शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. जैन धर्म
  4. Rohini Vrat 2025 Date
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025 (10:34 IST)

Rohini Vrat 2025: रोहिणी व्रत आज, जानें महत्व, कथा और पूजा विधि

Rohini Vrat 2025: रोहिणी व्रत आज, जानें महत्व, कथा और पूजा विधि - Rohini Vrat 2025 Date
Rohini Vrat : जैन धर्म में रोहिणी व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने तब पड़ता है, जब रोहिणी नक्षत्र होता है। यह व्रत करने से घर की गरीबी, निर्धनता दूर होती है। इसका जैन समुदाय में खास महत्‍व है। यह व्रत 27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन मनाया जाता है, यह व्रत सुख-शांति और अच्छा स्वास्थ्य देता है। इस व्रत के प्रभाव से समस्त आर्थिक समस्याओं से छुटकारा भी मिलता है। जैन पंचांग कैलेंडर के अनुसार, जैन समुदाय का रोहिणी व्रत आज यानी 07 फरवरी 2025, दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है। 
 
रोहिणी व्रत का धार्मिक महत्व- रोहिणी व्रत का दिगंबर जैन समुदाय में बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रोहिणी व्रत करने का संकल्प 3, 5 या फिर 7 वर्षों के लिए लिया जाता है। इस व्रत का समापन उद्यापन के बाद ही किया जाता है। इस व्रत के दिन पूरे विधानपूर्वक 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य का पूजन किया जाता है। अत: इस दिन जैन धर्म के अनुयायी वासुपूज्य स्वामी की पूजा/ उपासना करके व्रत रखते है। 
जैन धर्म में बारहवें तीर्थंकर के रूप में भगवान वासुपूज्य स्वामी को पूजा जाता है। हालांकि यह व्रत पुरुष और महिलाएं दोनों ही कर सकते हैं या कोई भी कर सकता है, किंतु मान्यतानुसार यह व्रत महिलाओं के लिए अनिवार्य बताया गया है। यह व्रत आत्‍मा के विकारों को दूर करके कर्म बंधन से छुटकारा दिलाने में सहायक है। तथा दुख-दर्द से मुक्ति दिलाने में यह व्रत महत्वपूर्ण माना गया है।
 
रोहिणी व्रत की पूजन विधि : 
- जैन धर्म की महिलाएं इस दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करके पवित्र होकर पूजा करती हैं।
- इस व्रत में भगवान वासुपूज्य का पूजन किया जाता है। 
- वासुपूज्‍य भगवान की पंचरत्‍न, ताम्र या स्‍वर्ण प्रतिमा की स्‍थापना करके उनकी आराधना करते हैं।
- यह व्रत उदया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है। 
- साथ ही रोहिणी व्रत का पालन करके गरीबों को दान देने का महत्व होता है। 
 
व्रत के फायदे: मान्यतानुसार रोहिणी व्रत करने से पति की आयु लंबी हो जाती है और उनका स्वास्थ अच्छा रहता है। घर में सदैव देवी लक्ष्मी का वास बना रहता है। कर्ज मुक्ति और आय बढ़ाने का मार्ग मिल जाता है तथा घर में निरंतर सुख-समृद्धि और धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है। यह व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है और उसे जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
 
रोहिणी व्रत की कथा : पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राज करते थे। उनके 7 पुत्र एवं 1 रोहिणी नाम की पुत्री थी। एक बार राजा ने निमित्‍तज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो उन्‍होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ तेरी पुत्री का विवाह होगा। 
 
यह सुनकर राजा ने स्‍वयंवर का आयोजन किया जिसमें कन्‍या रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और उन दोनों का विवाह संपन्‍न हुआ। एक समय हस्तिनापुर नगर के वन में श्री चारण मुनिराज आए। राजा अपने प्रियजनों के साथ उनके दर्शन के लिए गया और प्रणाम करके धर्मोपदेश को ग्रहण किया।

इसके पश्‍चात राजा ने मुनिराज से पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्‍यों है? तब गुरुवर ने कहा कि इसी नगर में वस्‍तुपाल नाम का राजा था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्‍या उत्पन्‍न हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्‍या से कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया, लेकिन अत्‍यंत दुर्गंध से पीडि़त होकर वह एक ही मास में उसे छोड़कर कहीं चला गया। 
 
इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए, तो धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ वंदना करने गया और मुनिराज से पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्‍होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्‍य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीड़ा के लिए चले, सो मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए आहार व्यवस्था करने को कहा। 
 
राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई, परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कड़वी तुम्‍बी का आहार दिया जिससे मुनिराज को अत्‍यंत वेदना हुई और तत्‍काल उन्‍होंने प्राण त्‍याग दिए। जब राजा को इस विषय में पता चला, तो उन्‍होंने रानी को नगर में बाहर निकाल दिया और इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्‍पन्‍न हो गया। 
अत्‍यधिक वेदना व दु:ख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। वहां अनंत दु:खों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्‍पन्न और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्‍या हुई।

यह पूर्ण वृत्तांत सुनकर धनमित्र ने पूछा- कोई व्रत-विधानादि धर्म कार्य बताइए जिससे कि यह पातक दूर हो। तब स्वामी ने कहा- सम्‍यकदर्शन सहित रोहिणी व्रत करो अर्थात् प्रतिमाह रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन आए, उस दिन चारों प्रकार के आहार का त्‍याग करें और श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित 16 प्रहर व्‍यतीत करें अर्थात सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय बिताए और स्‍वशक्ति दान करें। इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करें। 
 
दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संन्यास सहित मरण कर प्रथम स्‍वर्ग में देवी हुई। वहां से आकर तेरी परमप्रिया रानी हुई।

इसके बाद राजा अशोक ने अपने भविष्य के बारे में पूछा, तो स्‍वामी बोले- भील होते हुए तूने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया था, सो तू मरकर नरक गया और फिर अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ एक वणिक के घर जन्म लिया, सो अत्‍यंत घृणित शरीर पाया, तब तूने मुनिराज के उपदेश से रोहिणी व्रत किया। फलस्‍वरूप स्वर्गों में उत्‍पन्‍न होते हुए यहां अशोक नामक राजा हुआ। इस प्रकार राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख पाने के उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

ये भी पढ़ें
संत भाकरे महाराज कौन थे, जानें उनके बारे में