-प्रभाकर मणि तिवारी
हिमालय क्षेत्र में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित यूरेशियन प्लेट के नीचे लगातार बड़े पैमाने पर ऊर्जा जमा होना चिंता का विषय है। आने वाले समय में भूकंप की और घटनाओं की प्रबल आशंका है।
इस सप्ताह भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में लगे भूकंप के झटकों के कारण नेपाल में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई। बुधवार रात को अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस बीच, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र में एक भूकंप आने का खतरा मंडरा रहा है, जो बड़े इलाके पर असर डाल सकता है। वैसी स्थिति में जान-माल का नुकसान न्यूनतम करने के लिए पहले से बेहतर तैयारी जरूरी है।
आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसरों ने भी भविष्य में एक बड़े भूकंप के आने की आशंका जताई है। उनका कहना है कि धरती के नीचे भारतीय प्लेट व यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव बढ़ रहा है।
भूकंप पर शोध करने वाले वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के वैज्ञानिकों के मुताबिक, हिंदुकुश पर्वत से पूर्वोत्तर भारत तक का हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति बेहद संवेदनशील है। उसके खतरों से निपटने के लिए संबंधित राज्यों में कारगर नीतियां नहीं हैं, जो बेहद चिंताजनक है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी है कि भूकंप के प्रति संवेदनशील इलाकों में वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र की जनसांख्यिकी में भी बदलाव आ सकता है। विशेषज्ञों ने हिमालय क्षेत्र में एकत्र हो रही भूगर्भीय ऊर्जा और नए भूस्खलन जोन के मद्देनजर सुरक्षित स्थानों को चिन्हित करने की सलाह दी है।
भूकंप की आशंका : वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के जियोलॉजिस्ट अजय पॉल ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारतीय प्लेट पर यूरेशियन प्लेट के लगातार दबाव के कारण इसके नीचे जमा होने वाली ऊर्जा समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर निकलती रहती है। हिमालय के नीचे ऊर्जा के संचय के कारण भूकंप आना एक सामान्य और निरंतर प्रक्रिया है। लेकिन कभी भी एक बड़े भूकंप की प्रबल आशंका हमेशा बनी हुई है। उनके मुताबिक, भविष्य में आने वाले भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7 या उससे अधिक हो सकती है, लेकिन फिलहाल यह बताना संभव नहीं है कि वैसा भूकंप कब आएगा।
150 सालों में 4 बड़े भूकंप : बीते डेढ़ सौ वर्षों के दौरान हिमालयी क्षेत्र में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं। इनमें वर्ष 1897 में शिलांग, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में आए भूकंप शामिल हैं। उसके बाद वर्ष 1991 में उत्तरकाशी, 1999 में चमोली और 2015 में नेपाल में भी भयावह भूकंप आया था।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर भूकंप से बचाव की ठोस रणनीति बनाने की स्थिति में जानमाल के नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है। विशेषज्ञ इस मामले में जापान की मिसाल देते हैं। डॉ. पॉल का कहना है कि बेहतर तैयारियों के कारण लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंप की चपेट में आने के बावजूद वहां जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं होता है।
आबादी को हटाने की सिफारिश : वाडिया इंस्टीट्यूट के एक और वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट नरेश कुमार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि उत्तराखंड को भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के लिहाज से जोन 4 और 5 में रखा गया है। संस्थान ने भूकंप और उसके कारण होने वाले भूस्खलन पर केंद्र सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है। उसके पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) ने भी वर्ष 2013 की आपदा के बाद पैदा हुई स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी। वाडिया संस्थान की रिपोर्ट में भूस्खलन और बादल फटने के कारण आने वाली आपदा से बचने के लिए आबादी को वहां से हटाने की सिफारिश की गई है।
आईआईटी कानपुर की टीम ने भी दी चेतावनी : आईआईटी, कानपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भी अपनी शोध रिपोर्ट में कहा है कि हिमालयन रेंज यानी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कभी भी रिक्टर स्केल पर 7.8 से 8.5 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। उनका कहना है कि धरती के नीचे भारतीय प्लेट व यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव बढ़ रहा है। विभाग के प्रो. जावेद एन मलिक ने डीडब्ल्यू को बताया कि उत्तराखंड के रामनगर इलाके में तीव्र भूकंप का खतरा मंडरा रहा है। आने वाले समय में रामनगर इलाके में 7.5 से लेकर 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका है।
प्रो. जावेद और उनकी टीम पूरे देश में भूकंप के कारण और उसके बाद पैदा होने वाली परिस्थिति का अध्ययन कर रही है। वह बताते हैं कि उत्तराखंड के रामनगर इलाके में वर्ष 1803 में भूकंप आया था। उस दौरान भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 रहने का अनुमान है। उसके बाद धरती के नीचे ऊर्जा लगातार एकत्रित हो रही है। इसलिए बड़े पैमाने पर भूकंप आना तय है।
भूकंप आएगा, लेकिन कब, कोई नहीं जानता : आखिर ऐसा भूकंप कब तक आने का अंदेशा है? प्रोफेसर जावेद कहते हैं कि यह कभी भी आ सकता है। लेकिन पहले से उसकी निश्चित भविष्यवाणी संभव नहीं है। हिमालय अभी पूरी तरह से शांत है। यह तूफान के आने से पहले वाली शांति भी हो सकती है।
तमाम वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि भूकंप को रोकना या उसकी पहले से सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन संवेदनशील इलाकों में भूकंपरोधी निर्माण को बढ़ावा देकर और स्थानीय लोगों में जागरूकता अभियान चलाकर भूकंप की स्थिति में जानमाल के नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है।