शनिवार, 27 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. African Union countries press for more investment in gas projects
Written By DW
Last Modified: रविवार, 13 नवंबर 2022 (09:47 IST)

जलवायु की चिंता छोड़ अफ्रीकी गैस के पीछे पड़ा यूरोप

जलवायु की चिंता छोड़ अफ्रीकी गैस के पीछे पड़ा यूरोप - African Union countries press for more investment in gas projects
- टिम शाउएनबेर्ग

अफ्रीकी संघ के देश गैस परियोजनाओं में ज्यादा निवेश के लिए दबाव बना रहे हैं। रूसी गैस का विकल्प ढूंढ रहे यूरोपीय नेता इसमें काफी दिलचस्पी भी ले रहे हैं। इससे ऊर्जा संकट के जलवायु संकट पर भारी पड़ने का डर पैदा हो गया है।

ऊर्जा संकट और रूसी गैस के विकल्प की भूख में फंसे यूरोपीय नेता बीते कुछ महीनों से अफ्रीका में जीवाश्म ईंधनों की परियोजनाओं पर नजर गड़ाए हुए हैं। उनके अफ्रीकी समकक्ष भी इन्हें बेचने में दिलचस्पी ले रहे हैं। सेनेगल और मौरितानिया लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी जर्मनी भेजने की योजना बना रहे हैं। सेनेगल की सरकार को उम्मीद है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को 2023 से 25 लाख टन गैस भेजना शुरू कर 2030 में इसे एक करोड़ टन तक पहुंचा देंगे।

अफ्रीकी संघ और ज्यादा ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के लिए दबाव बना रहा है इसमें जीवाश्म गैस भी शामिल है। दक्षिण अफ्रीका और तंजानिया जैसे देश अछूते भंडारों का गढ़ हैं और इससे उन्हें अरबों डॉलर की कमाई हो सकती है। अफ्रीकी संघ के कार्यकारी निदेशक राशिद अली अब्दल्लाह ने डीडब्ल्यू से कहा, वास्तव में यह अफ्रीका के लिए एक बड़ा अवसर है। न सिर्फ यूरोप बल्कि वैश्विक संकट के दौर में अफ्रीका मांग पूरी करने में मदद कर सकता है।

अब तक दुनिया में जीवाश्म गैस के कुल उत्पादन का महज 6 फीसदी ही अफ्रीका में होता था। अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन फसलों पर भयावह असर डाल रही है और यह उन 60 करोड़ से ज्यादा लोगों का भी घर है जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची है। नाइजीरिया से लेकर मिस्र और अल्जीरिया से लेकर मोजाम्बिक तक पूरे महाद्वीप में ज्यादा से ज्यादा गैस हासिल करने के लिए होड़ मची है, जो वो खुद और यूरोप के देश जलाएंगे।

यूगांडा के ऊर्जा मंत्री रुथ नानकाबिरवा सेन्तामु ने मिस्र में जलवायु सम्मेलन कॉप 27 से पहले कहा, अफ्रीका जाग गया है और हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने जा रहे हैं।

अफ्रीका यूरोप का गैस स्टेशन नहीं है
अफ्रीकी संघ के 55 सदस्य देशों ने एक ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए एक साझा रुख अपनाया है। पूरे महाद्वीप में ऊर्जा नीतियों के बीच सहयोग करने के लिए जिम्मेदार अफ्रीकी ऊर्जा आयोग ने यह समझ लिया है कि गैस और परमाणु ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा के साथ मिलकर विकास में अहम भूमिका निभाएगी।

ऊर्जा आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है, अगर वैश्विक पर्यावरणवादी जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल तत्काल बंद करने की मांग करते हैं तो अफ्रीकी के विकासशील देशों को आर्थिक और सामाजिक रूप से नुकसान होगा। हालांकि धरती को औद्योगिक युग के पहले के तापामान से 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म होने से रोकने के लिए यह जरूरी है कि तेल और गैस के नए क्षेत्रों की खुदाई और ना बढ़ाई जाए।

यह दावा अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग का है। इस संस्था में ज्यादातर बड़े और अमीर देशों के ऊर्जा मंत्रालय शामिल हैं। दुनिया के नेता धरती का तापमान इस सदी के अंत तक इस स्तर पर बनाए रखने के लिए रजामंद हुए हैं। उत्सर्जन को तत्काल रोकने के लिए जरूरी होगा कि 2035 तक केवल 5 फीसदी बिजली ही जीवाश्म गैस से बनाई जाए।

पर्यावरणवादी अमीर देशों को अफ्रीकी समकक्षों से गैस की सप्लाई पर मोलभाव करने के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। ग्रीनपीस, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क और पावरशिफ्ट अफ्रीका जैसे गैरसरकारी संगठनों का कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह जलवायु सम्मेलन महज ग्रीनवाशिंग का उत्सव बनकर रह जाएगा।

नैरोबी के थिंक टैंक पावर शिफ्ट अफ्रीका के निदेशक मोहम्मद अडो ने शर्म अल शेख में पत्रकारों से कहा कि यूरोप अफ्रीका को अपना गैस स्टेशन बनाने की कोशिश में है लेकिन अक्षय ऊर्जा के लिए पर्याप्त धन नहीं दे रहा है। अडो ने कहा, हम जीवाश्म ईंधन केंद्रित औद्योगिकीकरण से दूर रहे अफ्रीका को अदूरदर्शी और औपनिवेशिक हितों का पीड़ित नहीं बनने देंगे खासतौर से यूरोप के।

लम्हों का मुनाफा सदियों का नुकसान
तेल और गैस का निर्यात कई अफ्रीकी देशों के लिए आय का प्रमुख स्रोत है। कुछ देशों को 50 से 80 फीसदी तक का राजस्व इनसे हासिल होता है। अफ्रीका में निकाली जाने वाली ज्यादातर गैस का निर्यात होता है।

इसके बाद भी अफ्रीकी देश ग्लोबल वार्मिंग में बहुत कम योगदान देते हैं। जलवायु का नुकसान करने वाले ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में अफ्रीकी महाद्वीप की हिस्सेदारी महज 4 फीसदी है। वैश्विक उत्सर्जन का 50 फीसदी केवल अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन से होता है।

यूरोपीय संघ ने जीवाश्म गैस को इस साल संक्रमण ईंधन घोषित किया है और निवेश की सलाह देने वाले नियमों में टिकाऊ बताया है। अब्दल्लाह ने कहा कि इसे अफ्रीकी उत्पादन पर भी लागू किया जाना चाहिए। अब्दल्लाह ने कहा, हमारा प्रति व्यक्ति जीवाश्म ईंधन या पेट्रोलियम खपत अफ्रीका में वैश्विक औसत का महज एक तिहाई है। तो जो इतना कम योगदान देते हों उन्हें ज्यादा बचत करनी चाहिए, यह कहना उचित नहीं है।

कार्बन ट्रैकर थिंक टैंक के क्लीनटेक एनालिस्ट कोफी एम्बुक का कहना है कि अपनी अर्थव्यवस्था की सफाई की योजना बना रहे यूरोप में ग्लोबल साउथ और इस मामले में अफ्रीका के गैस की भूख है जो असफल होगी। अफ्रीका से नई गैस पाइपलानों पर अरबों डॉलर के निवेश में काफी जोखिम है और कुछ ही सालों में ये अपनी कीमत खो देंगे।

ऊर्जा संकट बनाम जलवायु संकट
दुनियाभर में एलएनजी की परियोजनाओं के लिए या तो निर्माण हो रहा है या फिर योजनाएं बन रही हैं। अगर ये सभी चालू हो गईं तो कार्बन बजट का बाकी बचा 10 फीसदी हिस्सा भी खत्म हो जाएगा। बुधवार को क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की। 2030 तक एलएनजी की सप्लाई जरूरत से ज्यादा बढ़ जाएगी और यह यूरोपीय संघ के 2021 में रूसी गैस के आयात का पांच गुना तक पहुंच सकती है।

क्लाइमेट एनालिटिक्स के सीईओ बिला हाले का कहना है, ऊर्जा संकट ने जलवायु संकट को पीछे छोड़ दिया है। हमारा विश्लेषण दिखाता है कि एलएनजी की जितनी परियोजनाओं का प्रस्ताव, अनुमति और निर्माण शुरू हुआ है वह रूसी गैस का विकल्प बनने के लिए जरूरी से बहुत ज्यादा है।

अफ्रीकी संघ को उम्मीद है कि अमीर देशों को जीवाश्म ईंधन से दूर जाने पर अफ्रीका से इसके निर्यात में कमी आएगी। गैस का इस्तेमाल घरेलू बाजार में उन 60 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचाने में किया जाना चाहिए, जो अब भी अंधेरे में जी रहे हैं।

क्लाइेट थिंक टैंक ई3जी में क्लाइमेट डिप्लोमेसी प्रोग्राम के प्रमुख खुआन पाब्लो ओसोरियो का कहना है कि जीवाश्म ईंधन की इसके लिए जरूरत नहीं है, अक्षय ऊर्जा से बिजली दुनिया में सबसे सस्ती है और यह दूरदराज के इलाकों में जल्दी से बिजली पहुंचाने के लिए उपयुक्त है। कम समय में ही यह करोड़ों लोगों को ऊर्जा गरीबी से बाहर निकाल सकती है।
ये भी पढ़ें
बाइडन और शी की मुलाक़ात : क्यों कम हैं बड़ी घोषणा की उम्मीदें?