प्रभाकर मणि तिवारी
	असम में कैबिनेट ने कोचिंग संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने की मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि कोचिंग संस्थानों के सहारे छात्र नीट की परीक्षा में नंबर तो पा लेते हैं। लेकिन व्यावहारिक ज्ञान नहीं होने की वजह से वो बेहतर डॉक्टर बनने की पात्रता नहीं रखते। उन्होंने इन कमियों को दुरुस्त करने के लिए राज्य में नीट की परीक्षा के आयोजन में तीन अहम बदलावों की भी सिफारिश की है।
				  																	
									  
	 
	असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि कैबिनेट ने कोचिंग संस्थान नियंत्रण और विनियमन विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी है। इसका मकसद ऐसे संस्थानों की तेजी से बढ़ती तादाद को नियंत्रित करने के साथ ही उनमें पढ़ाई करने वाले छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा करना है। इससे पहले राजस्थान ने भी ऐसे ही कानून को मंजूरी दी थी। उसके बाद असम अब ऐसा कानून बनाने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है।
				  
	 
	कैबिनेट ने कैसा प्रस्ताव पारित किया 
	सरकार की ओर से पारित ताजा अधिनियम के तहत कोचिंग संस्थान अब छात्रों को सौ फीसदी कामयाबी जैसी झूठी गारंटी नहीं देंगे। इसके साथ ही वहां पूरे परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे। इसके अलावा साप्ताहिक छुट्टी का भी प्रावधान रखा गया है। इस कानून के उल्लंघन की स्थिति में जुर्माना और संस्थान का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का प्रावधान रखा गया है।
				  						
						
																							
									  
	 
	असम सरकार ने मेडिकल कॉलेज में भर्ती के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा नीट (NEET) में भी कुछ अहम बदलावों की सिफारिश की है। इसके मुताबिक इस परीक्षा को पारदर्शी बनाने के लिए राज्य में आगे से सरकारी कॉलेजों में ही यह परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव है। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि राज्य के निजी स्कूलों और कॉलेजों में इस परीक्षा के आयोजन के दौरान गड़बड़ी की शिकायत मिलती रही हैं।
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	शिक्षा विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताते हैं, "सरकार ने नीट परीक्षा के आयोजन में तीन बदलावों की सिफारिश की है। इसमें केवल सरकारी संगठनों या परीक्षा केंद्रों में परीक्षा आयोजित करना, परीक्षा प्रक्रिया की निगरानी का जिम्मा जिला उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को देना और परीक्षा देने से पहले छात्रों का बायोमेट्रिक परीक्षण कराना शामिल है।"
				  																	
									  
	 
	उन्होंने बताया कि इसका मकसद नीट परीक्षा को पारदर्शी बनाना है ताकि मेधावी छात्र वंचित नहीं हो सकें। इसके अलावा राज्य सरकार इस परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के महानिदेशक और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से इस सिफारिशों को लागू करने का अनुरोध करेगी। 
				  																	
									  
	 
	सरकार को ऐसा कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
	असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, "नीट में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कुछ छात्रों का ज्ञान मेडिकल शिक्षा के अनुकूल नहीं है। यह बात मुझे मेडिकल कॉलेजों के प्रोफेसरों ने ही बताई थी। कोचिंग संस्थानों की मदद से ज्यादातर छात्र शॉर्टकट अपनाते हुए सवाल-जवाब रट कर परीक्षा में बेहतर नंबर तो ले आते हैं। लेकिन उनके पास शैक्षणिक या व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता। यह चिंता की बात है।"
				  																	
									  
	 
	उनका कहना था कि परीक्षा में धोखाधड़ी और डमी उम्मीदवारों की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए परीक्षा हाल में प्रवेश करने से ठीक पहले उम्मीदवारों का बायोमेट्रिक परीक्षण जरूरी है। इससे फर्जी या डमी उम्मीदवारों को पकड़ा जा सकेगा।
				  																	
									  
	 
	असम सरकार की नई कोशिशें
	छात्रों के कौशल के बारे में मेडिकल कॉलेजों के प्रोफेसरों से मिली जानकारी के बाद असम सरकार ने पुलिस की विशेष शाखा से इस मामले की जांच करने को कहा था। उसने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नीट परीक्षा के ज्यादातर केंद्र निजी स्कूलों और कॉलेजों में हैं। मुख्यमंत्री का कहना था कि इसी वजह से उन्होंने इस परीक्षा को सरकारी कालेजों में आयोजित करने का सुझाव दिया है, जिससे मेधावी छात्रों को न्याय मिल सकेगा और सबको बराबरी के मौके मिलें।
				  																	
									  
	 
	मुख्यमंत्री ने डीडब्ल्यू को बताया, "पहले सरकार इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी। इसकी वजह यह थी कि परीक्षा के आयोजन से लेकर परीक्षा केंद्रों के चयन तक की जिम्मेदारी एनटीए की थी। लेकिन छात्रों और चिकित्सा शिक्षा के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस परीक्षा को सरकारी स्कूलों-कालेजों में ही आयोजित करने की सिफारिश की है।"
				  																	
									  
	 
	शिक्षाविदों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है। डिब्रूगढ़ के एक शिक्षाविद प्रोफेसर शांतनु कर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "यह एक सराहनीय पहल है। जिस तरह एक बेहतर डॉक्टर कई जिंदगियां बचा सकता है, उसी तरह एक कमजोर या कम ज्ञानी डॉक्टर के कारण कई लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ सकता है। इस सिफारिशों के लागू होने की स्थिति में प्रतिभाओं को वंचित नहीं होना पड़ेगा।"
				  																	
									  
	 
	असम के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली प्रोफेसर मीनाक्षी बरुआ भी इससे सहमत हैं। वह डीडब्ल्यू से कहती हैं, "देर आयद दुरुस्त आयद। कोचिंग संस्थानों की शिकायतें पहले से ही मिल रही थी। ऐसे संस्थान छात्रों को सब्जबाग दिखा कर उनसे हर साल मोटी रकम वसूल रहे हैं। अब इन पर अंकुश लगाने में कामयाबी तो मिलेगी ही, नीट परीक्षा को भी ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सकेगा।"