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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : सोमवार, 12 सितम्बर 2022 (17:09 IST)

कड़वी सच्चाई, सरकार के लिए आज भी 'पर्यटक' ही हैं कश्मीरी पंडित

कड़वी सच्चाई, सरकार के लिए आज भी 'पर्यटक' ही हैं कश्मीरी पंडित - Kashmiri Pandits are still tourists for the government
जम्मू। कश्मीरी पंडितों ने 2 दिन पहले कश्मीर में वितस्ता अर्थात जेहलम का जन्मदिन मनाया। और यह एक कड़वी सच्चाई है कि धारा 370 की समाप्ति के बावजूद वितस्ता का जन्मदिन मनाने और क्षीर भवानी में मत्था टेकने वाले कश्मीरी पंडितों को अभी भी प्रशासन टूरिस्ट मान रहा है। वे अपनी जन्मभूमि में वहां के बाशिंदे बनकर नहीं बल्कि 'पर्यटक' बनकर ही कर पा रहे थे।
 
सच में यह हैरानगी की बात है कि वितस्ता अर्थात दरिया जेहलम का जन्मदिन, क्षीर भवानी में मत्था टेक और पिछले कई सालों से कश्मीर में दशहरा मनाकर कश्मीरी पंडितों ने अपने दिलों में रुके पड़े सैलाब को तो बाहर निकाल दिया, पर ये सब वे अपनी जन्मभूमि में वहां के बाशिंदे बनकर नहीं बल्कि 'पर्यटक' बनकर ही कर पा रहे थे।
 
धारा 370 हट जाने के बाद भी 'पर्यटक' ही : यह कड़वा सच है कि इन रस्मों और त्योहारों को मनाने वाले कश्मीरी पंडित कश्मीर में पर्यटक बनकर ही आ रहे थे और अब धारा 370 हट जाने के बाद भी अभी भी उन्हें कोई ऐसी उम्मीद नहीं है कि वे अपनी जन्मभूमि के बाशिंदे बनकर यह सब कर पाएंगे, क्योंकि दहशत का माहौल अभी भी यथावत है।
 
हालांकि पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ. अजय चुरुंगु कहते थे कि वितस्ता न होती तो कश्मीर, कश्मीर न होता। यह एक रेगिस्तान होता, बंजर होता। कश्मीर अगर स्वर्ग है, कश्मीर की जमीन अगर उपजाऊ है तो उसके लिए वितस्ता ही जिम्मेदार है। वितस्ता ही कश्मीर का कल्याण करने वाली है।
 
राज्य सरकारों की अहम भूमिका : यूं तो उनकी इन रस्मों और त्योहारों को कामयाब बनाने में तत्कालीन राज्य सरकारों की अहम भूमिका रही थी, पर वह भी अभी भी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर के लिए 'पर्यटक' ही मानती रही है। अगर ऐसा न होता तो कश्मीरी बच्चों को वादी की सैर पर भिजवाने का कार्य सेना क्यों करती और कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या में कश्मीरी पंडितों की संख्या को भी क्यों जोड़ा जाता?
 
यह हकीकत है कि कश्मीर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में अगर पिछले कुछ सालों तक प्रदेश प्रशासन अमरनाथ श्रद्धालुओं को भी लपेटता रहा है तो कुछ खास त्योहारों पर कश्मीर आए कश्मीरी पंडितों और विभिन्न सुरक्षाबलों द्वारा वादी की सैर पर भिजवाए गए उनके बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड बतौर पर्यटक ही रखा गया है। 
 
इससे कश्मीरी पंडित नाराज भी नहीं हैं, क्योंकि वे अपने पलायन के इन 33 सालों के अरसे में जितनी बार कश्मीर गए, 3 से 4 दिनों तक ही वहां टिके रहे। कारण जो भी रहे हों, वे कश्मीर के बाशिंदे इसलिए भी नहीं गिने गए, क्योंकि कश्मीर के प्रवास के दौरान या तो वे होटलों में रहे या फिर अपने कुछ मुस्लिम मित्रों के संग।

 
वितस्ता दरिया कश्मीरी पंडितों की आत्मा : कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू के बकौल वितस्ता, जो आगे जाकर दरिया चिनाब में शामिल हो जाती है, तभी से है जबसे कश्मीर और कश्मीरी पंडित हैं। वितस्ता को हम वेयथ भी पुकारते हैं। यह सिर्फ एक नदी नहीं है, यह हम कश्मीरी पंडितों की आत्मा है, यह हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा है। यह कश्मीर की संस्कृति और सभ्यता का जननी है।
 
कश्मीर में आतंकी हिंसा से पूर्व वेयथ त्रुवाह के अवसर पर वितस्ता का हर घाट एक तीर्थस्थल लगता था। अब भी पूजा होती है, लेकिन पहले जैसी रौनक नहीं होती। उन्होंने कहा कि बस उम्मीद है कि जिस तरह से हालात बदल रहे हैं, जल्द ही फिर वितस्ता के किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ वेयथ त्रुवाह मनाने के लिए जमा हुआ करेगी।
 
सच में यह कश्मीरी पंडितों के साथ भयानक त्रासदी के तौर पर लिया जा रहा है कि वे कश्मीर के नागरिक होते हुए भी, कश्मीरियत के अभिन्न अंग होते हुए भी फिलहाल कश्मीर तथा वहां की सरकार के लिए मात्र पर्यटक भर से अधिक नहीं हैं। वैसे सरकारी तौर पर उन्हें कश्मीर में लौटाने के प्रयास जारी हैं।
 
33 सालों में 1200 के लगभग कश्मीरी पंडितों के परिवार कश्मीर वापस लौटे भी। पर वे सभी सरकारी नौकरी के लिए ही आए थे। ऐसे में सरकार और कश्मीरी पंडितों की त्रासदी यही कही जा सकती है कि वे अपने ही घर में विस्थापित तो हैं ही, अब पर्यटक बनकर भी भी घूमने को मजबूर हुए हैं।
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