गुरुवार, 26 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. Does football increase the risk of cancer in men?
Written By DW
Last Updated : बुधवार, 23 नवंबर 2022 (17:48 IST)

क्या फुटबॉल से होता है पुरुषों में अंडकोषीय कैंसर का खतरा?

क्या फुटबॉल से होता है पुरुषों में अंडकोषीय कैंसर का खतरा? - Does football increase the risk of cancer in men?
-रिपोर्ट : योर्ग श्ट्रोह्शाइन
 
जर्मन फुटबॉल, बुंडेसलीगा में अंडकोषीय कैंसर के 4 मामले, हाल में सामने आए हैं। क्या ये संयोग है? या ये बीमारी इस खेल से जुड़ी है? विशेषज्ञों के पास इसका स्पष्ट जवाब है। टिमो बाउमगार्टल (यूनियन बर्लिन) और मार्को रिष्टर (हेर्था बर्लिन) की हालत में सुधार है और वे मैदान में लौट आए हैं।
 
लेकिन बोरुसिया डॉर्टमुंड के सेबेस्टियान हालर और हेर्था बर्लिन टीम के ही ज्यां-पॉल बोइटियस का इलाज जारी है। हालर का दूसरा ऑप्रेशन भी हो चुका है। क्या अंडकोषीय कैंसर के ये 4 मामले महज संयोग है? या इस बीमारी का पेशेवर फुटबॉल से कोई संबंध है?
 
खेल फिजीशियन विलहेल्म ब्लॉख ने डीडब्लू को बताया कि ये घटना संयोग भी हो सकती है। ब्लॉख खेल विशेषज्ञ चिकित्सक हैं और वे कई वर्षों से खेल और कैंसर पर शोध कर रहे हैं। वो जर्मन खेल यूनिवर्सिटी कोलोन में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश वैज्ञानिक अध्ययन, ट्यूमर जैसा उभार नहीं दिखाते हैं। उनके मुताबिक अंडकोषीय कैंसर अधिकांश युवा पुरुषों को होता है।
 
फुटबॉल से साइकल तक
 
जर्मनी में हर साल अंडकोषीय कैंसर के करीब 4,000 मामले आते हैं, ये बीमारी 20-40 की उम्र वाले पुरुषों में ज्यादा आम है। ब्लॉख कहते हैं कि फिलहाल इस बात का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि ये बीमारी सिर्फ युवा एथलीटों में ज्यादा आम है।
 
और वजहें भी होती हैं जैसे कि 6 फुट से भी लंबे युवा पुरुषों में अंडकोषीय कैंसर की आशंका ज्यादा होती है। इसका संबंध उनकी वृद्धि और मांसपेशियों से हो सकता है। इसके अलावा पुरुष के अपने हॉरमोनों या बाहर से लिए गए हॉरमोनों से भी बीमारी पनप सकती है। हालांकि ब्लॉख के मुताबिक अंडकोषीय कैंसर की कोई एक खास वजह अभी तक पता नहीं चल पाई है।
 
खेल और बीमारी के बीच संभावित सूत्र की खोज में साइक्लिंग को भी देखा गया है। ब्लॉख कहते हैं कि साइकल की गद्दी पर बैठने से अंडकोषों पर दरअसल स्थायी दबाव पड़ता है जिससे सूक्ष्म चोटें आ सकती हैं। लेकिन साइकल चलाने में भी अंडकोषों पर कोई उभार देख पाना मुमकिन नहीं हो पाया है।
 
खेल फिजीशियन विलहेल्म ब्लॉख
 
वजहें हैं तमाम
 
ब्लॉख मानते हैं कि दूसरे असरदार कारण भी ज्यादा ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। वो कहते हैं कि कुछ हद तक शरीर का तापमान भी एक कारण है। एथलीटों के शरीर का तापमान अक्सर इतना ज्यादा हो जाता है, जो अधिकांश लोगों का नहीं होता है।
 
इसके अलावा, ब्लॉख कहते हैं, सघन व्यायाम भी हॉर्मोन-संतुलन को बदल देते हैं और युवाओं में बीमारी बढ़ने की आनुवंशिक वजहें भी होती हैं। वह कहते हैं कि वैज्ञानिकों को बीमारी की रोकथाम के तरीके अभी ढूंढने हैं। लेकिन अंडकोषीय कैंसर के मरीजों के लिए डॉक्टरों के पास अच्छी खबर है।
 
ब्लॉखच के मुताबिक कि अंडकोषीय ट्यूमर असल में जर्म सेल ट्यूमर यानी जनन कोशिका ट्यूमर होते हैं। उनका इलाज आसानी से हो जाता है- खासतौर पर अगर बीमारी का पता जल्द चल जाए। प्रभावित एथलीट कई मामलों में जल्द ही खेल में वापसी कर सकते हैं।
 
चिंतित खिलाड़ी
 
वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो अंडकोषीय ट्यूमरों और खेल के बीच फिलहाल कोई संबंध नहीं है। फिर भी बुंडेसलीगा में खिलाड़ियों के बीच चिंता है। बायेर लेवरकुजेन टीम के डॉक्टर कार्ल-हाइनरिष डिटमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि खिलाड़ी इस समय चिंतित है और थोड़ा सहमे हुए भी हैं। इसीलिए ज्यादातर खिलाड़ी अपनी जांच कराने लगे हैं। वैसे युवा पुरुषों में ये कोई दुर्लभ ट्यूमर भी नहीं है।
 
खिलाड़ियों की नियमित मेडिकल जांच की जाती है, लेकिन बुंडेसलीगा का संचालन करने वाली संस्था, डीएफल के खिलाड़ियों के रूटीनी चेकअप में यूरोलॉजिकल मामले शामिल नहीं होते हैं। डिटमार कहते हैं कि लेवरकुजेन में, हम लोग कूल्हे और जांघों का एमआरआई करते हैं। इस चित्र में अंडकोष भी देखे जा सकते हैं और यहां आप देख सकते हैं कि कुछ उभार बन रहा है। खून में भी ट्यूमर को चिन्हित करने वाले निशान मिलते हैं। जिनका पता ब्लड टेस्ट से किया जा सकता है।
 
वो कहते हैं कि बीमारी की स्क्रीनिंग हम पर्याप्त ढंग से कर लेते हैं क्योंक हमारे ब्लड टेस्ट के नतीजे बहुत बारीक और व्यापक होते हैं। 2002 में जबसे डिटमार ने लेवेरकुजेन के साथ काम किया है, क्लब में अंडकोषीय कैंसर के मामले नहीं आए हैं। वो मानते हैं कि ताजा मामलों की संख्या बहुत ही कम है और फुटबॉल से उसका कनेक्शन नहीं जोड़ा जा सकता। डिटमार कहते हैं कि अभी ये संयोग की बात है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि भविष्य में हम सतर्क न रहें।(फोटो सौजन्य : डॉयचे वैले)

Edited by: Ravindra Gupta
ये भी पढ़ें
आम कैदियों को भी मिल पाती हैं सत्येंद्र जैन जैसी सुविधाएं?