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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 15 जून 2021 (15:36 IST)

कैसी होगी कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता?

कैसी होगी कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता? | AngelaMerkel
कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता कैसी होगी? डॉयचे वेले की सालाना ग्लोबल मीडिया फोरम में जर्मन चासलर एंजेला मर्केल ने कहा कि डिजिटल आजादी और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा में संतुलन जरूरी है।
 
कोरोना महामारी के बाद की पत्रकारिता पर मंथन, लेकिन इस साल का ग्लोबल मीडिया फोरम खुद महामारी के साए में रहा। इसका आयोजन इस बार हाइब्रिड रूप में हुआ जिसमें कुछ लोगों ने सम्मेलन में सीधे हिस्सा ले रहे हैं तो ज्यादातर लोगों ने ऑनलाइन हिस्सेदारी कर रहे हैं। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने सम्मेलन की शुरुआत में भागीदारों को अपने शुभकामना संदेश में कहा कि लोकतांत्रिक समाजों में, जहां हम नए विकासों के लिए खुले हैं, हमें सावधानी से सोचना होगा कि हमारे लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हैं और हम स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा कैसे करेंगे।
 
यूरोप में भी पत्रकारों को प्रताड़ना
 
डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने अपने शुरुआती भाषण में कहा कि यूरोप में भी पत्रकारिता दबाव में है। बेलारूस में अलेक्सांडर लुकाशेंको विचारों की खुली अभिव्यक्ति को दबा रहे हैं और लोगों को इसके लिए को सजा दी जा रही है। लिम्बुर्ग ने कहा कि जो बेलारूस में हो रहा है, वह यूरोप के लिए शर्म की बात है, और ये रूस की सरकार के भारी समर्थन के बिना संभव नहीं था। दूसरे सभी निरंकुश शासकों की तरह लुकाशेंको और पुतिन ऐसा मीडिया चाहते हैं, जो हमेशा उनकी तारीफ करे। डॉयचे वेले के महानिदेशक ने कहा कि ये पत्रकारिता नहीं है, ये विशुद्ध प्रोपेगैंडा है।
 
पेटर लिम्बुर्ग ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि बेलारूस में डॉयचे वेले के रिपोर्टर अलेक्सांडर बुराकोव को एक अदालती कार्रवाई पर रिपोर्ट करने के लिए 20 दिन कैद की सजा दी। उन्होंने कहा कि जब प्रेस स्वतंत्रता या विचारों की खुली अभिव्यक्ति का मामला हो तो हमें स्पष्ट रवैया अपनाना होगा, पूरी दुनिया में।
 
महामारी के काल में खुली सूचना
 
कोरोना महामारी ने मीडिया जगत को भी प्रभावित किया है और उसे बहुत हद तक बदल कर रख दिया है। इस साल होने वाले संसदीय चुनावों में चांसलर पद के उम्मीदवार और नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया प्रांत के मुख्यमंत्री आर्मिन लाशेट ने कोरोना महामारी की चर्चा करते हुए कहा, महामारी जिसने हमें आश्चर्यचकित किया और साफ कर दिया कि दुनिया एक-दूसरे पर कितना निर्भर है, गहराई से रिसर्च की हुई पत्रकारिता के महत्व को भी दिखाती है। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी महामारी से वैश्विक स्तर पर निपटना होगा।
 
आर्मिन लाशेट ने पत्रकारों के साथ और ज्यादा एकजुटता दिखाने की अपील की। उन्होंने कहा कि जब भी लोगों को अनिश्चितता का अहसास होता है, वे विश्वसनीय सूचना चाहते हैं। ऐसे पत्रकार हैं, जो ऐसा करने के लिए सबकुछ जोखिम पर लगाते हैं, और उन्हें हमारे पूरे समर्थन की जरूरत है।
 
ग्रीन पार्टी की तरफ से चांसलर पद की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक ने कहा कि अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता कोरोना महामारी से आने से पहले से ही दबाव में है। लेकिन इस महामारी ने दुनिया भर में दमनकारी रुझानों को बढ़ा दिया है।
 
भविष्य का रास्ता रचनात्मक पत्रकारिता
 
ग्लोबल मीडिया फोरम में आए भागीदार भविष्य में पत्रकारिता के स्वरूप पर चर्चा कर रहे हैं। पहले दिन दिए गए भाषणों में एक बात उभर कर सामने आई कि भविष्य की चुनौती आसान नहीं होगी। हार्वर्ड के प्रोफेसर स्टीवन पिंकर ने जख्म पर अंगुली रखते हुए कहा कि आज की तेज डिजिटल दुनिया में अक्सर मीडिया कंपनियां दुर्घटनाओं और संकट जैसे ब्रेकिंग न्यूज के पीछे दौड़ रही है। इसका असर लोगों की मानसिकता पर पड़ रहा है।
 
उन्होंने इसकी मिसाल देते हुए कहा कि पिछले 200 सालों में दुनिया में गरीबी में भारी कमी आई है। एक समय 90 फीसदी लोग अत्यंत गरीबी की हालत में रहते थे तो आज उनकी तादाद सिर्फ 9 प्रतिशत रह गई है। भले ही गरीबों की 70 करोड़ की संख्या अभी भी कम नहीं है, लेकिन उनकी मदद के लिए ध्यान विकास की ओर ले जाना होगा। एक ऐसे समय में मीडिया कंपनियां संसाधनों के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, मीडिया में लोगों का भरोसा बनाना और उसे कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती है।
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