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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 26 दिसंबर 2025 (16:35 IST)

सबरीमाला की दिव्य यात्रा: जानिए क्या है 41 दिनों की कठिन तपस्या और 'मंडला पूजा' का रहस्य

क्या होती है मंडला पूजा
Sabarimala Ayyappa Temple in Kerala: 41 दिनों के उपवास और लंबी तपस्या के बाद अंतिम दिन भगवान अय्यप्पा के भक्तों द्वारा मंडला पूजा की जाती है। सबरीमाला अय्यप्पा मंदिर में मण्डला पूजा धनु मास के 11वें अथवा 12वें दिवस पर होती है। मण्डला पूजा तथा मकर विलक्कु, यह दोनों सबरीमाला अय्यप्पा मन्दिर के सबसे प्रसिद्ध आयोजन हैं। केरल के पहाड़ों में स्थित सबरीमाला अय्यप्पा मंदिर आस्था का वो केंद्र है, जहाँ की यात्रा केवल पैदल चलना नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने की एक कठिन तपस्या है। इस यात्रा का सबसे पवित्र पड़ाव है- मंडला पूजा। इस बार 27 दिसंबर 2025 मंगलवार को यह पूजा होगी। आइए जानते हैं, क्यों यह पूजा इतनी खास है और भक्त इसके लिए खुद को कैसे तैयार करते हैं। 
 
क्या है मंडला पूजा?
मंडला पूजा भगवान अय्यप्पा के भक्तों के लिए 41 दिनों की लंबी साधना का गौरवशाली समापन है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है (धनु मास के 11वें या 12वें दिन), तब यह महापूजा संपन्न होती है। 'मंडला पूजा' और 'मकर विलक्कू' सबरीमाला के दो ऐसे सबसे बड़े उत्सव हैं, जिनके लिए मंदिर के कपाट विशेष रूप से खोले जाते हैं।
 
साधना की शुरुआत: 'मंडल व्रतम'
41 दिन: भगवान अय्यप्पा के दर्शन का मार्ग इतना आसान नहीं है। इसकी तैयारी दर्शन से 41 दिन पहले शुरू हो जाती है, जिसे 'मंडल व्रतम' कहा जाता है।
पवित्र धारण: भक्त इस दौरान श्री गणेश का स्मरण कर तुलसी या रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
भक्तिमय जीवन: माथे पर चंदन का लेप, गले में माला और जुबां पर "स्वामी शरणम अय्यप्पा" का कीर्तन—यही एक भक्त की पहचान बन जाती है।
 
क्यों रखा जाता है 41 दिनों का कठिन व्रत?
मंडल पूजा: धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, जो भक्त पूर्ण निष्ठा के साथ 41 दिनों तक 'मंडल पूजा' का अनुष्ठान करता है, उसका जीवन सकारात्मकता से भर जाता है। यह व्रत केवल भूखा रहना नहीं, बल्कि स्वयं पर विजय पाना है। इसके कुछ कड़े नियम हैं।
मन और शरीर की शुद्धि: इन 41 दिनों में भक्त को सांसारिक मोह-माया से दूर रहना होता है।
सात्विक जीवन: मांसाहार, शराब, धूम्रपान और किसी भी प्रकार की तामसिक आदतों का पूर्ण त्याग अनिवार्य है।
सरलता का मार्ग: भक्त जमीन पर सोते हैं और एक तपस्वी की तरह सादा जीवन व्यतीत करते हैं ताकि उनका चित्त केवल ईश्वर में लगा रहे।
 
पूजा का शुभ समय:
इस महान अनुष्ठान की शुरुआत मलयालम माह 'वृश्चिक' के पहले दिन से होती है (जब सूर्य वृश्चिक राशि में होता है)। इसके ठीक 41 दिनों बाद, जब सूर्य धनु राशि में गोचर करता है, तब मंडला पूजा के साथ इस कठिन व्रत का समापन होता है।
 
श्रद्धा का सैलाब:
मान्यता है कि इस दौरान भगवान अय्यप्पा के दर्शन मात्र से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि दुर्गम रास्तों और कठिन नियमों के बावजूद, दुनिया भर से लाखों भक्त नंगे पाँव पहाड़ियों को पार कर 'स्वामी' के दर्शन के लिए सबरीमाला पहुँचते हैं।
 
मंडला पूजा हमें सिखाती है कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग 'संयम' और 'अनुशासन' से होकर गुजरता है। यह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि खुद को भीतर से बदलने का एक आध्यात्मिक अभियान है।
 
स्वामी शरणम अय्यप्पा!
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