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Nirvana Day of Lord Mahavira : हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जहां हिन्दू धर्मावलंबी दीपावली का पर्व मनाते हैं, वहीं जैन समुदाय वाले इस दिन भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस मनाते हैं। कैलेंडर के मत-मतांतर के चलते इस बार जहां दीपावली पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जा रहा है, वहीं जैन कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में जैन धर्मावलंबी 01 नवंबर को भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव दिवस मनाएंगे।
Highlights
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महावीर निर्वाण दिवस कब मनाया जाता है?
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भगवान महावीर स्वामी के बारे में जानें।
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भगवान महावीर स्वामी का निर्वाणोत्सव कब मनाया जाएगा।
महावीर स्वामी कौन है : भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। अत: जैन धर्म में प्रतिवर्ष दिवाली के दिन दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। भगवान महावीर का जन्म 27 मार्च 598 ई.पू. अर्थात् 2610 वर्ष पहले हुआ था और 72 वर्ष की अवस्था में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के ही दिन स्वाति नक्षत्र में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था।
भगवान महावीर के बारे में जानें : भगवान महावीर स्वामी एक राज परिवार में पैदा होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और धन-संपदा का उपभोग नहीं किया। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य व संपदा की कोई कमी नहीं थी। युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह और राज्य को छोड़कर अनंत यातनाओं को सहन किया और समस्त सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर वे नंगे पैर पदयात्रा करते रहे। महावीर ने अपने जीवनकाल में अहिंसा के उपदेश प्रसारित किए। उनके उपदेश इतने आसान हैं कि उनको जानने-समझने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता ही नहीं।
उनका जीवन एक खुली किताब की तरह है। महावीर स्वामी का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है, इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञानरूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। उनके प्रवचन और उपदेश आलोक पुंज हैं। एक बार की बात है, जब महावीर स्वामी पावा नगरी के मनोहर उद्यान में गए हुए थे, जब चतुर्थकाल पूरा होने में 3 वर्ष और 8 माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए। उस समय इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पावापुरी नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उसी समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है।
जैन समुदाय कैसे मनाते हैं निर्वाण महोत्सव : जैन धर्म में प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवल्यज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया। इसी उपलक्ष्य में सभी जैन धर्मावलंबी सायंकाल दीपक जलाकर पुन: नए बही-खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। माना जाता है कि 12 गणों के अधिपति गौतम गणधर ही भगवान श्री गणेश हैं, जो सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा कैवल्यज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।
कैसे मनाएं हम सभी यह पर्व : जैन धर्म में धन, संपत्ति, यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर अधिक बल दिया गया है। अत: हमें भी मोक्ष प्राप्ति की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। आज की इस भागदौड़भरी जिंदगी में भी हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलते हुए भ्रष्टाचार, लोभ, लालच तथा अन्य बुराइयों का खात्मा करना चाहिए तथा सत्य व अहिंसा का मार्ग अपना कर जीवों की हिंसा करने वाले पटाखों का त्याग करके जीव-जंतु, प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि दीपावली पर पटाखों का बाजार बहुत बड़ा होने के कारण हम इससे होने वाली जनहानि, प्रदूषण तथा जीवों की हिंसा करने से बचेंगे, साथ ही हम सही मायनों में भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मना पाएंगे।
महावीर स्वामी का संदेश क्या है : भगवान महावीर का जीवन ही सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। द्: उनका दिव्य-संदेश 'जियो और जीने दो' को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को जिनालयों/ जैन मंदिरों, भवनों, कार्यालयों व बाग-बगीचों को दीपों से सजाया जाता है और दीये जलाए जाते हैं। और इस दिन भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर उन्हें लड्डू अर्पित किया जाता है। इसे 'निर्वाण लाडू' कहा जाता है।
Mahavir Bhagwan Ki Aarti : महावीर स्वामी की आरती
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥ ॥ ॐ जय.....॥
सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ॥ ॐ जय.....॥
आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥ ॐ जय.....॥
जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।
हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ॥ ॐ जय.....॥
इह विधि चांदनपुर में अतिशय दरशायौ।
ग्वाल मनोरथ पूर्यो दूध गाय पायौ ॥ ॐ जय.....॥
प्राणदान मन्त्री को तुमने प्रभु दीना।
मन्दिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥ ॐ जय.....॥
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ॥ ॐ जय.....॥
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवै।
होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावै ॥ ॐ जय.....॥
निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै।
हरि प्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ॥ ॐ जय.....॥
Shrree Mahavir Chalisa :श्री महावीर चालीसा
दोहा :
सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त।
निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ॥
मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर।
तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ॥
चौपाई :
जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर।
शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी।
कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे।
महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे।
काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया।
रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी।
प्रभु तुम नाम जगत में साँचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा।
राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे।
महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे।
व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी।
महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता।
महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै।
फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै।
होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै।
शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।
पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा।
झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।
वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै।
होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना।
बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा।
राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै।
न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी।
जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता।
चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता।
एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा।
सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए।
तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।
इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा।
कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी।
अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी।
शांत भाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे।
जड़-चेतन त्रय जग के सारे, हस्त रेखवत् सम तू निहारे।
लोक-अलोक द्रव्य षट जाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना।
पशु यज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा।
अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा।
पंचम काल विषै जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई।
क्षण में तोपनि बाढि-हटाई, भक्तन के तुम सदा सहाई।
मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता।
सोरठा :
करे पाठ चालीस दिन नित चालीसहिं बार।
खेवै धूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीर अगार ॥
जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान।
नाम वंश जग में चले होय कुबेर समान ॥
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डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'