत सिंह कहते हैं इसका फायदा ग्रामीण समुदायों की जीवाश्म ईंधनों से निर्भरता कम करने में भी होगा।
 
वह कहते हैं," यह दोहरे फायदे की बात है। ग्रामीण समुदायों की स्वच्छ बिजली तक पहुंच बढ़ रही है और वे ऊर्जा परिवर्तन की ओर भारत की यात्रा का अहम हिस्सा बन रहे हैं।”
 
भारत में ऊंट सबसे ज्यादा राजस्थान में होते हैं। वे राइका जैसे लोगों की पहचान का अहम हिस्सा हैं। 2014 में राज्य ने ऊंट को अपना आधिकारिक जीव घोषित किया था। उसके बाद ऊंटों की बिक्री को नियमित किया गया जिससे समुदायों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा।
 
लेकिन उसके बाद ऊंट के दूध की बिक्री तेज हुई। बीकानेर के ग्रांधी गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग रूपाराम राइका कहते हैं कि ऊंचा का दूध गाय के दूध से भी ज्यादा सेहतमंद होता है और कई रोगों के इलाज में काम आता है जैसे टीबी आदि। दूध की बढ़ती बिक्री ने नए रोजगार पैदा किए हैं।
 
चिलर जैसी मशीनों के इस्तेमाल से ये रोजगार और बढ़े हैं क्योंकि इन मशीनों के रख-रखाव के लिए भी तो लोग चाहिए। इस तरह सिर्फ अक्षय ऊर्जा के छोटे से इस्तेमाल ने विकास की एक प्रक्रिया शुरू की है जिसका फायदा अलग-अलग तबकों तक एक साथ पहुंच रहा है।
 
वीके/सीके (रॉयटर्स)
ये भी पढ़ें
परवेज़ मुशर्रफ़- भारत के साथ कभी प्यार, कभी नफ़रत का नाता रखने वाले पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति