Ashtahnika Vidhan In Hindi : जैन धर्म में, फाल्गुन अष्टान्हिका विधान एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों तक चलता है। यह पर्व साल में 3 बार मनाया जाता है, फाल्गुन, आषाढ़ और कार्तिक मास में।
वर्ष 2025 में इस बार फाल्गुन अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाए जाने वाला यह पर्व 07 मार्च से शुरू होकर 14 मार्च तक चलेगा। इस पर्व के अंतर्गत भक्तांबर मंडल विधान का आयोजन, जिनेंद्र पक्षाल, नित्य नियम व विधान पूजन, विशेष प्रवचन श्रृंखला आदि आयोजन किए जाते हैं।
फाल्गुन अष्टान्हिका विधान का महत्व: जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, इस पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए आठ दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल एवं तीर्थंकरो के अभिषेक जल के छीटों से रोग समाप्त होने के कारण सदियों पूर्व हुई। यह पर्व नंदीश्वर द्वीप में होने वाली देवों की पूजा का स्मरण कराता है। यह पर्व जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने और आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।
फाल्गुन अष्टान्हिका विधान की विधि: इन 8 दिनों के दौरान, जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, सिद्धचक्र मंडल विधान, नन्दीश्वर विधान मंडल पूजा सहित अन्य विशेष पूजाओं का आयोजन होता है। जैन धर्म को मानने वाले इन दिनों में मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना, सहित कई प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। भक्त उपवास रखते हैं, ध्यान करते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। दान-पुण्य के कार्य भी किए जाते हैं।
फाल्गुन अष्टान्हिका विधान का उद्देश्य: यह पर्व आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। यह हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों का पालन करने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें सभी जीवों के प्रति करुणा और प्रेम का भाव रखने की शिक्षा देता है। यह पर्व जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाता है।
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