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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022 (09:07 IST)

चाय बागानों के रिकॉर्ड से खुलते जलवायु परिवर्तन के राज

चाय बागानों के रिकॉर्ड से खुलते जलवायु परिवर्तन के राज - Records of tea gardens reveal the secrets of climate change
-प्रभाकर मणि तिवारी
 
अपनी चाय के स्वाद और गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर असम के चाय बागानों के हस्तलिखित रिकॉर्ड अब पूर्वोत्तर भारत में बारिश के पैटर्न में बदलाव की झलक दे रहे हैं। असम के चाय बागानों में हर साल बारिश का तारीखवार रिकॉर्ड हाथ से लिखकर रखा जाता है।
 
गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज के छात्रों और वैज्ञानिकों ने वर्ष 1990 से 2009 तक के इन हस्तलिखित दस्तावेजों के अध्ययन से 90 साल के दौरान होने वाली बारिश का खाका तैयार किया है।
 
असम में मानसून में होने वाले बदलावों का राज्य में पैदा होने वाली चाय की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इस वजह से बड़े चाय बागानों में हर साल होने वाली बारिश का रिकॉर्ड रखा जाता था। दिलचस्प बात यह है कि इसमें और मौसम विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में अकसर अंतर रहा है। अब ताजा अध्ययन से यह पता चलेगा कि किस साल इन दोनों आंकड़ों में कितना अंतर था और उसका उत्पादन पर क्या और कैसा असर पड़ा?
 
अब 12 वर्ष तक चले इस अध्ययन से मिले ताजा आंकड़ों से पूर्वोत्तर भारत में बारिश की मात्रा का औसत निकालने में सहायता मिलेगी। इसके साथ ही अतिवृष्टि के कारण पैदा होने वाले प्रतिकूल असर व खतरों का विश्लेषण कर उनसे निपटने के कारगर तरीके अपनाए जा सकेंगे।
 
इन आंकड़ों का अध्ययन कर निष्कर्ष तक पहुंचने वाली टीम के प्रमुख राहुल महंत बताते हैं कि 30-40 साल पहले तक बारिश का जो पैटर्न था वह अब काफी बदल गया है। अब थोड़ी-थोड़ी देर के लिए बारिश होती है और यह हर जगह समान नहीं होती। नतीजतन कई बार एक ही इलाके में अलग-अलग मात्रा में बारिश रिकॉर्ड की गई है।
 
वे बताते हैं कि पूर्वोत्तर भारत में अति या अनावृष्टि के अध्ययन के दौरान टीम ने देखा कि भारतीय मौसम विभाग की ओर से नियमित रूप से जारी आंकड़े वर्ष 1975 के बाद यानी महज 32 वर्ष के लिए उपलब्ध थे। उन आंकड़ों को सिर्फ 32 केंद्रों पर ही रिकॉर्ड किया गया था।
 
लेकिन बाढ़ या सूखे के अध्ययन के लिए लंबी अवधि के आंकड़े जरूरी होते हैं इसलिए टीम ने चाय बागानों में सुरक्षित हस्तलिखित दस्तावेजों की सहायता लेने का फैसला किया। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था।
 
महंत बताते हैं कि लंबे समय से मौसम की मार के कारण हाथ से लिखे ज्यादातर दस्तावेज पीले पड़ चुके हैं और उनमें भी हर साल लिखावट अलग-अलग है। उनका अध्ययन करना काफी चुनौतीपूर्ण था। इसके लिए निजी और पहले ब्रिटिश मालिकों के मालिकाना हक वाले बागानों से आंकड़े जुटाए गए। इसमें 12 वर्षों का समय लग गया।
 
शोध टीम की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1875 में मौसम विभाग की स्थापना के साथ ही आंकड़ों को सुरक्षित रखने की शुरुआत हुई थी। लेकिन चाय बागानों ने उससे करीब पांच साल पहले से ही हस्तलिखित दस्तावेजों को सुरक्षित रखने की परंपरा शुरू कर दी थी।
 
असम के करीब 750 चाय बागानों में से 100 से ज्यादा बागान 1 सदी से भी ज्यादा पुराने हैं और वहां दैनिक तापमान और बारिश का रिकॉर्ड दर्ज हैं। इसके अलावा निजी डायरियों, तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं और मिशनरी अस्पतालों में मिले चिकित्सकीय और वैज्ञानिक शोध के दस्तावेजों से भी इस काम में काफी मदद मिली।
 
महंत और उनकी टीम फिलहाल ताजा आंकड़ों के आधार पर बाढ़ और सूखे के दौर का विश्लेषण करने में जुटी है। प्राथमिक तौर पर इस टीम को पता चला है कि वर्ष 1970 से मानसून के दौरान अतिवृष्टि और अनावृष्टि का दौर लगातार तेज हुआ है। इससे इलाके में बाढ़ और सूखे का खतरा भी बढ़ा है।
 
मौसम विज्ञानी जीसी दस्तीदार कहते हैं कि बारिश की मात्रा अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होती है। इसलिए जिन केंद्रो से आंकड़े लिए जा रहे हैं उनका घनत्व जितना ज्यादा होगा, मौसम के चरित्र को समझने में उतनी ही आसानी होगी। पूर्वोत्तर भारत में आंकड़े जुटाने के लिए मौसम विभाग के संसाधन शुरू से ही सीमित रहे हैं। ऐसे में चाय बागानों में मौजूद रिकॉर्ड्स की सहायता से जलवायु के इतिहास के पुनर्निर्माण में काफी मदद मिलने की संभावना है।
 
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश में उतार-चढ़ाव का पैटर्न समझने के लिए लंबी अवधि के आंकड़े जरूरी है। लेकिन पूर्वोत्तर में महज 12 केंद्रों के लिए ही बीते 100 साल के आंकड़े उपलब्ध हैं। महंत बताते हैं कि पूर्वोत्तर भारत में 1950 से पहले मौसम विभाग के पास बारिश मापने के लिए 100 से ज्यादा केंद्र थे।
 
1940 से पहले मेघालय के चेरापूंजी में भी ऐसे 5 केंद्र थे। लेकिन 1950 के बाद ऐसे केंद्रों की संख्या लगातार कम होती रही। अब चेरापूंजी के बारे में भी नियमित कड़े उपलब्ध नहीं है। बीचे के कई वर्षों का कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता।
 
दस्तीदार बताते हैं कि पूर्वोत्तर में बारिश का सीजन अप्रैल में शुरू होता है। अप्रैल व मई के दौरान इलाके में इतनी बारिश होती है जितनी मध्य भारत में जून के दौरान होती है।
 
अब असम के कई चाय बागानों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग शुरू हुई है। पहले ज्यादा बारिश होने की स्थिति में बागान डूब जाते थे और चाय के पौधों को नुकसान होता था। इसकी वजह यह थी कि आसपास खेत या दूसरी फसलें होने के कारण उस अतिरिक्त पानी के बागान से निकलने का कोई रास्ता नहीं था।
 
दस्तीदार कहते हैं कि मौसम विभाग को पूर्वोत्तर इलाके में और ज्यादा केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए। यह इलाका भौगोलिक रूप से काफी विविध है। वहां से मिलने वाले आंकड़े जलवायु परिवर्तन के असर को समझने में तो तो मदद करेंगे ही, ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए कारगर रणनीति बनाने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
 
Edited by: Ravindra Gupta
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