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Last Updated : सोमवार, 6 जून 2022 (15:25 IST)

पीठ-घुटनो में दर्द और टूटी हुई कार्टिलेज के बावजूद रणजी क्यों खेल रहे हैं बंगाल के खेल मंत्री?

रणजी ट्रॉफी जीतना है मनोज तिवारी का सपना

पीठ-घुटनो में दर्द और टूटी हुई कार्टिलेज के बावजूद रणजी क्यों खेल रहे हैं बंगाल के खेल मंत्री? - Sports minister of West Bengal Manoj Tiwari still consider Ranji as his unfullfilled dream
बेंगलुरु:पश्चिम बंगाल के खेल एवं युवा कल्याण मंत्री मनोज तिवारी ने पिछले एक साल से सप्ताह में चार दिन हावड़ा के पास शिबपुर में अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया है। फ़रवरी-मार्च में रणजी ट्रॉफ़ी के लीग चरण के कारण थोड़े समय के लिए वह ऐसा नहीं कर पाए और अब क्वार्टर फ़ाइनल खेलने के लिए तीन सप्ताह तक फिर से वह अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा नहीं कर पाएंगे।

पश्चिम बंगाल ने लगातार दूसरे सीज़न नॉकआउट में जगह बनाई है। मार्च 2020 में वे 1989-90 सीज़न के बाद पहली बार रणजी ख़िताब जीतने के काफ़ी क़रीब आए थे। 32 साल पहले बंगाल ने सितारों से सजी दिल्ली को हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफ़ी अपने नाम किया था। 1990 के उस सीज़न को सौरव गांगुली के फ़ाइनल में ग्रैंड एंट्री को लेकर याद किया जाता है। जब उन्हें उनके बड़े भाई स्नेहाशीष गांगुली और बंगाल के वर्तमान कोच अरुण लाल की जगह पर मौक़ा दिया गया था।

राजकोट में फ़ाइनल हारने के दो साल बाद इस बार बंगाल ट्रॉफ़ी पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रहा है। चांदी की इस चमचाती ट्रॉफ़ी को अपने हाथ में थामने की लालसा ही है, जिस कारण मनोज तिवारी पीठ में दर्द, घुटनो में दर्द और टूटी हुई कार्टिलेज के बावजूद खेल रहे हैं।

मनोज तिवारी अपने आवास से सचिवालय भवन में अपने ऑफ़िस जाने के दौरान ईडन गार्डन्स के सामने से होकर गुजरते हैं। इस आईकॉनिक वेन्यू के बाहर एक छोटे से कोने में बंगाल के रणजी चैंपियंस की एक छोटी सी तस्वीर है। वह वहां मौजूदा टीम की फ़ोटो लगाना चाहते हैं।

रणजी ट्रॉफी ना जीत पाने का है तिवारी को मलाल

मनोज तिवारी ने क्रिकइंफ़ो से कहा , "रणजी ट्रॉफ़ी जीतना अभी भी मेरा सबसे बड़ा सपना है। यह ऐसा लक्ष्य है जिसने मुझे हमेशा से क्रिकेट में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। मैंने सपना देखा था कि बंगाल की टीम का नेतृत्व करते हुए, मैं टीम को रणजी जिताउंगा, हालांकि वह संभव नहीं हो पाया। इसके बाद मैं बस रणजी ट्रॉफ़ी जीतने वाली टीम का हिस्सा बनना चाहता था। 2020 में हम ट्रॉफ़ी जीतने के काफ़ी क़रीब थे। हालांकि वहां भी काम अधूरा रह गया।"

मनोज तिवारी अब तक तीन रणजी फ़ाइनल का हिस्सा रह चुके हैं। पहली बार 2005-06 में उत्तर प्रदेश से पहली पारी में 14 रन से पिछड़ने के कारण उन्होंने बंगाल को हारते हुए देखा। 2006-07 में मुंबई की ताक़तवर टीम के सामने बंगाल ने सरेंडर कर दिया। हालांकि दोनों पारियों में मनोज तिवारी ने शानदार बल्लेबाज़ी की थी। 2019-20 में, एक पटकी हुई गेंद से बचने की कोशिश में चोट लगने के बाद मनोज तिवारी ने चोटिल उंगली के साथ खेला। फ़ाइनल की पूर्व संध्या तक वह दर्द से तड़प रहे थे, और उन्हें मैदान में उतरने के लिए दर्द निवारक दवाएं लेनी पड़ी। बाहर बैठने का कोई विकल्प नहीं था, और इसलिए उन्होंने सौराष्ट्र के ख़िलाफ़ दर्द के साथ मैदान में उतरने का फ़ैसला किया।

उन्होंने कहा "मैं खेलना चाहता था, चाहे जो भी हो जाए। मेरे करियर में इतने वर्षों में मुझे इतनी चोटें आई हैं कि दर्द तब तक दूसरी प्रकृति बन गया था। मुझे पता था कि अगर मैं अभी भी दर्द के बारे में सोचता रहा, तो मैं ख़ुद या टीम के साथ कोई न्याय नहीं पाउंगा। तैयार होने के लिए जो कुछ भी करना पड़ा, मैंने किया। इसी तरह पिछले दो वर्षों में मैंने अपने प्रशिक्षण के रास्ते में चोटों और निगल्स को नहीं आने दिया।"

मनोज जैसे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति का भी शरीर ने धीमा होने के संकेत दिए। 2020 के साल के अंत में एक भार-प्रशिक्षण सत्र के बीच में उनका कार्टिलेज दो टुकड़ों में बंट गया। उन्होंने इस पर बात करते हुए कहा "यह दो इंच का टुकड़ा था जो टूट गया और अंदर इधर-उधर कर रहा था। मैंने दर्द को नियंत्रित करने और खेलने के लिए इंज़ेक्शन लिया, लेकिन यह बहुत दर्दनाक था। बल्लेबाज़ी करते समय इसने मेरे पैरों की मूवमेंट को बाधित किया। मैं हिल नहीं सकता था।" मनोज तिवारी ने रणजी ट्रॉफ़ी के लिए ख़ुद को तैयार रखने के लिए उस सीज़न वनडे क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था। एक बार जब यह स्पष्ट हो गया कि प्रथम श्रेणी सीज़न होने के चांसेस नहीं है, तो उन्होंने दूसरी चीज़ों के बारे में सोचना शुरू कर दिया। उनमें से एक बंगाली में आईपीएल कमेंट्री थी। उन्होंने कॉमेंट्री की तैयारी का आनंद लिया और "इसका मज़ा" उठाया। हालांकि यह "इसमें खेलने जैसा नहीं था।"

ऐसे प्रवेश किया राजनीति में

यह उस समय के आस-पास की बात है, जब उन्हें चुनाव लड़ने के लिए पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का फ़ोन आया था। अगले चार महीनों के लिए उन्होंने घंटों प्रचार के लिए ख़ुद को डाल दिया, अक्सर सुबह 6 बजे से शुरू होकर आधी रात के बाद तक प्रचार करना पड़ता था। इसका फल भी उन्हें मिला जब उन्हें शिबपुर से सांसद चुना गया, जहां वे हावड़ा के पास पले-बढ़े थे।

क्रिकेटर होने के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाना अनसुना है। भारतीय क्रिकेटरों के अपने खेल के दिनों के बाद राजनीति में प्रवेश करने के कई उदाहरण हैं - नवजोत सिद्धू, कीर्ति आज़ाद और मोहम्मद अज़हरुद्दीन तुरंत ध्यान में आते हैं। मनोज ने महसूस किया कि वह अपने समय का अच्छी तरह से प्रबंधन कर सकते हैं, और महामारी ने उन्हें दिनचर्या निर्धारित करने में मदद की है जिससे उन्हें मदद मिली है।

मनोज तिवारी कहते हैं कि "मैं अभी भी सभी फ़ाइलों को देखता हूं, निर्वाचन क्षेत्र में शुरू किए गए काम का ट्रैक रखता हूं, और मेरे सहायकों की टीम के माध्यम से प्रगति की निगरानी करता रहता हूं। मैं कभी भी यह नहीं छोड़ता, भले ही मैं बहुत दूर हूं, जैसे कि अब बेंगलुरु में हूं। मैंने एक दिनचर्या निर्धारित की है और मेरी टीम सुनिश्चित करती है कि ज़्यादातर चीज़ें तेज़ गति में हों। वे मेरे पास हर छोटी चीज़ के लिए नहीं आते। इससे मुझे क्रिकेट पर भी ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलती है।" अपने ट्रेनिंग सेशन्स और निर्वाचन क्षेत्र के काम के बीच मनोज शाम का समय अपने युवा परिवार के साथ समय बिताने के लिए रखते हैं। दौरे के दौरान अपने साथियों से मिलने का उन्हें मौक़ा मिलता है। जिनमें से कई उन्हें सलाह के लिए एक बड़े भाई के रूप में देखते हैं। मनोज अपनी ओर से चीज़ों को हल्का रखते हैं।

मनोज कहते हैं कि "आप हर समय चीज़ों को बहुत अधिक प्रक्रिया उन्मुख नहीं रखना चाहते हैं। हम दौरे पर थोड़ा आराम का आनंद लेते हैं। हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने में मज़ा आता है, हम अच्छी तरह से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे कैंप में टीम भावना और माहौल बहुत अच्छा है। पिछले अभियान ने हम सभी को एक साथ इतना क़रीब ला दिया। हम एक युवा टीम हैं और एक वरिष्ठ खिलाड़ी के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं उनकी मदद करूं और उनका मार्गदर्शन करूं। मुझे पता है कि हम सही रास्ते पर हैं। हां, हमने दो साल पहले ट्रॉफी नहीं जीती थी, लेकिन अगर हम वही करते रहे जो हमने अब तक किया है, तो यह सिर्फ़ समय की बात है।"(वार्ता)
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