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  4. Conditions and dangers of a possible peace agreement between Russia and Ukraine
Written By DW
Last Updated : गुरुवार, 15 मई 2025 (09:30 IST)

रूस और यूक्रेन के संभावित शांति समझौते की शर्तें और खतरे

यूक्रेन 1994 के बुडापेस्ट मेमोरैंडम से ज्यादा की मांग कर रहा है। इस मेमोरैंडम के तहत रूस, अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेनी संप्रभुता को बरकरार रखने और उसके खिलाफ बल प्रयोग से दूर रहने पर सहमत हुए थे।

Volodymyr Zelensky
-निखिल रंजन रॉयटर्स
 
रूस और यूक्रेन का कहना है कि वे शांति के लिए बातचीत करना चाहते हैं। अगर यह बातचीत सफल होती है तो शांति की क्या शर्तें होंगी और क्या इनके कोई खतरे भी होंगे? 3 साल के यूक्रेन युद्ध के बाद प्रबल हुई बातचीत की संभावना कई उम्मीदें जगा रही है। 3 साल से युद्ध झेल रहे यूक्रेन ने रूस के हाथों 2014 में क्रीमिया को खोया था। उसका कहना है कि उसे दुनिया के ताकतवर देशों खासतौर से अमेरिका की सुरक्षा की गारंटी चाहिए।
 
यूक्रेन 1994 के बुडापेस्ट मेमोरैंडम से ज्यादा की मांग कर रहा है। इस मेमोरैंडम के तहत रूस, अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेनी संप्रभुता को बरकरार रखने और उसके खिलाफ बल प्रयोग से दूर रहने पर सहमत हुए थे। इस समझौते में इन ताकतवर देशों ने यह भी वादा किया था कि अगर यूक्रेन पर हमला हुआ तो वे इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाएंगे।
 
यूक्रेन और रूस की बातचीत से जुड़े लोगों का कहना है कि समस्या सुरक्षा गारंटी के प्रावधानों को लेकर है। अगर सुरक्षा गारंटी ताकतवर हुई तो वह रूस के साथ पश्चिमी देशों के भविष्य में युद्ध का कारण बन सकती है और अगर ताकतवर ना हुई तो यूक्रेन की सुरक्षा हाशिये पर होगी।
 
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने शांति बहाली के लिए प्रस्तावित दस्तावेज की कॉपी देखी है। इसमें राजनयिकों ने 'दमदार सुरक्षा गारंटी' की बात की है जिसमें आर्टिकल-5 जैसे समझौते की बात की गई है। नाटो का आर्टिकल-5 सहयोगी देशों पर हमले की स्थिति में एक दूसरे की रक्षा करने की प्रतिबद्धता देता है। हालांकि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है।
 
2022 में जो समझौता नाकाम हो गया था उसमें यूक्रेन स्थायी तटस्थता के लिए तैयार था बशर्ते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों के साथ ही बेलारूस, कनाडा, जर्मनी, इस्राएल, पोलैंड और तुर्की सुरक्षा गारंटी देने को राजी होते। सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों में ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका शामिल हैं। यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि तटस्थता के लिए तैयार होना एक ऐसी लाल रेखा है जिसे वे पार नहीं करेंगे।
 
नाटो और तटस्थता
 
रूस ने बार बार कहा है कि यूक्रेन के लिए नाटो की संभावित सदस्यता युद्ध का प्रमुख कारण है। वह इसे स्वीकार नहीं करेगा और तटस्थता की मांग करता है। इसके तहत यूक्रेन में नाटो का कोई सैन्य ठिकाना नहीं होना चाहिए। उधर यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि रूस यह तय नहीं कर सकता कि यूक्रेन का सहयोगी कौन हो।
 
2008 में बुखारा सम्मेलन में नाटो के नेता यूक्रेन और जॉर्जिया को भविष्य में नाटो की सदस्यता देने पर सहमत हुए थे। 2019 में यूक्रेन ने अपने संविधान में संशोधन किया। इसके तहत नाटो और यूरोपीय संघ की पूर्ण सदस्यता लेने की राह पर चलने की प्रतिबद्धता जताई गई। यूएन और यूक्रेन के लिए अमेरिकी के विशेष दूत जनरल कीथ केलॉग का कहना है कि यूक्रेन के लिए नाटो की सदस्यता पर अब चर्चा नहीं हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी पहले कह चुके हैं कि यूक्रेन के लिए नाटो की सदस्यता को अमेरिका का समर्थन युद्ध का कारण था।
 
2022 में यूक्रेन और रूस ने स्थायी तटस्थता पर चर्चा की। रूस यूक्रेनी सेना को सीमित करना चाहता था। रॉयटर्स ने संभावित समझौते की कॉपी देखने के बाद यह जानकारी दी है। यूक्रेन अपनी सेना की संख्या और क्षमता पर किसी तरह की रोक के विचार का प्रबल विरोध करता है। रूस का कहना है कि यूक्रेन के यूरोपीय संघ का सदस्य होने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि संघ के कुछ सदस्य यूक्रेन का रास्ता रोक सकते हैं।
 
कब्जे वाले इलाके
 
फिलहाल यूक्रेन के करीब 20 फीसदी हिस्से पर रूस का नियंत्रण है। रूस का कहना है कि अब यह इलाका औपचारिक रूप से उसका हिस्सा है। ज्यादातर देश इस स्थिति को स्वीकार नहीं करते। रूस ने 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर लिया। रूसी सेनाएं लगभग पूरे लुहांस्क, 70 फीसदी दोनेत्स्क, जापोरिझिया और खेरसॉन पर काबिज हैं। खारकीव के कुछ हिस्से पर भी रूस का कब्जा है।
 
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सार्वजनिक रूप से शांति का जो प्रस्ताव रखा है, उसमें कहा गया है कि यूक्रेन को इस पूरे इलाके से बाहर निकलना होगा। इसमें वे इलाके भी हैं जो फिलहाल रूस के नियंत्रण में नहीं हैं। यह प्रस्ताव जून 2024 में आया था। ट्रंप प्रशासन ने जो शांति का प्रस्ताव तैयार किया है उसमें क्रीमिया, लुहांस्क पर वास्तविक नियंत्रण और जापोरिझिया, दोनेत्स्क और खेरसॉन के इलाकों पर रूसी नियंत्रण को मान्यता देगा।
 
यूक्रेन को खारकीव का इलाका फिर से मिल जाएगा जबकि अमेरिका जापोरिझिया के परमाणु संयंत्र पर नियंत्रण और वहां का प्रशासन संभालेगा। फिलहाल यह संयंत्र रूस के नियंत्रण में है। यूक्रेन का कहना है कि कब्जे वाले इलाकों पर रूस की संप्रभुता को कानूनी मान्यता देने का सवाल ही नहीं है। यह यूक्रेन के संविधान का उल्लंघन है लेकिन एक बार युद्धविराम हो जाए तो इन क्षेत्रीय मामलों पर चर्चा की जा सकती है।
 
ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ ने पिछले हफ्ते ब्राइटबार्ट न्यूज से कहा, 'प्रमुख मुद्दा यहां इलाके और परमाणु संयंत्र हैं। जरूरी यह तय करना है कि यूक्रेनी लोग कैसे दनीपर नदी का इस्तेमाल करेंगे और समंदर से बाहर निकलेंगे।'
 
प्रतिबंधों का क्या होगा
 
रूस चाहता है कि पश्चिमी देश प्रतिबंध हटा लें लेकिन उसे इस बात में संदेह है कि ऐसा तुरंत होगा। यहां तक कि अगर अमेरिका प्रतिबंध उठा लेता है तो भी यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और जापान जैसे देशों के लगाए प्रतिबंध आने वाले कई सालों तक जारी रहेंगे। यूक्रेन चाहता है कि ये प्रतिबंध जारी रहें।
 
अमेरिकी सरकार ऐसे तरीकों के बारे में विचार कर रही है जिससे कि रूस को ऊर्जा क्षेत्र में लगे प्रतिबंधों से राहत मिल सके। अगर रूस युद्ध रोकने पर रजामंद हो जाता है तो ऐसा कोई उपाय रूस को तत्काल राहत देने में अमेरिका की मदद करेगा।
 
तेल और गैस का मामला
 
ट्रंप ने पुतिन को समझाया है कि हाल में तेल की कीमतों में आई गिरावट के बाद वह यूक्रेन की जंग को खत्म करने के लिए और ज्यादा सोच रहे हैं। हालांकि पुतिन का कहना है कि तेल की कीमतों से ऊपर राष्ट्रीय हित हैं। इसके बाद भी कुछ राजनयिकों का अंदाजा है कि अमेरिका, रूस और सऊदी अरब तेल की कीमतें नीचे रखना चाहते हैं ताकि बड़े मुद्दों पर मोलभाव कर सकें। इसमें मध्य-पूर्व से लेकर यूक्रेन तक के मुद्दे शामिल हैं। इसी महीने की शुरुआत में ऐसी खबरें आई थीं कि अमेरिका और रूस के अधिकारियों ने यूरोप में रूसी गैस की बिक्री दोबारा शुरू करने पर चर्चा की थी।
 
युद्धविराम और यूक्रेन का पुनर्निर्माण
 
यूरोपीय देश और यूक्रेन की मांग है कि रूस बातचीत से पहले संघर्षविराम पर सहमत हो। रूस का कहना है कि संघर्षविराम तभी काम करेगा जबकि पुष्टि के मामले सुलझा लिए जाएं। यूक्रेन का आरोप है कि रूस और ज्यादा समय लेना चाहता है। यूक्रेन के पुनर्निर्माण पर सैकड़ों अरब डॉलर का खर्च आएगा। यूरोपीय शक्तियां चाहती हैं कि पश्चिमी देशों में रूस की जब्त संपत्तियों का कुछ हिस्सा यूक्रेन की मदद में खर्च किया जाए। रूस का कहना है कि यह स्वीकार्य नहीं है।
 
रूस शायद यूरोप में जब्त 300 अरब डॉलर की संपत्ति को यूक्रेन में खर्च करने पर रजामंद हो सकता है लेकिन उसकी शर्त यह होगी कि इसका कुछ भाग यूक्रेन के उस हिस्से पर खर्च हो जो रूसी नियंत्रण में है। यूक्रेन का कहना है कि वह 300 अरब डॉलर की जब्त संपत्ति पूरी तरह अपने इलाके के पुनर्निर्माण में खर्च करना चाहता है।